कोरोना की इस महामारी (Coronavirus) में भी सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल देखने को मिल रही है. लखनऊ ने भी इसकी एक नायाब नजीर पेश की है. लखनऊ में मस्जिदों से कोरोना के मरीजों को मुफ्त में ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर (Free Oxygen Concentrator Lucknow Mosques) दिया जा रहा है. मस्जिद कमेटियों ने ये नियम बनाया है कि 50 फीसदी से ज्यादा ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर गैर मुस्लिम मरीजों को दिए जाएंगे. ताकि कोई ये न कह सके कि मस्जिद से सिर्फ मुसलमानों की मदद की जा रही है. लखनऊ की लालबाग जामा मस्जिद में दुआ भी हो रही है और दवा भी कर रहे हैं. नमाजियों की कतारों के साथ ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर, पीपीई किट, ऑक्सीजन रेगुलेटर के लिए भी लाइनें साफ देखी जा सकती हैं.
मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष जुनून नोमानी ने कहा कि काफी बांट चुके हैं और कुछ-कुछ बंटता रहता है. अभी और आएंगे. नोमानी का कहना है कि लोग यहां पर आते हैं और रोने लगते हैं. रात में 3-4 बजे भी हमारे पास लोगों के फोन आते हैं और मदद की गुहार लगाते हैं. हम ऐसे जरूरतमंदों की मदद में लगे हुए हैं. नोमानी से बातचीत के दौरान ही रचित कुकरेजा वहां पहुंचे. उनके पिता का ऑक्सीजन लेवल काफी कम हो गया है. कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें एक ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर मिल गया. रचित घबराए हुए आए थे और खुश होकर गए.
कुकरेजा ने कहा, मेरा एक दोस्त यहां से मस्जिद के सामने से निकल रहा था, उसने जब यहां पर बैनर देखा कि यहां पर कोरोना पीड़ितों की मदद की जा रही है तो उसने उन्हें ये जानकारी दी. कुकरेजा ने इसके बाद यहां फोन किया और उन्हें बताया गया कि आप बेफिक्र होकर यहां आ जाइए. प्रमोद शर्मा नाम के एक और शख्स यहां से ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर लेकर गए. उनके यहां सब खैरियत से हैं, लेकिन वो कंसेन्ट्रेटर ले जाकर पड़ोसियों की मदद कर रहे हैं. प्रमोद ने कहा कि उनके पड़ोस की आंटी हैं, जिनका बेटा नोएडा में है, लिहाजा हम उनकी मदद कर रहे हैं. उनका ऑक्सीजन लेवल काफी कम हो गया है पिछले तीन दिनों से. इससे पहले भी उनके लिए सहायता वो ले जा चुके हैं
नोमानी का कहना है कि शहर में हिन्दुओं की संख्या भी मुस्लिमों से ज्यादा है, लिहाजा ये बीमारी भी उनमें ज्यादा है. गैर मुस्लिमों के लिए 50 फीसदी मदद आवंटित करने का यही मकसद है. नोमानी का कहना है कि ये कोई बड़ी बात नहीं है, हम सिर्फ इंसानों की मदद कर रहे हैं. हम हिन्दू-मुसलमान नहीं देख रहे हैं. हर जरूरतमंद आदमी का यहां इस्तकबाल है. मस्जिद से कुछ दूर महें कुछ लोग रिक्शे वालों के लिए सेवइयां बनाते दिखे. एक गाड़ी में वो सेवइयां लेकर आए हैं.
इन मददगारों का कहना है कि दो साल से दोस्त या रिश्तेदार घर नहीं आते हैं, लिहाजा उनके हिस्से की सेवइयां इन गरीब रिक्शाचालकों को खिलाते हैं. बेपनाह तकलीफों के इस दौर में, एक ऐसे वक्त में जब हर तरफ मौतें हैं, आहें हैं, सिसकियां हैं... तब इंसान की खिदमत करने से बड़ी इबादत क्या हो सकती है.
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