यह ख़बर 11 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

आपातकाल एक दुस्साहसिक कदम था, इंदिरा गांधी को चुकानी पड़ी भारी कीमत : किताब में प्रणब मुखर्जी

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब का कवर

नई दिल्ली:

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि 1975 का आपातकाल शायद 'टालने योग्य घटना' थी और इंदिरा गांधी को इस 'दुस्साहसिक' कदम के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी क्योंकि उस दौरान मौलिक अधिकार एवं राजनीतिक गतिविधि के निलंबन, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां और प्रेस सेंसरशिप का काफी प्रतिकूल असर पड़ा था।

उन अशांति से भरे दिनों में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में कनिष्ठ मंत्री रहे मुखर्जी ने हालांकि जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बनने वाले तत्कालीन विपक्ष को भी नहीं बख्शा है जिनके आंदोलन को उन्होंने 'दिशाहीन' बताया है। मुखर्जी ने अपनी पुस्तक 'द ड्रैमेटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी इयर्स' में भारत के आजादी के बाद के इतिहास के सबसे बड़े उथल-पुथल भरे काल के बारे में अपने विचार लिखे हैं। पुस्तक अभी हाल ही में जारी हुई है।

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उन्होंने खुलासा किया है कि 1975 में जो आपातकाल लगाया गया था, उसके प्रावधानों के बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जानकारी नहीं थी और सिद्धार्थ शंकर राय के सुझाव पर उन्होंने यह निर्णय किया था।