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This Article is From Aug 17, 2015

नीतीश कटारा हत्याकांड सोची समझी साजिश, लेकिन कम हो सकती है सजा : सुप्रीम कोर्ट

नीतीश कटारा हत्याकांड सोची समझी साजिश, लेकिन कम हो सकती है सजा : सुप्रीम कोर्ट
नीतीश कटारा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: साल 2002 में अंजाम दिए गए नीतीश कटारा हत्याकांड में विकास और विशाल यादव को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने इस हत्याकांड को दोनों भाइयों की सुनियोजित और गहरी साजिश करार दिया। हालांकि जज इस बात पर सहमत हुए कि दोनों भाइयों की 30 साल की सजा को कम किया जा सकता है और इस पर विचार किया जाएगा।

दरअसल नीतीश कटारा और विकास-विशाल की बहन भारती यादव एक-दूसरे से प्यार करते थे। भारती राजनीतिज्ञ डीपी यादव की बेटी हैं। नीतीश और भारती दिल्ली के पास ही एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए गए हुए थे, जहां से नीतीश का अपहरण कर लिया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई।

नीतीश कटारा हत्याकांड में सुखदेव पहलवान नाम के एक और अभियुक्त को दोषी ठहराया गया है। इसी साल फरवरी में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस और नीतीश कटारा की मां नीलम कटारा की उस अर्जी को ठुकरा दिया था, जिसमें दोषियों के लिए फांसी की सजा की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने दोनों को मौत की सजा देने की बजाय 30 साल जेल की सजा सुनाई थी।

नीतीश कटारा की लाश को बुरी तरह से जला दिया गया था, ताकि उसकी पहचान ना हो सके। जिस दिन शादी समारोह से नीतीश का अपहरण किया गया था उसके कई दिनों के बाद हाइवे से नीतीश की लाश मिली थी। पुलिस को नीतीश की पहचान पुख्ता करने के लिए डीएनए तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ा था।

लंबी सुनवाई के दौरान भारती यादव भी इस बात से मुकर गई कि उसका नीतीश कटारा के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था। भारती ने कहा कि वे तो एक बिजनेस स्कूल में मिले थे। नीतीश की मां नीलम कटारा ने अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए रसूकदार राजनीतिज्ञ डीपी यादव के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस देश में, 'सिर्फ अपराधी ही न्याय की गुहार' लगाते हैं। शीर्ष अदालत ने विकास और सुखदेव की अपील पर नोटिस जारी किए बगैर ही निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट के निष्कर्षों को बरकरार रखा।

हाईकोर्ट ने इन दोषियों के लिए उम्र कैद की सजा को 'साधारण' करार देते हुए उनकी सजा की अवधि बढ़ा दी थी। कोर्ट ने इन तीनों अपराधियों की सजा में बगैर किसी छूट के विकास और विशाल की सजा बढ़ाकर 30 साल और सुखदेव यादव उर्फ पहलवान की सजा की अवधि बढ़ाकर 25 साल कर दी थी।

न्यायमूर्ति जे.एस खेहड़ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने करीब दो घंटे तक वरिष्ठ वकील यू.आर. ललित सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यता नहीं है।

हालांकि कोर्ट ने तीनों मुजरिमों को दिए गए दंड के दायरे के मामले में दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। सुनवाई शुरू होते ही ललित ने कहा कि तीनों दोषियों को मृतक के सिर पर लगी चोट के जुर्म में उम्र कैद की सजा सुनायी गई है, इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि 'ऑनर किलिंग्स' में यह सब होता है।

पीठ ने इसके बाद निचली अदालत में अभियोजन के लगभग सभी गवाहों के अपने बयानों से 'मुकर जाने' का जिक्र किया और कहा, 'इससे पता चलता है कि आपकी कितनी ताकत है।' कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि अभियोजन का मुख्य गवाह अजय कटारा 'एक मनगढंत' गवाह था।

अजय कटारा ने ही गाजियाबाद में हापुड़ चुंगी पर 16-17 फरवरी, 2002 की रात में टाटा सफारी कार में तीनों अभियुक्तों के साथ पीड़ित को अंतिम बार जीवित देखा था। पीठ ने कहा कि सभी गवाह अपने बयान से मुकर गए थे और सिर्फ इसी व्यक्ति ने अभियुक्तों के खिलाफ बयान दर्ज कराया था और 'आप इसकी गवाही को चूर-चूर करना चाहते हैं। आप हमें कुछ सुस्पष्ट दिखाइए। अन्य हम आपके पक्ष में नहीं हैं।'

कोर्ट ने कटारा की गवाही को भरोसेमंद बताते हुए कहा कि इस व्यक्ति ने 'जबर्दस्त साहस' दिखाया और 'यदि आप (वकील) अजय कटारा की गवाही को काट नहीं सकते हैं तो हम आपके साथ नहीं हैं।' हालांकि ललित ने न्यायाधीशों को संतुष्ट करने का भरसक प्रयास किया कि इस गवाह का, जो शाहदरा में रहता है, स्कूटर हापुड़ चुंगी के निकट देर रात 12.30 बजे के आसपास बीच सड़क पर खराब हो गया था, जिस वजह से टाटा सफारी को उसके पीछे रुकना पड़ा था।

ललित ने कहा कि एक व्यक्ति, जिसे अपने किराये के मकान का पता भी याद नहीं, इस घटना के एक महीने बाद पुलिस के पास पहुंचता है और बयान देता है कि वह तीनों अभियुक्तों को पहचानता है, जिनकी तस्वीरें टेलीविजन चैनलों सहित हर जगह थीं। उन्होंने दलील दी कि अजय 'भेजा हुआ' गवाह था। उन्होंने अजय के झूठ बोलने के अपने तर्क के समर्थन में जांच अधिकारी अनिल समानिया की गवाही का भी हवाला दिया लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को ठुकरा दिया।

निचली अदालत में अजय कटारा की नजर के बारे में महत्वपूर्ण सवाल पूछने की अनुमति नहीं दिए जाने के आरोप के बारे में कोर्ट ने टिप्पणी की, 'यदि वह आधी रात में स्कूटर चला सकता है, यदि वह सड़क पर देख सकता है तो वह आप सबको भी देख सकता है। इससे कुछ हल नहीं होता।'

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