गुजरात के बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से झटका मिला है. निचली अदालत में फिर से ट्रायल शुरु नहीं होगा. कुछ गवाहों को कोर्ट में बुलाने की याचिका खारिज कर दी गई है. अब निचली अदालत के फैसला सुनाने का रास्ता साफ हो गया है. ये करीब 30 साल पुराना हिरासत में मौत से जुड़ा मामला है. अब इस मामले में गुजरात की निचली अदालत जामनगर 20 जून को फैसला सुनाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने संजीव भट्ट से कहा कि आपने हाई कोर्ट के 16 अप्रैल के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में पहले क्यों चुनौती नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में निचली अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है और फैसला सुनाने की तारीख तय कर दी है.
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गुजरात सरकार ने संजीव भट्ट की याचिका का विरोध किया. दरअसल बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के एक आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. भट्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के 16 अप्रैल के फैसले को चुनौती दी जिसमें हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले के ट्रायल में जिरह के लिए 14 में से सिर्फ तीन और गवाहों को बुलाने की इजाजत दी गई. हाईकोर्ट ने 20 जून तक जामनगर की कोर्ट को ट्रायल पूरा करने का निर्देश भी दिया है. संजीव भट्ट ने अपनी याचिका में कहा है कि इस घटना में 300 गवाह थे लेकिन अभियोजन पक्ष ने सिर्फ 32 को ही गवाही के लिए बुलाया. जबकि कम से कम 14 गवाह ऐसे हैं जिनकी गवाही इस केस के लिए जरूरी है.
ऐसे में बाकी 11 लोगों को भी गवाही के लिए बुलाने के निर्देश जारी हो और सुप्रीम कोर्ट 20 जून की समय सीमा को भी बढा दे. दरअसल 1990 में जामनगर में भारत बंद के दौरान हिंसा हुई थी. भट्ट उस वक्त जामनगर के ASP थे. इस दौरान 133 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया जिनमें 25 लोग घायल हुए थे और आठ लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. इस दौरान न्यायिक हिरासत में रहने के बाद एक आरोपी प्रभुदास माधवजी वैश्नानी की मौत हो गई और इस मामले में पुलिस हिरासत में मारपीट का आरोप लगाया गया. इस संबंध में संजीव भट्ट व अन्य पुलिसवालों के खिलाफ FIR दर्ज कर कार्रवाई शुरु हुई।लेकिन ये मुकदमा चलाने की गुजरात सरकार ने इजाजत नहीं दी. 2011 में राज्य सरकार ने भट्ट के खिलाफ ट्रायल की अनुमति दे दी.
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