अंबिका सोनी, फाइल तस्वीर
नई दिल्ली:
दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस की राज्यसभा सदस्यों अंबिका सोनी और कुमारी शैलजा को लुटियन दिल्ली में स्थित बड़े बंगलों को खाली करने के सरकारी आदेशों को चुनौती देने वाली उनकी याचिकाओं को आज खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने मामले को राजनीतिक रूप देने की कोशिश की।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडला ने 2014 के आम चुनावों के बाद कांग्रेस के सत्ता में नहीं लौटने की संभावना के बीच पार्टी की राज्यसभा सदस्यों को बंगलों के आवंटन को ही संदिग्ध बताया।
उन्होंने कहा कि वह यह जानकर दुखी हैं कि दोनों सांसदों ने महज एक घर पर कब्जा रखने के लिए, जिसकी वे हकदार नहीं है मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की है।
न्यायाधीश ने कहा, 'मुझे संपदा निदेशालय डीओई की कार्रवाई गलत नजर नहीं आ रही। जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, ये प्रमाणित हो चुका है कि पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और अब राज्यसभा सदस्यों की हैसियत से याचिकाकर्ता टाइप-सात के आवास में रहने की हकदार हैं, टाइप-आठ में रहने की नहीं।'
उन्होंने कहा, 'इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं ने, उस समय जब लोकसभा के आम चुनाव, 2014 हो रहे थे, खुद के लिए अपने अधिकार से परे आवास आवंटित कराया।' न्यायाधीश ने दोनों पर 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा, 'मैं यह कहने के लिए विवश हूं कि जब कि याचिकाकर्ताओं की राजनीतिक पार्टी के सत्तारूढ़ दल बनने की संभावना खत्म हो रहीं थीं, इस स्तर पर उन्हें प्राइम आवासों का आवंटन अत्यंत संदिग्ध है।'
अदालत ने यह भी कहा कि यदि दोनों सांसदों को लगता था कि वे इन आवासों की हकदार हैं तो भी उन्हें अपना दावा करने के लिए नयी सरकार के सत्ता में आने का इंतजार करना चाहिए था।
अदालत ने फैसले में कहा, 'निष्कर्ष यह है कि याचिकाकर्ताओं अंबिका सोनी और कुमारी शैलजा ने यह जानते हुए कि उनकी राजनीतिक पार्टी के सत्ता में नहीं आने की स्थिति में वे उन घरों पर अपना दावा नहीं कर सकेंगी, उन्होंने अपने लिए डीओई से गलत तरह से आवंटन कराने का रास्ता चुना जो उनके अनुसार शहरी विकास मंत्रालय के नियंत्रण में होते हुए मंत्रालय के इशारे पर काम करता है।'
अदालत ने 26 पन्नों के फैसले में यह भी कहा, 'ऐसे जनप्रतिनिधियों को यह कहना शोभा नहीं देता कि अन्य लोग कानून, नियमों से बंधे हैं लेकिन वे खुद नहीं।' अदालत ने कहा, 'इस प्रकार, किसी भी कोण से देखने पर याचिकाओं में कोई आधार नहीं दिखाई देता और इन्हें खारिज किया जाता है। याचिकाकर्ताओं को 25-25 हजार रपये जुर्माना भी अदा करना होगा जो आज से तीन महीने के अंदर डीओई को जमा करना होगा।'
न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडला ने 2014 के आम चुनावों के बाद कांग्रेस के सत्ता में नहीं लौटने की संभावना के बीच पार्टी की राज्यसभा सदस्यों को बंगलों के आवंटन को ही संदिग्ध बताया।
उन्होंने कहा कि वह यह जानकर दुखी हैं कि दोनों सांसदों ने महज एक घर पर कब्जा रखने के लिए, जिसकी वे हकदार नहीं है मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की है।
न्यायाधीश ने कहा, 'मुझे संपदा निदेशालय डीओई की कार्रवाई गलत नजर नहीं आ रही। जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, ये प्रमाणित हो चुका है कि पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और अब राज्यसभा सदस्यों की हैसियत से याचिकाकर्ता टाइप-सात के आवास में रहने की हकदार हैं, टाइप-आठ में रहने की नहीं।'
उन्होंने कहा, 'इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं ने, उस समय जब लोकसभा के आम चुनाव, 2014 हो रहे थे, खुद के लिए अपने अधिकार से परे आवास आवंटित कराया।' न्यायाधीश ने दोनों पर 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा, 'मैं यह कहने के लिए विवश हूं कि जब कि याचिकाकर्ताओं की राजनीतिक पार्टी के सत्तारूढ़ दल बनने की संभावना खत्म हो रहीं थीं, इस स्तर पर उन्हें प्राइम आवासों का आवंटन अत्यंत संदिग्ध है।'
अदालत ने यह भी कहा कि यदि दोनों सांसदों को लगता था कि वे इन आवासों की हकदार हैं तो भी उन्हें अपना दावा करने के लिए नयी सरकार के सत्ता में आने का इंतजार करना चाहिए था।
अदालत ने फैसले में कहा, 'निष्कर्ष यह है कि याचिकाकर्ताओं अंबिका सोनी और कुमारी शैलजा ने यह जानते हुए कि उनकी राजनीतिक पार्टी के सत्ता में नहीं आने की स्थिति में वे उन घरों पर अपना दावा नहीं कर सकेंगी, उन्होंने अपने लिए डीओई से गलत तरह से आवंटन कराने का रास्ता चुना जो उनके अनुसार शहरी विकास मंत्रालय के नियंत्रण में होते हुए मंत्रालय के इशारे पर काम करता है।'
अदालत ने 26 पन्नों के फैसले में यह भी कहा, 'ऐसे जनप्रतिनिधियों को यह कहना शोभा नहीं देता कि अन्य लोग कानून, नियमों से बंधे हैं लेकिन वे खुद नहीं।' अदालत ने कहा, 'इस प्रकार, किसी भी कोण से देखने पर याचिकाओं में कोई आधार नहीं दिखाई देता और इन्हें खारिज किया जाता है। याचिकाकर्ताओं को 25-25 हजार रपये जुर्माना भी अदा करना होगा जो आज से तीन महीने के अंदर डीओई को जमा करना होगा।'
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