क्या सरकार काले धन और भ्रष्टाचार के आरोपों के मामले में उस शर्मिंदगी से बच सकती थी जो उसे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस के बाद वोटिंग के वक्त झेलनी पड़ी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आक्रामक भाषण के बाद सरकार के पास विपक्ष पर बढ़त बनाने का मौका था लेकिन डिप्लोमेसी में वह पिछड़ गया। नतीजतन प्रस्ताव पर विपक्ष अपने संशोधन पर अड़ गया और सरकार हार गई।
परंपरा है कि विपक्ष धन्यवाद प्रस्ताव पर दिए गए अपने संशोधन वापस ले लेता है लेकिन मंगलवार को सीपीएम के सीताराम येचुरी जिस तरह से संशोधन पर अड़े और उन्होंने जिस तरह सदन में संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू से कहा कि 'सामान्य परिस्थितियों में मैं आपकी बात मान लेता लेकिन अभी मेरे पास कोई औऱ रास्ता नहीं है' उससे साफ लगता है कि सरकार विपक्ष को साथ लेने की अपनी कूटनीति में फेल हो गई।
प्रधानमंत्री मोदी ने करीब 12 घंटे चली लंबी बहस के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का जवाब देते हुए विपक्ष पर तीखे हमले किए। लेकिन सरकार के फ्लोर मैनेजर विपक्ष को उसकी अहमियत का एहसास कराने और उनके साथ तालमेल बनाने में फेल दिखे। सरकार ये भूल गई कि विपक्ष ने संशोधनों का प्रस्ताव किया है औऱ सरकार सदन में अल्पमत में है।
विपक्ष के नेता येचुरी ने 'भ्रष्टाचार रोकने और काले धन को वापस लाने में सरकार की नाकामी' पर अपना संशोधन भारी बहुमत से पास करा लिया। जब येचुरी इस संशोधन पर वोटिंग के लिए ज़ोर देने लगे तो सरकार के होश उड़ गए। संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने पहले येचुरी से मांग की कि वह अपना संशोधन वापस लें फिर वह विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद से मदद की गुहार करते दिखे। सरकार को आखिरी उम्मीद थी कि कांग्रेस शायद वोटिंग के वक्त उसका साथ दे दे लेकिन जब वेंकैया गुलाम नबी से मदद मांग रहे थे तो वह मुस्कुराते हुए अपनी मजबूरी जताते दिखे।
संसद के गलियारों में और बाहर विपक्षी सांसद अपनी इस छोटी सी जीत का जश्न मनाते दिखे। अहमद पटेल औऱ राजीव शुक्ला वामपंथी नेता सीताराम येचुरी को बधाई दे रहे थे। लेकिन विपक्ष ने इतना कड़ा कदम क्यों उठाया। विपक्षी सांसदों से बात करने पर पता चला कि प्रधानमंत्री के भाषण का तीखापन उन्हें घमंड भरा लगा।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के वक्त आनंद शर्मा और सीताराम येचुरी का नाम लेकर टिप्पणी की लेकिन जब ये दोनों नेता जवाब में टिप्पणी के लिए उठे तो प्रधानमंत्री ने उन्हें बोलने के लिए वक्त नहीं दिया। अमूमन प्रधानमंत्री बड़े नेताओं की बात सुनने के लिये बैठ जाते हैं लेकिन यह वक्ता के ऊपर है कि वह बैठे या नहीं।
विपक्षी नेता सीताराम येचुरी ने बाद में एनडीटीवी इंडिया से कहा, 'वह हमारे पूर्वजों पर टिप्पणी कर रहे थे। न तो हमें बीच में बोलने दिया, न स्पष्टीकरण देने दिया गया औऱ न ही प्रधानमंत्री ने भाषण के बाद सदन में रुकने की शिष्टता दिखाई। इसके बाद मेरे पास संशोधन पर वोटिंग के अलावा कोई चारा नहीं था।'
सरकार ने इसके जवाब में कहा कि विपक्ष को बोलने का पूरा मौका मिला और राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद स्पष्टीकरण मांगने की परंपरा नहीं है। रविशंकर प्रसाद सदन में कहते सुने गए कि 'आप देख लीजिए कि मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त कितनी बार अभिभाषण के जवाब में स्पष्टीकरण का मौका मिला है।' लेकिन विपक्ष मंगलवार को राज्यसभा में सरकार को मिले इस झटके को उसके (सरकार)अड़ियल रवैये से दिखाना चाहता है। कांग्रेस सांसद मधुसुदन मिस्त्री ने कहा, 'पीएम मोदी को समझना होगा की ऐसा घमंड नहीं चलेगा। यह संसद है और यहां उनको सबकी सुननी पड़ेगी। अगर नहीं सुना तो फिर यही हाल होगा।'
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