नई दिल्ली:
भ्रष्टाचार संबंधी मंत्रियों के समूह की बुधवार को बैठक हुई लेकिन उसमें आदर्श आचार संहिता को वैधानिक दर्जा दिए जाने के विवादित प्रस्ताव पर चर्चा नहीं हुई।
आचार संहिता को वैधानिक दर्जा दिए जाने का अर्थ होगा कि इसे लागू करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं रह जाएगा। चुनाव आयोग के अधिकारों में कटौती किए जाने के कथित कदम से उठे विवाद के बीच हुयी बैठक में सार्वजनिक खरीद विधेयक और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर एक समिति की रिपोर्ट पर भी चर्चा की गई।
वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में हुयी बैठक के बाद कार्मिक राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने कहा कि आचार संहिता को लेकर कुछ विवाद पैदा हो गया और उनके मंत्रालय द्वारा इंकार किए जाने के बाद भी ‘कुछ भ्रम बना हुआ है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं कहना चाहूंगा कि भ्रष्टाचार संबंधी मंत्रियों के समूह के कार्यक्षेत्र में आदर्श आचार संहिता नहीं है। ऐसे में आज हुयी बैठक में इस पर चर्चा नहीं की गयी।’
गौरतलब है कि इससे पहले खबर आ रही थी कि सरकार चुनावी आचार संहिता को संवैधानिक दर्जा देने की पहल कर रही है। जानकारों का मानना है कि यह चुनाव आयोग के पर कतरने की तैयारी है। उनका कहना है कि आचार संहिता को संवैधानिक दर्जा देने के बाद चुनाव आयोग इस मामले में शिकायत मिलने पर भी कुछ नहीं कर पाएगा और सारे मामले अदालत में ही सुलझाए जाएंगे। और देश में कोर्ट में मामला जाने पर क्या हाल होता है यह सभी को पता है।
एनडीटीवी को एक दस्तावेज़ मिला जिसमें लिखा है कि मंत्री समूह का ये भी विचार है कि आचार संहिता विकास परियोजनाओं को रोकने के रास्ते में सबसे बड़ा बहाना बनता है, इसलिए क़ानून मंत्री के आग्रह पर वह इस मुद्दे पर विचार को तैयार है। यह भी सुझाव दिया गया कि क़ानून विभाग उन पहलुओं को भी देखे जहां चुनाव आयोग के अधिशासी आदेशों को वैधानिक शक्ल दिए जाने की ज़रूरत है।
आचार संहिता को वैधानिक रूप देने की सरकार की कोशिश पर चुनाव आयोग ने प्रतिक्रिया दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि अगर यह सही है तो ये एक बड़ा ही ग़लत कदम है जो चुनाव आयोग की ताकतें कम करेगा। चुनाव आचार संहिता पिछले बीस साल से सभी इम्तिहानों पर खरी उतरी है। जिस तरह से देश में चुनाव कराए गए हैं उसकी सभी ने प्रशंसा की है।
चुनाव आचार संहिता को वैधानिक शक्ल देने की कोशिश चुनाव आयोग की ताकत कम करने की कोशिश है। एक बार अदालतों को नेताओं के आचार संहिता तोड़ने के मामलों के फ़ैसले का अधिकार मिल गया तो ऐसे केस सालों खींचते रहेंगे और दोषी सत्ता के मज़े लूटते रहेंगे। जनता कभी इसकी मंज़ूरी नहीं देगी।
आचार संहिता को वैधानिक दर्जा दिए जाने का अर्थ होगा कि इसे लागू करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं रह जाएगा। चुनाव आयोग के अधिकारों में कटौती किए जाने के कथित कदम से उठे विवाद के बीच हुयी बैठक में सार्वजनिक खरीद विधेयक और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर एक समिति की रिपोर्ट पर भी चर्चा की गई।
वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में हुयी बैठक के बाद कार्मिक राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने कहा कि आचार संहिता को लेकर कुछ विवाद पैदा हो गया और उनके मंत्रालय द्वारा इंकार किए जाने के बाद भी ‘कुछ भ्रम बना हुआ है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं कहना चाहूंगा कि भ्रष्टाचार संबंधी मंत्रियों के समूह के कार्यक्षेत्र में आदर्श आचार संहिता नहीं है। ऐसे में आज हुयी बैठक में इस पर चर्चा नहीं की गयी।’
गौरतलब है कि इससे पहले खबर आ रही थी कि सरकार चुनावी आचार संहिता को संवैधानिक दर्जा देने की पहल कर रही है। जानकारों का मानना है कि यह चुनाव आयोग के पर कतरने की तैयारी है। उनका कहना है कि आचार संहिता को संवैधानिक दर्जा देने के बाद चुनाव आयोग इस मामले में शिकायत मिलने पर भी कुछ नहीं कर पाएगा और सारे मामले अदालत में ही सुलझाए जाएंगे। और देश में कोर्ट में मामला जाने पर क्या हाल होता है यह सभी को पता है।
एनडीटीवी को एक दस्तावेज़ मिला जिसमें लिखा है कि मंत्री समूह का ये भी विचार है कि आचार संहिता विकास परियोजनाओं को रोकने के रास्ते में सबसे बड़ा बहाना बनता है, इसलिए क़ानून मंत्री के आग्रह पर वह इस मुद्दे पर विचार को तैयार है। यह भी सुझाव दिया गया कि क़ानून विभाग उन पहलुओं को भी देखे जहां चुनाव आयोग के अधिशासी आदेशों को वैधानिक शक्ल दिए जाने की ज़रूरत है।
आचार संहिता को वैधानिक रूप देने की सरकार की कोशिश पर चुनाव आयोग ने प्रतिक्रिया दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि अगर यह सही है तो ये एक बड़ा ही ग़लत कदम है जो चुनाव आयोग की ताकतें कम करेगा। चुनाव आचार संहिता पिछले बीस साल से सभी इम्तिहानों पर खरी उतरी है। जिस तरह से देश में चुनाव कराए गए हैं उसकी सभी ने प्रशंसा की है।
चुनाव आचार संहिता को वैधानिक शक्ल देने की कोशिश चुनाव आयोग की ताकत कम करने की कोशिश है। एक बार अदालतों को नेताओं के आचार संहिता तोड़ने के मामलों के फ़ैसले का अधिकार मिल गया तो ऐसे केस सालों खींचते रहेंगे और दोषी सत्ता के मज़े लूटते रहेंगे। जनता कभी इसकी मंज़ूरी नहीं देगी।
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