तिरूवनंतपुरम:
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात मलयालम कवि, गीतकार और पर्यावरणविद ओएनवी कुरूप का शनिवार को दिल का दौरा पड़ने से एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 84 साल के थे। उनके परिवार में पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है। कुछ समय से बीमार चल रहे कुरूप को दो दिन पहले यहां एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और वह जीवनरक्षक प्रणाली पर थे।
अस्पताल के सूत्रों के अनुसार उन्होंने प्रात: चार बजकर 49 मिनट पर अंतिम सांस ली। मलयालम साहित्य में अपने बहुमूल्य योगदान के अलावा वह मलयालम फिल्म उद्योग और रंगमंच से जुड़े थे । वह केरल पीपुल्स आर्ट्स क्लब के कई नाटकों का हिस्सा रहे थे। इस क्लब ने केरल में क्रांतिकारी आंदोलनों में एक बड़ी पहचान बनाई।
‘कलाम मारून्नु’(956) उनकी पहली फिल्म थी, जो प्रसिद्ध मलयालम संगीतकार जी देवराजन की भी पहली फिल्म थी। कुरूप ने अपने नाट्य गानों और रचनाओं के माध्यम से राज्य में प्रगतिशील आंदोलनों में भी योगदान दिया। उन्होंने नाटकों और एल्बमों के लिए कई गानों के अलावा 200 से अधिक फिल्मों के लिए 900 से अधिक गाने लिखे।
कई पुरस्कार ग्रहण करने वाले कुरूप को राष्ट्र ने 2007 में ज्ञानपीठ और 2011 में पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया। वह मलयालम भाषा में देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान को प्राप्त करने वाले पांचवें साहित्यकार थे। उनसे पहले जी शंकर कुरूप, एस के पोट्टेक्कट, थकझी शिवशंकर पिल्लै और एम टी वासुदेवन नायर को यह सम्मान मिला था।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
अस्पताल के सूत्रों के अनुसार उन्होंने प्रात: चार बजकर 49 मिनट पर अंतिम सांस ली। मलयालम साहित्य में अपने बहुमूल्य योगदान के अलावा वह मलयालम फिल्म उद्योग और रंगमंच से जुड़े थे । वह केरल पीपुल्स आर्ट्स क्लब के कई नाटकों का हिस्सा रहे थे। इस क्लब ने केरल में क्रांतिकारी आंदोलनों में एक बड़ी पहचान बनाई।
‘कलाम मारून्नु’(956) उनकी पहली फिल्म थी, जो प्रसिद्ध मलयालम संगीतकार जी देवराजन की भी पहली फिल्म थी। कुरूप ने अपने नाट्य गानों और रचनाओं के माध्यम से राज्य में प्रगतिशील आंदोलनों में भी योगदान दिया। उन्होंने नाटकों और एल्बमों के लिए कई गानों के अलावा 200 से अधिक फिल्मों के लिए 900 से अधिक गाने लिखे।
कई पुरस्कार ग्रहण करने वाले कुरूप को राष्ट्र ने 2007 में ज्ञानपीठ और 2011 में पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया। वह मलयालम भाषा में देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान को प्राप्त करने वाले पांचवें साहित्यकार थे। उनसे पहले जी शंकर कुरूप, एस के पोट्टेक्कट, थकझी शिवशंकर पिल्लै और एम टी वासुदेवन नायर को यह सम्मान मिला था।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं