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राज्यसभा में सोमवार को खाद्य सुरक्षा विधेयक ध्वनि मत से पारित हो गया। विधेयक लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है। अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधेयक कानून बन जाएगा।
करीब 10 घंटे तक चली चर्चा के बाद राज्यसभा में इसे मंजूरी दे दी गई। खाद्य सुरक्षा विधेयक पेश करते हुए खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने कहा कि यह विधेयक वहनीय दरों पर लोगों को खाद्य और पोषक तत्व की सुरक्षा प्रदान करेगा।
विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का चुनावी हथकंडा करार दिया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक, विभिन्न राज्यों में लागू मौजूदा खाद्य योजनाओं की नई 'पैकेजिंग' भर है, और इसमें नया कुछ नहीं है।
विपक्ष के आरोप पर कांग्रेस के नेताओं ने विधेयक को ऐतिहासिक करार दिया। उन्होंने कहा कि विधेयक गरीबों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराएगा।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने खाद्य सुरक्षा विधेयक के मौजूदा रूप पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि सरकार एक तरफ जनता को सस्ता भोजन उपलब्ध करा रही है, तो दूसरी तरफ ईंधन की कीमतें बढ़ाती जा रही है।
माकपा सदस्य सीताराम येचुरी ने विधेयक के मौजूदा स्वरूप में उन पक्षों को गिनाया, जिन पर उनकी पार्टी राजी नहीं है। उन्होंने कहा कि विधेयक में जनता के लिए जिस हकदारी का वादा किया गया है, वह सम्मान का जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है और इससे लोगों का पेट भी नहीं भरने वाला है।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने कहा कि गरीबों के लिए पहले भी शुरू की गई केंद्र सरकार की योजनाएं उनको लाभ दिलाने में विफल रही हैं, इसलिए खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के कुछ प्रावधानों ने देश के संघीय ढांचे का मजाक बना दिया है। राज्यसभा में तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, "यूपीए, अंडर प्रेशर एलायंस है और उसे विधेयक पारित करने की जल्दी है।"
खाद्य सुरक्षा विधेयक देश की 1.2 अरब आबादी के करीब एक तिहाई हिस्से को अत्यंत रियायती दर पर खाद्यान्न मुहैया कराने के उद्देश्य से लाया गया है। इससे करीब 80 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा। विधेयक के तहत लाभान्वितों को तीन रुपये प्रति किलो की दर पर गेंहू और दो रुपये प्रति किलो की दर से चावल तथा एक रुपये प्रति किलो की दर से मोटा अनाज मुहैया कराने की योजना है।
यह विधेयक कांग्रेस के 2009 के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा है और इसे 2014 के आम चुनाव के लिहाज से खेल पलटने वाला माना जा रहा है।
लोकसभा में 26 अगस्त को पारित विधेयक पर सरकार की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संसद से इस विधेयक को कानून का रूप प्रदान कर 'ऐतिहासिक कदम' उठाने का आग्रह किया था।
लोकसभा ने विधेयक को पारित करते हुए विपक्ष की ओर से पेश सभी 305 संशोधन प्रस्तावों को खारिज कर दिया और सरकार की ओर से पेश 11 संशोधन प्रस्तावों को स्वीकृति दे दी है।
संसद से पारित होने के बाद राज्य लाभार्थियों की पहचान कर सकेंगे और केंद्र सरकार अनाज के परिवहन का खर्च वहन करेगी।
यह विधेयक पहली बार 2011 में संसद में पेश हुआ और उसके बाद यह एक वर्ष तक संसद की स्थायी समिति के पास रही। बाद में सरकार इसके लिए एक अध्यादेश लाई। संसद से पारित होने के बाद विधेयक उस अध्यादेश की जगह ले लेगा। संसद से पारित होने के बाद कानून का रूप देने के लिए इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
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