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This Article is From Jan 20, 2015

संजय दत्त की छुट्टियों पर हाईकोर्ट में बहस

संजय दत्त की छुट्टियों पर हाईकोर्ट में बहस
मुंबई:

भारत के लाखों क़ैदी फ़िल्म अभिनेता संजय दत्त की क़िस्मत पर जलते हैं। पिछले 365 दिन में क़रीब चार महीन खुली हवा में बिताते संजय दत्त को लगातार मिलती छुट्टियों पर सवाल उठते रहे हैं। इन छुट्टियों के समर्थन में कुछ भी गैरकानूनी न होने की बात कही जाती है, लेकिन कानून सब के लिए समान क्यों नहीं, इस सवाल ने एक याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में कायम रखी है।

इस याचिका के याचिकाकर्ता निखिल चौधरी खुद एक वकील हैं और संजय को मिलती पैरोल-फर्लो को वह छुट्टी के कानून से खिलवाड़ मानते हैं। दरअसल फर्लो और पैरोल दो अलग छुट्टियां हैं। फर्लो कैदी का कानूनी अधिकार है, जो अच्छे बर्ताव के ऐवज़ में मांगी जा सकती है। पैरोल जेल प्रबंधन का विशेषाधिकार है, जिसे कैदी के घर बीमारी, शादी, मौत या किसी आपात स्थिति में देने पर फैसला होता है। छुट्टी के कानून में 365 दिन की कैद पर एक बार पैरोल को मंज़ूरी है.

संजय दत्त 2013 नवंबर के अक्टूबर में 28 दिन की फर्लो पर बाहर निकले, फिर तुरंत ही दिसंबर 2013 में उन्हें एक महीने की पैरोल मिली। यह पैरोल एक-एक महीने के हिसाब से 21 मार्च 2013 तक बढ़ा। इसके बाद दिसंबर 2014 में संजय को फिर 14 दिन की फ़र्लो मिली गई।

निखिल चौधरी ने यह गणित समझाते हुए एनडीटीवी से कहा, 'यूं तो संजय दत्त को मार्च 2015 से पहले बाहर आना ही नहीं चाहिए था, लेकिन तीन महीने एक मुश्त पैरोल बिताने के बाद आठवें महीने में फर्लो पर बाहर निकले संजय दत्त क़ानून के मुताबिक आज से डेढ़ महीने बाद फिर पैरोल के लिए अर्ज़ी दे सकते हैं। ये पैरोल क़ानून का दुरुपयोग है।'

विपक्ष में रहते हुए संजय दत्त की सहूलियतों को सियासी मुद्दा बनाती बीजेपी सरकार के सूत्रों ने फर्लो और पैरोल कानून और कड़े करने की घोषणा की है। हाईकोर्ट के सामने ऐसी घोषणाएं भले खानापूर्ति के लिए करे, सुनिश्चित करना होगा कि नए कानून में कोई फिर नया चोर-दरवाज़ा ना निकाले।

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