महात्मा गांधी की प्रतिमा
अहमदाबाद:
पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने घोषणा की है कि इस शनिवार तक अगर सरकार उन्हें उल्टी दांडी यात्रा, यानि दांडी से अहमदाबाद के साबरमती आश्रम तक की यात्रा निकालने की मंजूरी नहीं देगी तब भी वे किसी वक्त यह यात्रा निकालेंगे। पाटीदारों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करके आरक्षण का लाभ दिलवाने की मांग के समर्थन में यह यात्रा निकाली जाएगी।
जहां दांडी और आसपास के इलाकों में रहने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग इस तरह की किसी यात्रा को मंजूरी न देने की मांग को लेकर विरोध करते आ रहे हैं वहीं गांधी विचार से जुड़े लोग आहत महसूस कर रहे हैं।
धीमंत बढिया अपने परदादा के जमाने से साबरमती आश्रम में रहते हैं। उनके परदादा ने गांधीजी को सूत कातना सिखाया था। इतना ही नहीं वे दांडी यात्रा में 1930 में गांधीजी के साथ चले भी थे। पिछले कुछ सालों में धीमंत बढिया भी करीब 5 बार अलग-अलग ग्रुप के साथ दांडी यात्रा कर चुके हैं।
धीमंत कहते हैं कि 1933 में गांधीजी ने साबरमती आश्रम को हरिजन आश्रम कहा था। यहां अब भी ज्यादातर लोग जो रह रहे हैं, वे पिछड़े हैं। गांधीजी की इच्छा थी कि इस आश्रम को भविष्य में पिछड़ों के उद्धार में ही लगाया जाए। लेकिन बहुत दुख की बात है कि पाटीदार, जो समृद्ध समाज कहा जाता है, वह पिछड़ों के साथ अपने आपको शामिल करवाकर आरक्षण के उनके हक में हिस्सेदार बनना चाहता है। इतना ही नहीं, इस मांग के लिए गांधीजी के नाम या दांडी यात्रा का सहारा तक लिया जा रहा है।
कुछ साल पहले गांधीजी की दांडी यात्रा पर डाक्यूमेंट्री बना चुके टेलीविजन फिल्म निर्माता मनीषी जानी कहते हैं कि महत्वपूर्ण बात यह है कि गांधीजी की दांडी यात्रा के मुख्य कर्ताधर्ता सरदार पटेल ही थे। आज सरदार पटेल के नाम का ही पाटीदार समाज उपयोग कर रहा है।
जानी ने कहा कि जब गांधीजी यात्रा के दौरान पाटीदार बहुल गांवों में गए तो विशेष तौर पर उनको हिदायत दी थी कि वे समृद्ध हैं इसलिए पिछड़े वर्ग के उनके खेतों में मज़दूरी करने वाले लोगों के लिए काम करें। उनको आगे बढ़ाने के लिए मदद प्रदान करें। उन्होंने कहा था कि पाटीदार समाज पारस है और पारसमणी से पिछड़ों को आगे लाने के लिए काम करना है। दुख की बात है कि वही पाटीदार समाज आज उल्टी दांडी यात्रा निकालकर उसके विपरीत मांग भी कर रहा है।
अब देखना है कि गांधीविचार से जुड़े लोगों की इस प्रतिक्रिया के बाद पाटीदार समाज अपनी दांडी यात्रा को लेकर क्या रुख अपनाता है।
जहां दांडी और आसपास के इलाकों में रहने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग इस तरह की किसी यात्रा को मंजूरी न देने की मांग को लेकर विरोध करते आ रहे हैं वहीं गांधी विचार से जुड़े लोग आहत महसूस कर रहे हैं।
धीमंत बढिया अपने परदादा के जमाने से साबरमती आश्रम में रहते हैं। उनके परदादा ने गांधीजी को सूत कातना सिखाया था। इतना ही नहीं वे दांडी यात्रा में 1930 में गांधीजी के साथ चले भी थे। पिछले कुछ सालों में धीमंत बढिया भी करीब 5 बार अलग-अलग ग्रुप के साथ दांडी यात्रा कर चुके हैं।
धीमंत कहते हैं कि 1933 में गांधीजी ने साबरमती आश्रम को हरिजन आश्रम कहा था। यहां अब भी ज्यादातर लोग जो रह रहे हैं, वे पिछड़े हैं। गांधीजी की इच्छा थी कि इस आश्रम को भविष्य में पिछड़ों के उद्धार में ही लगाया जाए। लेकिन बहुत दुख की बात है कि पाटीदार, जो समृद्ध समाज कहा जाता है, वह पिछड़ों के साथ अपने आपको शामिल करवाकर आरक्षण के उनके हक में हिस्सेदार बनना चाहता है। इतना ही नहीं, इस मांग के लिए गांधीजी के नाम या दांडी यात्रा का सहारा तक लिया जा रहा है।
कुछ साल पहले गांधीजी की दांडी यात्रा पर डाक्यूमेंट्री बना चुके टेलीविजन फिल्म निर्माता मनीषी जानी कहते हैं कि महत्वपूर्ण बात यह है कि गांधीजी की दांडी यात्रा के मुख्य कर्ताधर्ता सरदार पटेल ही थे। आज सरदार पटेल के नाम का ही पाटीदार समाज उपयोग कर रहा है।
जानी ने कहा कि जब गांधीजी यात्रा के दौरान पाटीदार बहुल गांवों में गए तो विशेष तौर पर उनको हिदायत दी थी कि वे समृद्ध हैं इसलिए पिछड़े वर्ग के उनके खेतों में मज़दूरी करने वाले लोगों के लिए काम करें। उनको आगे बढ़ाने के लिए मदद प्रदान करें। उन्होंने कहा था कि पाटीदार समाज पारस है और पारसमणी से पिछड़ों को आगे लाने के लिए काम करना है। दुख की बात है कि वही पाटीदार समाज आज उल्टी दांडी यात्रा निकालकर उसके विपरीत मांग भी कर रहा है।
अब देखना है कि गांधीविचार से जुड़े लोगों की इस प्रतिक्रिया के बाद पाटीदार समाज अपनी दांडी यात्रा को लेकर क्या रुख अपनाता है।
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