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This Article is From Dec 04, 2020

ग्लोबल टीचर प्राइज विजेता रंजीत सिंह दिसाले ने एनडीटीवी से कहा, 'चाहता हूं कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय शिक्षकों को मिले यह पुरस्कार'

ग्लोबल टीचर प्राइज 2020 सोलापुर के शिक्षक रंजीत सिंह दिसाले को मिला है. लंदन में घोषित किए गए पुरस्कार के दौरान उनकी काफी तारीफ की गई.

रंजीत सिंह दिसाले (फाइल फोटो).

नई दिल्ली:

ग्लोबल टीचर प्राइज 2020 सोलापुर के शिक्षक रंजीत सिंह दिसाले को मिला है. लंदन में घोषित किए गए पुरस्कार के दौरान उनकी काफी तारीफ की गई. सोलापुर के एक प्राइमरी स्कूल के शिक्षक दिसाले ने विपरीत परिस्थिति में स्कूल के बच्चों के लिए स्थानीय भाषा में किताबों का इंतजाम किया. साथ ही साथ क्यूआर कोड भी उपलब्ध कराए. दिसाले ने स्कूल में छात्रों की उपस्थिति को भी बढ़ाने में मदद की. यही नहीं उनकी कोशिशों से इलाके में कम उम्र में बच्चों की शादियां भी कम होने लगीं. खास बात ये है कि 7 करोड़ की सम्मान राशि में से उन्होंने आधी राशि बाकी शिक्षकों के साथ शेयर करने का फैसला किया है. 

दिसाले ने एनडीटीवी से कहा कि ये मेरे लिए बहुत गर्व की बात है कि इस पुरस्कार को हासिल करने वाला मैं पहला भारतीय हूं. उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं देश के बाकी शिक्षक भी प्रेरणा लें और शिक्षा जगत में अच्छा काम करें.  अपने काम के बारे में बताते हुए दिसाले ने कहा कि मुझे गांव में, बच्चों में और उनके अभिभावकों में भी बदलाव नजर आया. अभिभावक अब शिक्षा की अहमियत को मानने लगे हैं. लड़कियों की शिक्षा को भी गंभीरता से लिया जाने लगा है. दिसाले ने कहा कि लड़कियों की 100 फीसदी उपस्थिति हो पाना ही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है. 

दिसाले ने कहा कि शिक्षा समाज की अधिकतर समस्याओं का समाधान कर देती है इसलिए हमारे इलाके में कम उम्र में की जाने वाली शादियां भी कम हुईं. दिसाले ने कहा कि हमने बच्चों की सिर्फ शिक्षित ही नहीं  किया बल्कि उनका मनोरंजन भी किया. बच्चों को मैंने Edutainment के जरिए सिखाया. हमने हर बच्चे को उसकी स्पीड से सिखाया. 

दिसाले ने कहा कि वे इंजीनियर बनना चाहते थे लेकिन उनके पिता के कहने पर वे शिक्षक बने. ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने सीखा कि कैसे बदलाव लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि बच्चों की मुस्कान से प्रेरित होता हूं. हमें शिक्षा के जरिए समाधान की बात सोचनी चाहिए. कई देशों में शांति के लिए काम कर रहे दिसाले ने कहा कि टीचर वेतन के लिए नहीं नतीजों के लिए काम करते हैं. राशि को बाकी शिक्षकों के साथ बांटे जाने पर उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया जिससे बाकी शिक्षक भी शिक्षा जगत की भलाई के लिए काम कर सकें.  

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