यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पूर्व महिला जज के मामले में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला जज को फिर से नौकरी नहीं दे सकते. उसके द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप झूठे साबित हुए हैं.
मामले की जांच करने वाली समिति ने माना है कि हाईकोर्ट जज ने उसे परेशान नहीं किया. समिति ने उनके इस्तीफे के संभावित कारणों पर अनावश्यक रूप से टिप्पणी की. एक बार मंजूर होने के बाद इस्तीफा वापस नहीं लिया जा सकता. हाईकोर्ट या किसी और को उसके इस्तीफे के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को दो हफ्ते में इसका जवाब दाखिल करने को कहा है.
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दरअसल पूर्व महिला न्यायाधीश ने अपनी नौकरी वापस पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उन्होंने जांच पैनल की रिपोर्ट पर भरोसा किया कि परिस्थितियों ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया.
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इससे पहले अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने महिला जिला जज की ओर से दाखिल यौन शोषण के आरोपों वाली याचिका पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया था. महिला जज ने वर्ष 2014 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जज पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. महिला जज ने अब याचिका दायर कर नौकरी बहाल करने की मांग की है. जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने रजिस्ट्रार जनरल से छह हफ्ते में जवाब मांगा था.
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याचिका में राज्यसभा द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. वर्ष 2015 में जज पर अभियोग चलाने का प्रस्ताव लाया गया था, जिसके बाद राज्यसभा ने जज पर लगे आरोपों की जांच के लिए कमेटी गठित की थी. कमेटी में सुप्रीम कोर्ट की जज आर भानुमति, पूर्व जज मंजुला चिल्लूर और वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल शामिल थे. गत वर्ष दिसंबर महीने में कमेटी ने राज्यसभा को जांच रिपोर्ट सौंप दी थी.
VIDEO : हाईकोर्ट जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हाईकोर्ट जज पर लगे आरोपों को साबित नहीं किया जा सका. हालांकि रिपोर्ट में अकादमी सत्र के बीच महिला जज के तबादले को गलत बताया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि चूंकि महिला जज की बेटी को 12वीं की परीक्षा देनी थी, ऐसे में उनके लिए दूसरी जगह जाना संभव नहीं था. संभवत: ऐसे में महिला जज के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
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