तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मंत्री मदन मित्रा (फाइल फोटो)
कोलकाता:
तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मंत्री मदन मित्रा को 634 दिन जेल में बिताने के बाद आखिर जमानत मिल गई. सारदा चिटफंड घोटाले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. 12 दिसंबर 2014 को गिरफ्तार किए गए मित्रा तब से जेल में ही थे.
हालांकि अक्टूबर 2015 में निचली अदालत से उन्हें जमानत मिल गई थी और बहुत थोड़े समय के लिए वह जेल से बाहर भी रहे, लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने उनकी जमानत रद्द कर दी थी. अलीपुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने 15-15 लाख रुपये के दो बांड पर मित्रा को जमानत दे दी.
अदालत ने उन्हें 23 नवम्बर को पेश होने को कहा. अदालत ने मित्रा को यह भी निर्देश दिया कि वह अपना पासपोर्ट सीबीआई के पास जमा करा दें और हफ्ते में एक बार सीबीआई के जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित हों. उन्हें कोलकाता से बाहर नहीं जाने का भी निर्देश दिया गया.
मित्रा के वकील ने एक दिन पहले अदालत के समक्ष कहा था कि तृणमूल कांग्रेस के नेता अब प्रभावशाली व्यक्ति नहीं हैं क्योंकि वह न तो मंत्री हैं और न ही पार्टी में किसी पद पर हैं. मित्रा के वकील ने यह भी दावा किया कि सीबीआई जांच में विलम्ब कर रही है और जमानत नहीं दिए जाने का कोई कारण नहीं है. बहरहाल सीबीआई के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि जांच एजेंसी सारदा घोटाले में महत्वपूर्ण चरण में है और मित्रा को जमानत देने से जांच बाधित होगी क्योंकि पूर्व मंत्री अब भी काफी प्रभावशाली हैं और मामले में मुख्य गवाहों तक अब भी उनकी पहुंच है. इस बीच पार्टी ने उनकी रिहाई का स्वागत किया है.
पार्टी के महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा कि वे खुश हैं और पार्टी हमेशा उनके साथ खड़ी है. चटर्जी ने कहा, ‘‘हम आश्चर्यचकित हैं कि एक सामाजिक कार्यकर्ता (मदन मित्रा) इतना समय जेल में रहे, जबकि हत्या के आरोपी को तीन महीने के अंदर जमानत मिल जाती है.’’ चटर्जी ने कहा, ‘‘बहरहाल हम खुश हैं कि आज उन्हें जमानत मिल गई. पार्टी हमेशा मदन मित्रा के साथ है.’’
साल 2013 में सामने आए घोटाले की जांच से खुलासा हुआ था कि शारदा समूह ने कथित रूप से निवेशकों, विशेषकर ग्रामीण इलाकों के लोगों को 1200 करोड़ रुपये का चूना लगाया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया था जबकि तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं जिनमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की करीबी मुकुल राय भी शामिल हैं, से पूछताछ की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जून, 2014 में सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली थी.
(इनपुट भाष से...)
हालांकि अक्टूबर 2015 में निचली अदालत से उन्हें जमानत मिल गई थी और बहुत थोड़े समय के लिए वह जेल से बाहर भी रहे, लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने उनकी जमानत रद्द कर दी थी. अलीपुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने 15-15 लाख रुपये के दो बांड पर मित्रा को जमानत दे दी.
अदालत ने उन्हें 23 नवम्बर को पेश होने को कहा. अदालत ने मित्रा को यह भी निर्देश दिया कि वह अपना पासपोर्ट सीबीआई के पास जमा करा दें और हफ्ते में एक बार सीबीआई के जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित हों. उन्हें कोलकाता से बाहर नहीं जाने का भी निर्देश दिया गया.
मित्रा के वकील ने एक दिन पहले अदालत के समक्ष कहा था कि तृणमूल कांग्रेस के नेता अब प्रभावशाली व्यक्ति नहीं हैं क्योंकि वह न तो मंत्री हैं और न ही पार्टी में किसी पद पर हैं. मित्रा के वकील ने यह भी दावा किया कि सीबीआई जांच में विलम्ब कर रही है और जमानत नहीं दिए जाने का कोई कारण नहीं है. बहरहाल सीबीआई के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि जांच एजेंसी सारदा घोटाले में महत्वपूर्ण चरण में है और मित्रा को जमानत देने से जांच बाधित होगी क्योंकि पूर्व मंत्री अब भी काफी प्रभावशाली हैं और मामले में मुख्य गवाहों तक अब भी उनकी पहुंच है. इस बीच पार्टी ने उनकी रिहाई का स्वागत किया है.
पार्टी के महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा कि वे खुश हैं और पार्टी हमेशा उनके साथ खड़ी है. चटर्जी ने कहा, ‘‘हम आश्चर्यचकित हैं कि एक सामाजिक कार्यकर्ता (मदन मित्रा) इतना समय जेल में रहे, जबकि हत्या के आरोपी को तीन महीने के अंदर जमानत मिल जाती है.’’ चटर्जी ने कहा, ‘‘बहरहाल हम खुश हैं कि आज उन्हें जमानत मिल गई. पार्टी हमेशा मदन मित्रा के साथ है.’’
साल 2013 में सामने आए घोटाले की जांच से खुलासा हुआ था कि शारदा समूह ने कथित रूप से निवेशकों, विशेषकर ग्रामीण इलाकों के लोगों को 1200 करोड़ रुपये का चूना लगाया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया था जबकि तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं जिनमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की करीबी मुकुल राय भी शामिल हैं, से पूछताछ की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जून, 2014 में सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली थी.
(इनपुट भाष से...)
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