गुजरात हाईकोर्ट की फाइल तस्वीर
अहमदाबाद:
गुजरात हाईकोर्ट आज राज्य के 2002 के दंगा पीड़ितों में से एक, पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफ़री की पत्नी ज़ाकिया जाफ़री द्वारा दायर याचिका की अंतिम सुनवाई वहां की एक निचली अदालत में करेगी। ज़ाकिया जाफ़री ने अपनी याचिका में गुजरात के पूर्व मुख़्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 58 लोगों को क्लीन चिट दिए जाने के कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।
ज़ाकिया जाफ़री के पति और पूर्व सांसद एहजान जाफ़री उन 68 लोगों में से एक थे जिनकी मौत अहमदाबाद के गुलबर्गा सोसायटी में 2002 के दंगों के दौरान हमले में हुई थी।
ज़ाकिया जाफ़री का आरोप था कि इन दंगों में तब के गुजरात के मुख़्यमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य लोगों की मिलीभगत है। ज़ाकिया ने इस मामले में 2014 मार्च को हाईकोर्ट में उस वक्त अपील की थी जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त स्पेशल इंनवेस्टिगेटिव टीम की क्लोज़र रिपोर्ट का लोअर कोर्ट ने समर्थन किया था।
निचली कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार ने दंगों के दौरान में सभी ज़रुरी प्रक्रिया पूरी की थी और वहां सुरक्षा-व्यवस्था बरकार रखने के लिए हर मुमकिन कदम उठाया था।
निचली कोर्ट, एसआईटी के उस बात से भी सहमत थी जिसमें ये कहा गया था कि नरेंद्र मोदी ने गोधरा हत्याकांड के बाद वहाँ लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने और बिगड़ती स्थिती को संभालने के लिए कम से कम समय में सभी ज़रुरी कदम उठाए थे।
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई लगभग एक साल के लिए स्थगित कर दी गई थी, क्योंकि इस केस के भारी-भरकम रिकॉर्ड्स का गुजराती से हिंदी में अनुवाद किया जाना था।
ज़ाकिया जाफ़री के पति और पूर्व सांसद एहजान जाफ़री उन 68 लोगों में से एक थे जिनकी मौत अहमदाबाद के गुलबर्गा सोसायटी में 2002 के दंगों के दौरान हमले में हुई थी।
ज़ाकिया जाफ़री का आरोप था कि इन दंगों में तब के गुजरात के मुख़्यमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य लोगों की मिलीभगत है। ज़ाकिया ने इस मामले में 2014 मार्च को हाईकोर्ट में उस वक्त अपील की थी जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त स्पेशल इंनवेस्टिगेटिव टीम की क्लोज़र रिपोर्ट का लोअर कोर्ट ने समर्थन किया था।
निचली कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार ने दंगों के दौरान में सभी ज़रुरी प्रक्रिया पूरी की थी और वहां सुरक्षा-व्यवस्था बरकार रखने के लिए हर मुमकिन कदम उठाया था।
निचली कोर्ट, एसआईटी के उस बात से भी सहमत थी जिसमें ये कहा गया था कि नरेंद्र मोदी ने गोधरा हत्याकांड के बाद वहाँ लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने और बिगड़ती स्थिती को संभालने के लिए कम से कम समय में सभी ज़रुरी कदम उठाए थे।
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई लगभग एक साल के लिए स्थगित कर दी गई थी, क्योंकि इस केस के भारी-भरकम रिकॉर्ड्स का गुजराती से हिंदी में अनुवाद किया जाना था।
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