उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को हरीश रावत ने चुनौती दी है। (फाइल फोटो)
नैनीताल:
उत्तराखंड में पिछले माह विवादित परिस्थतियों में लगाए गए राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा है कि राज्यपाल 'केंद्र सरकार का एजेंट नहीं' होता है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, 'आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए।' उन्होंने कहा कि राज्य के मामलों में दखल को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
उन्होंने कहा, 'क्या आप लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को नाटकीय ढंग से पांचवें वर्ष में गिरा सकते हैं? राज्यपाल ही ऐसे मामलों में फैसले लेता है। वह केंद्र का एजेंट नहीं है। उसने ऐसे मामले में फैसला लेते हुए शक्ति प्रदर्शन के लिए कहा है।
गौरतलब है कि इस माह की शुरुआत में कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया था कि सुनवाई को स्थगित कर दिया जाए। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हरीश रावत के शक्ति परीक्षण के एक दिन पहले, 27 मार्च को ही उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। अपने इस फैसले को लेकर सरकार ने एक हलफानामा दायर करते हुए दलील दी थी कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई थी।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, 'आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए।' उन्होंने कहा कि राज्य के मामलों में दखल को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
उन्होंने कहा, 'क्या आप लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को नाटकीय ढंग से पांचवें वर्ष में गिरा सकते हैं? राज्यपाल ही ऐसे मामलों में फैसले लेता है। वह केंद्र का एजेंट नहीं है। उसने ऐसे मामले में फैसला लेते हुए शक्ति प्रदर्शन के लिए कहा है।
गौरतलब है कि इस माह की शुरुआत में कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया था कि सुनवाई को स्थगित कर दिया जाए। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हरीश रावत के शक्ति परीक्षण के एक दिन पहले, 27 मार्च को ही उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। अपने इस फैसले को लेकर सरकार ने एक हलफानामा दायर करते हुए दलील दी थी कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई थी।
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