प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
बाज़ार में दाल की कीमतों पर नकेल कसने के लिए 13,000 मीट्रिक टन आयातित दाल भारत पहुंच चुकी है। लेकिन दिल्ली के सबसे बड़े नया बाज़ार अनाज मंडी में दाल व्यापारियों का दावा है कि इससे खुदरा बाज़ार में कीमतों पर असर नहीं पड़ेगा। वजह है कि केंद्र सरकार की आयातित 13000 टन दाल इस अनाज मंडी में नहीं उतारी जाएगी।
दरअसल केंद्र सरकार का इरादा सीधे राज्य सरकारों को ये दाल मुहैया कराने का है जिसे वो सस्ती दरों पर आम लोगों को अपनी दुकानों के ज़रिये बेच सकें। लेकिन ज़्यादातर राज्य सरकारें सस्ती दर पर ये साबुत दाल केंद्र से लेने को तैयार ही नहीं है। ऐसे में मंडियों में दाल के दाम पर इस आयात का कोई असर नहीं होगा।
दिल्ली के नया बाज़ार अनाज मंडी के दाल व्यापारी पुनीत गर्ग कहते हैं, "सरकार आयात की गई दाल बाज़ार में आसानी से उपलब्ध नहीं करा पा रही है। पिछले साल मई में अरहर दाल का थोक भाव 105 रुपये प्रति किलो था जो इस साल मई में 120 के आसपास है। वजह है कि पिछले साल व्यापारी ज़्यादा आयात कर रहे थे, इस बार सरकार ज्यादा कर रही है।"
सरकार बनी सबसे बड़ी आयातक
दरअसल बीते साल सरकार ने दाल कारोबारियों पर जो सख़्ती की, उसके नतीजे में अब कारोबारी ख़ुद दाल का आयात काफी कम कर चुके हैं। सरकार अब सबसे बड़ी आयातक हो गई है। खाद्य मंत्रालय ने राज्यों को 66 रुपये किलो ये दाल देने का फैसला किया। राज्य सरकारें इसे 120 रुपये किलो तक अपनी दुकानों में बेच सकती हैं लेकिन सिर्फ 6 राज्यों ने अब तक केंद्र से ये दाल ख़रीदी है जबकि राज्य, केंद्र से सस्ती दाल लेने को तैयार नहीं हैं।
उधर दाल व्यापारियों की दलील है कि सरकार अगर आयातित दाल सीधे ओपन बिडिंग के ज़रिये मंडियों में व्यापारियों को बेचती है तो इससे बाज़ार में दाल की कीमतों को नियंत्रित करने में काफी मदद मिलेगी। नया बाज़ार अनाजमंडी के दाल व्यापारी आनंद गर्ग कहते हैं, "खुले बाजार में अगर सरकार आयात की गई दाल मुहैया कराती है तो मार्केट क्रैश होगा...कीमतें और घटेंगी।"
दो साल के सूखे से वैसे भी दलहन बाजार में कम है। इस साल अगर मॉनसून उम्मीद के मुताबिक बेहतर रहा तो भी मंडी तक उसका असर देर से पहुंचेगा।
दरअसल केंद्र सरकार का इरादा सीधे राज्य सरकारों को ये दाल मुहैया कराने का है जिसे वो सस्ती दरों पर आम लोगों को अपनी दुकानों के ज़रिये बेच सकें। लेकिन ज़्यादातर राज्य सरकारें सस्ती दर पर ये साबुत दाल केंद्र से लेने को तैयार ही नहीं है। ऐसे में मंडियों में दाल के दाम पर इस आयात का कोई असर नहीं होगा।
दिल्ली के नया बाज़ार अनाज मंडी के दाल व्यापारी पुनीत गर्ग कहते हैं, "सरकार आयात की गई दाल बाज़ार में आसानी से उपलब्ध नहीं करा पा रही है। पिछले साल मई में अरहर दाल का थोक भाव 105 रुपये प्रति किलो था जो इस साल मई में 120 के आसपास है। वजह है कि पिछले साल व्यापारी ज़्यादा आयात कर रहे थे, इस बार सरकार ज्यादा कर रही है।"
सरकार बनी सबसे बड़ी आयातक
दरअसल बीते साल सरकार ने दाल कारोबारियों पर जो सख़्ती की, उसके नतीजे में अब कारोबारी ख़ुद दाल का आयात काफी कम कर चुके हैं। सरकार अब सबसे बड़ी आयातक हो गई है। खाद्य मंत्रालय ने राज्यों को 66 रुपये किलो ये दाल देने का फैसला किया। राज्य सरकारें इसे 120 रुपये किलो तक अपनी दुकानों में बेच सकती हैं लेकिन सिर्फ 6 राज्यों ने अब तक केंद्र से ये दाल ख़रीदी है जबकि राज्य, केंद्र से सस्ती दाल लेने को तैयार नहीं हैं।
उधर दाल व्यापारियों की दलील है कि सरकार अगर आयातित दाल सीधे ओपन बिडिंग के ज़रिये मंडियों में व्यापारियों को बेचती है तो इससे बाज़ार में दाल की कीमतों को नियंत्रित करने में काफी मदद मिलेगी। नया बाज़ार अनाजमंडी के दाल व्यापारी आनंद गर्ग कहते हैं, "खुले बाजार में अगर सरकार आयात की गई दाल मुहैया कराती है तो मार्केट क्रैश होगा...कीमतें और घटेंगी।"
दो साल के सूखे से वैसे भी दलहन बाजार में कम है। इस साल अगर मॉनसून उम्मीद के मुताबिक बेहतर रहा तो भी मंडी तक उसका असर देर से पहुंचेगा।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं