शहीद हंगपान दादा
तिराप:
चीन से लगी सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश के तिराप जिले के रहने वाले हवलदार हंगपान दादा का शनिवार को अपने गांव में अंतिम संस्कार होगा। दुनिया से जाने से पहले असम रेजीमेंट के नॉन कमीशंड अफसर ने ऐसी बहादुरी दिखायी कि हर किसी का सिर सम्मान से झुक गया। मौसम खराब था, चारो तरफ धुंध, कई फुट सिर्फ और सिर्फ बर्फ और ऊंचाई 12000 फीट। फिर भी वह अपनी जान की परवाह किए बगैर साथियों के साथ डटा रहा। इसके बाद उन्होंने अपनी सेना की परंपरा को निभाते हुए सर्वोच्च बलिदान दे दिया।
पीओके की तरफ से घुसपैठ
कश्मीर के लाइन ऑफ कंट्रोल के पास उन्होंने शमसाबरी रेंज में 12000 फुट की ऊंचाई वाले इलाके में पीओके की तरफ से घुसपैठ की कोशिश कर रहे चार आतंकियों से लोहा लिया। ये आतंकी भारी हथियारों से लैस थे। जब दादा ने एलओसी पर आतंकी मूवमेंट देखी तो उन्हें मुठभेड़ के लिए ललकारने में जरा भी वक्त नहीं गंवाया।
अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे हंगपान ने गोलीबारी में घायल होने के बावजूद मोर्चा नही छोड़ा। शहीद होने वाले 37 साल के हवलदार दादा ने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया और चारों आतंकियों को मार गिराया। दादा पिछले साल ही ऊंचाई वाले रेंज में तैनात किए गए थे।
असम रेजीमेंट में थे दादा
1997 में सेना की असम रेजीमेंट में शामिल होने वाले दादा 35 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे। यह बल अभी आतंकवाद विरोधी अभियानों में हिस्सा लेता है। सेना का यह हवलदार अपनी मर्जी से आतंकवादियों के खिलाफ लड़ने के लिये गया था। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऊंचाई का फायदा उठाकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की तरफ से इस तरफ आने वाले आतंकियों के साथ मुठभेड़ में वह बुरी तरह घायल हो गए। मौके पर ही दो आतंकी ढेर हो गए और तीसरा शुक्रवार को मुठभेड़ के बाद पहाड़ी से लुढककर मारा गया। एक आतंकी को उन्होंने खुद गोली मारी थी।
अधिकारी ने बताया कि सुदूरवर्ती अरुणाचल प्रदेश में बोदुरिया गांव के निवासी दादा ने आतंकियों की ओर से भारी गोलीबारी के बीच अपने टीम के सदस्यों की जान बचाई। उनके शव को उनके पैतृक गांव ले जाया जा रहा है जहां पर सैन्य सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी। उनके पीछे अब उनकी पत्नी, दस साल की बेटी और सात साल का एक बेटा है।
पीओके की तरफ से घुसपैठ
कश्मीर के लाइन ऑफ कंट्रोल के पास उन्होंने शमसाबरी रेंज में 12000 फुट की ऊंचाई वाले इलाके में पीओके की तरफ से घुसपैठ की कोशिश कर रहे चार आतंकियों से लोहा लिया। ये आतंकी भारी हथियारों से लैस थे। जब दादा ने एलओसी पर आतंकी मूवमेंट देखी तो उन्हें मुठभेड़ के लिए ललकारने में जरा भी वक्त नहीं गंवाया।
अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे हंगपान ने गोलीबारी में घायल होने के बावजूद मोर्चा नही छोड़ा। शहीद होने वाले 37 साल के हवलदार दादा ने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया और चारों आतंकियों को मार गिराया। दादा पिछले साल ही ऊंचाई वाले रेंज में तैनात किए गए थे।
शमसाबरी रेंज
असम रेजीमेंट में थे दादा
1997 में सेना की असम रेजीमेंट में शामिल होने वाले दादा 35 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे। यह बल अभी आतंकवाद विरोधी अभियानों में हिस्सा लेता है। सेना का यह हवलदार अपनी मर्जी से आतंकवादियों के खिलाफ लड़ने के लिये गया था। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऊंचाई का फायदा उठाकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की तरफ से इस तरफ आने वाले आतंकियों के साथ मुठभेड़ में वह बुरी तरह घायल हो गए। मौके पर ही दो आतंकी ढेर हो गए और तीसरा शुक्रवार को मुठभेड़ के बाद पहाड़ी से लुढककर मारा गया। एक आतंकी को उन्होंने खुद गोली मारी थी।
अधिकारी ने बताया कि सुदूरवर्ती अरुणाचल प्रदेश में बोदुरिया गांव के निवासी दादा ने आतंकियों की ओर से भारी गोलीबारी के बीच अपने टीम के सदस्यों की जान बचाई। उनके शव को उनके पैतृक गांव ले जाया जा रहा है जहां पर सैन्य सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी। उनके पीछे अब उनकी पत्नी, दस साल की बेटी और सात साल का एक बेटा है।
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