गुजरात हाईकोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल (Hardik Patel) की मुश्किलें बढ़ गई हैं. हार्दिक पटेल की याचिका पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. हार्दिक पटेल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी कोई अर्जेंसी नहीं है. बता दें कि अपनी याचिका में हार्दिक पटेल ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने और सज़ा को निलंबित करने की मांग की है. हार्दिक पटेल (Hardik Patel) को फिलहाल लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दिया गया है. अगर सुप्रीम कोर्ट से हार्दिक पटेल को राहत नहीं मिलती है तो फिर हार्दिक पटेल का चुनाव लड़ना मुश्किल हो जाएगा.
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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि हार्दिक पटेल जुलाई 2018 में दोषी करार दिए गए थे. तो अब क्या अर्जेंसी है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार ने हार्दिक पटेल की याचिका का विरोध किया. SG तुषार मेहता ने कहा कि इस तरह सुनवाई नहीं हो सकती. याचिका में कहा गया है कि नामांकन का आखिरी दिन चार अप्रैल है लिहाजा सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाए. हार्दिक ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2007 के नवजोत सिंह सिद्धू फैसले का हवाला दिया है.
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याचिका में कहा गया है कि नवजोत सिंह सिद्धू केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोषसिद्धि याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट को ये भी देखना चाहिए कि इसका का व्यक्ति पर क्या प्रभाव होगा और उसे बरकरार रखा गया तो उसे कभी ना पूरा होने वाला नुकसान तो नहीं होगा. अगर अब दोषसिद्धि को निलंबित नहीं किया गया तो वो 2019 लोकसभा चुनाव लड़ने के अधिकार का खो देंगे.
इसी फैसले में कहा गया था कि ऐसे मामलों में मौजूद सबूतों पर भी गौर किया जाना चाहिए. उनके केस में कोई सीधा सबूत नहीं है और पूरा केस कही-सुनी पर आधारित है. याचिका में दोषसिद्धि को निलंबित कर हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है.
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दरअसल 2015 में हुए उपद्रव के मामले में 29 मार्च को गुजरात हाईकोर्ट से हार्दिक पटेल को बड़ा झटका लगा था. हाईकोर्ट ने हार्दिक पटेल की याचिका को ख़ारिज कर दिया था जिसमें मेहसाणा में 2015 के दंगा उपद्रव मामले में उनकी दोषसिद्धि को निलंबित करने की अपील की गई थी. दंगा भड़काने के आरोप में साल 2018 में निचली कोर्ट ने पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को दोषी ठहराते हुए दो साल की जेल की सजा सुनाई थी.
अगस्त 2018 में हाई कोर्ट ने उनकी दो साल की सजा तो निलंबित कर दी थी लेकिन दोषसिद्धि को बरकरार रखा था. इसके चलते वो जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुनाव लडने से अयोग्य हो गए. दंगे 23 जुलाई, 2015 को हुए थे और उनके नेतृत्व में पाटीदारों ने पहली बार रैली की थी.
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