नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट के रुख के चलते हरियाणा में पंचायत चुनाव टल गए थे। राज्य सरकार ने कहा कि अंतरिम आदेश को देखते हुए चुनाव को टालना होगा। यानी अब अक्टूबर में चुनाव नहीं होगा। हरियाणा सरकार ने कहा कि शैक्षिक योग्यता की शर्त को वह नहीं हटाएगी।
दरअसल, सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़े सवाल उठा दिए। कोर्ट ने पूछा कि शैक्षणिक योग्यता पंचायत चुनाव में ही सदस्यों के लिए क्यों हैं। सासंदों और विधायकों के लिए यह नियम क्यों नहीं लागू होते।
हरियाणा सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि चुनाव लड़ना मौलिक अधिकार नहीं है। अब चुनाव घोषित हो चुके हैं और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रोक हटा लेनी चाहिए, क्योंकि इससे कंफ्यूजन हो गया है। किसी ने पुराने नियमों के मुताबिक नामांकन दाखिल किया है तो किसी ने नए के मुताबिक। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर बाद में आदेश जारी कर सकता है।
राज्य सरकार के नए नियमों के मुताबिक, चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग के लिए दसवीं पास, दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी है। इसके अलावा बिजली बिल के बकाया न होने और किसी केस में दोषी करार न होने के साथ में घर में टायलेट होने की शर्त भी रखी गई है।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि 83 फीसदी दलित और 71 फीसदी सामान्य महिलाओं के अलावा 56 फीसदी पुरुष इस कानून से प्रभावित हुए हैं। यह कानून लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है। हरियाणा में तीन चरणों में 4, 8 और 11 अक्तूबर को चुनाव होने थे।
ये हैं वे पांच प्वाइंट-
1. अगर कोई वोट दे सकता है तो वो चुनाव भी लड़ सकता है।
2. शिक्षित न होने की वजह से किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोक जा सकता क्योंकि सरकारी नीतियों के विफलता की वज़ह से लोग साक्षर नहीं हो पाये।
3. गरीब लोग अपने घर में टॉयलेट कहा से लगवाएंगे। ये सरकार का काम है कि इनके घरों में टॉयलेट लगवाए।
4. जिन किसानों के ऊपर बैंक का कर्ज है, उनको भी चुनाव लड़ने दिया जाए, क्योंकि सूखे की वजह से लोग प्रभावित हुए हैं।
5. जिन लोगों ने बिजली का बिल नहीं दिया उनके खिलाफ करवाई की जाए उन्हें चुनाव लड़ने से कैसे रोका जा सकता है।
बुधवार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।
दरअसल, सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़े सवाल उठा दिए। कोर्ट ने पूछा कि शैक्षणिक योग्यता पंचायत चुनाव में ही सदस्यों के लिए क्यों हैं। सासंदों और विधायकों के लिए यह नियम क्यों नहीं लागू होते।
हरियाणा सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि चुनाव लड़ना मौलिक अधिकार नहीं है। अब चुनाव घोषित हो चुके हैं और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रोक हटा लेनी चाहिए, क्योंकि इससे कंफ्यूजन हो गया है। किसी ने पुराने नियमों के मुताबिक नामांकन दाखिल किया है तो किसी ने नए के मुताबिक। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर बाद में आदेश जारी कर सकता है।
राज्य सरकार के नए नियमों के मुताबिक, चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग के लिए दसवीं पास, दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी है। इसके अलावा बिजली बिल के बकाया न होने और किसी केस में दोषी करार न होने के साथ में घर में टायलेट होने की शर्त भी रखी गई है।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि 83 फीसदी दलित और 71 फीसदी सामान्य महिलाओं के अलावा 56 फीसदी पुरुष इस कानून से प्रभावित हुए हैं। यह कानून लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है। हरियाणा में तीन चरणों में 4, 8 और 11 अक्तूबर को चुनाव होने थे।
ये हैं वे पांच प्वाइंट-
1. अगर कोई वोट दे सकता है तो वो चुनाव भी लड़ सकता है।
2. शिक्षित न होने की वजह से किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोक जा सकता क्योंकि सरकारी नीतियों के विफलता की वज़ह से लोग साक्षर नहीं हो पाये।
3. गरीब लोग अपने घर में टॉयलेट कहा से लगवाएंगे। ये सरकार का काम है कि इनके घरों में टॉयलेट लगवाए।
4. जिन किसानों के ऊपर बैंक का कर्ज है, उनको भी चुनाव लड़ने दिया जाए, क्योंकि सूखे की वजह से लोग प्रभावित हुए हैं।
5. जिन लोगों ने बिजली का बिल नहीं दिया उनके खिलाफ करवाई की जाए उन्हें चुनाव लड़ने से कैसे रोका जा सकता है।
बुधवार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।
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