पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आज नागपुर में आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के मुख्यालय में एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे. यहां वह संघ शिक्षा वर्ग के तीसरे वर्ष के दिक्षांत समारोह में अपना भाषण देंगे. हालांकि, इस पर घमासाम अभी भी जारी है. कल तक कांग्रेस के नेता प्रणब मुखर्जी के इस फैसले की आलोचना कर रहे थे, मगर बुधवार को उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी उनके फैसले को सही नहीं ठहराया. हालांकि, अब प्रणब मुखर्जी के कार्यक्रम में किसी तरह के बदलाव के आसार नहीं दिख रहे हैं. वह नागपुर पहुंच चुके हैं और शाम को करीब 6 बजे संघ के मुख्यालय में अपना भाषण देंगे. सबकी नजरें सिर्फ इस बात पर होगी कि आखिर कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी क्या बोलते हैं, जो अपने राजनीतिक जीवन में संघ के विरोधी रहे हैं. मगर इन सबसे इतर आज हम पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के उन बड़े फैसलों की बात करेंगे, जिन्होंने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उऩ्होंने ली और उसकी वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है. पूर्व राष्ट्रपतियों की तुलना में अक्सर प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल को बेहतर माना जाता है क्योंकि इन्होंने अपने कार्यकाल में करीब 37 दया याचिकाएं खारिज की और कसाब और अफजल गुरु जैसे खूंखार आतंकियों को भी फांसी की सजा को मंजूरी दी.
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कसाब, अफजल जैसे खूंखार आतंकियों की सजा में नहीं की देरी
प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में मुंबई के 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु और 1993 मुंबई बम धमाके के दोषी याकूब मेनन की फांसी की सजा पर फौरन मुहर लगा दी. यानी प्रणब मुखर्जी ने बतौर राष्ट्रपति तीन बड़े आतंकी अजमल, अफजल और याकूब को फांसी दिलाने में अहम रोल निभाया और जल्द से जल्द मामले का निपटारा किया. बता दें कि कसाब को 2012, अफजल गुरु को 2013 और याकूब मेनन को 2015 में फांसी हुई थी.
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37 दया याचिकाएं खारिज कीं
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास पूरे कार्यकाल में करीब 37 क्षमायाचिका आए, जिसमें उन्होंने ज्यादातर में कोर्ट की सजा को बरकरार रखा. रेयरेस्ट ऑफ रेयर अपराध के लिए फांसी की सजा दी जाती है. प्रणब मुखर्जी ने 28 अपराधियों की फांसी को बरकरार रखा. कार्यकाल की समाप्ति के पहले मई महीने में भी प्रणब मुखर्जी ने रेप के दो मामलों में दोषियों को क्षमा देने से मना कर दिया. एक मामला इंदौर का था और दूसरा पुणे का.
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चार लोगों को दिया जीवनदान
पूरे कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी ने चार दया याचिका पर फांसी को उम्रकैद में बदला. ये बिहार में 1992 में अगड़ी जाति के 34 लोगों की हत्या के मामले में दोषी थे. राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने 2017 नववर्ष पर कृष्णा मोची, नन्हे लाल मोची, वीर कुंवर पासवान और धर्मेन्द्र सिंह उर्फ धारू सिंह की फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील कर दिया.
VIDEO: आज आरएसएस मुख्यालय में भाषण देंगे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
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