नई दिल्ली:
चुनाव सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि नामांकन के वक्त ही प्रत्याशियों को अपने साथ-साथ अपनी पत्नी व आश्रितों की आय के स्रोत का खुलासा करना होगा. अभी तक प्रत्याशियों को हलफनामे में सिर्फ चल-अचल संपत्तियों का ब्यौरा देना होता था.
सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और अपने परिवार की आय के स्रोत का खुलासा करे या नहीं. लोक प्रहरी एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था. लोक प्रहरी एनजीओ और ADR ने याचिका दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और अपने परिवार की आय के स्त्रोत का खुलासा भी करे. वहीं मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सांसद और विधायकों की संपत्ति में 500 गुना बढ़ोतरी को लेकर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया था कि अगर सांसद और विधायक ये बता भी दे कि उनकी आय में इतनी तेजी से बढ़ोतरी बिज़नेस कर के हुई तो सवाल उठता है कि सांसद और विधायक होते हुए आप कोई भी बिज़नेस कैसे कर सकते हैं.
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अप्रैल 2017 में अपने हलफनामे में चुनाव सुधारों को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी द्वारा अपनी, अपने जीवन साथी और आश्रितों की आय के स्त्रोत की जानकारी जरूरी करने को केंद्र तैयार है. केंद्र ने कहा कि काफी विचार करने के बाद इस मुद्दे पर नियमों में बदलाव का फैसला लिया गया है. जल्द ही इसके लिए नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा. हलफनामे में केंद्र ने ये भी कहा है कि उसने याचिकाकर्ता की ये बात भी मान ली है जिसमें कहा गया था कि प्रत्याशी से स्टेटमेंट लिया जाए कि वो जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत अयोग्य करार देने वाले प्रावधान में शामिल नहीं हैं.
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हालांकि अपने हलफनामे में केंद्र इस मुद्दे पर चुप्पी साधे है कि कोई जनप्रतिनिधि अगर किसी सरकारी या पब्लिक कंपनी में, कांट्रेक्ट वाली कंपनी में शेयर रखता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाए. केंद्र ने कहा है कि ये पोलिसी का मामला है. हालांकि केंद्र ने नामांकन में गलत जानकारी देने पर प्रत्याशी को अयोग्य करार देने के मामले का विरोध किया और कहा कि ये फैसला लेने का अधिकार विधायिका का है. इससे पहले चुनाव आयोग भी इस मामले में अपनी सहमति जता चुका है. चुनाव आयोग ने कहा था कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए नियमों में ये बदलाव जरूरी है. अभी तक के नियमों के मुताबिक प्रत्याशी को नामांकन के वक्त अपनी, जीवनसाथी और तीन आश्रितों की चल-अचल संपत्ति व देनदारी की जानकारी देनी होती है. लेकिन इसमें आय के स्रोत बताने का नियम नहीं है. इसी को लेकर NGO लोकप्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और परिवार की आय के स्रोत का खुलासा भी करे. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उस सील बंद लिफ़ाफ़े को खोला जिसमें सात लोकसभा सांसदों और 98 विधायकों द्वारा चुनावी हलफनामे में संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई जानकारी से अलग है. सरकार ने बताया है कि इन सभी के खिलाफ जांच चल रही है. जानकारी देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नामों को सार्वजनिक नहीं किया बल्कि कोर्ट स्टॉफ को कहा कि वापस इसे सील बंद कर दे. इससे पहले सीबीडीटी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि इन सांसदों और विधायकों के चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न के वेरिफिकेशन का जो परिणाम होगा उसे निर्वाचन आयोग के साथ साझा किया जाएगा.
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सीबीडीटी ने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत इसे साझा नहीं किया जा सकता. सीबीडीटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 26 लोकसभा सांसदों, 215 विधायकों और दो राज्यसभा सांसदों के वेरिफिकेशन रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है. हलफनामे में कहा गया कि इन नेताओं के चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में अपनी संपत्तियों के बारे में दी जानकारी का वेरिफिकेशन निर्वाचन आयोग और सीबीडीटी द्वारा तय किए गए मानकों के तहत हो रहा है. हलफनामे में कहा गया है कि चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी के वेरिफिकेशन रिपोर्ट के बाद अगर और जांच की जरूरत होगी तो उसे असेसिंग ऑफिसर के पास भेजा जाएगा. सीबीडीटी ने अपना जवाब लोकप्रहरी नामक संगठन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया है. याचिकाकर्ता संगठन ने आरोप लगाया था कि कई सांसदों और विधायकों की संपत्ति में भारी वृद्धि हुई है. संगठन के मुताबिक, 26 लोकसभा सांसद, 257 विधायक और 11 राज्यसभा सांसदों के पूर्व और वर्तमान चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी में बहुत अंतर है. इन सभी की संपत्तियों में खासी वृद्धि दर्ज की गई है. सीबीडीटी ने अपने हलफनामे में हालांकि यह भी कहा कि हर उम्मीदवारों द्वारा चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई संपत्तियों की जानकारी को वेरिफाई करना संभव नहीं है. जहां जरूरत हो तभी जांच की जाती है.
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सीबीटीडी ने यह भी कहा कि चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में संपत्तियों के बारे में दी जाने वाली जानकारी का स्वरूप अलग-अलग होता है. जहां चुनावी हलफनामे में बाजार भाव के हिसाब से उनकी संपत्ति और देनदारी की जानकारी होती है जबकि इनकम टैक्स रिटर्न में आय से संबंधित जानकारी होती है. उसमें संपत्तियों और देनदारी के बारे में जानकारी नहीं भी हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और अपने परिवार की आय के स्रोत का खुलासा करे या नहीं. लोक प्रहरी एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था. लोक प्रहरी एनजीओ और ADR ने याचिका दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और अपने परिवार की आय के स्त्रोत का खुलासा भी करे. वहीं मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सांसद और विधायकों की संपत्ति में 500 गुना बढ़ोतरी को लेकर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया था कि अगर सांसद और विधायक ये बता भी दे कि उनकी आय में इतनी तेजी से बढ़ोतरी बिज़नेस कर के हुई तो सवाल उठता है कि सांसद और विधायक होते हुए आप कोई भी बिज़नेस कैसे कर सकते हैं.
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अप्रैल 2017 में अपने हलफनामे में चुनाव सुधारों को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी द्वारा अपनी, अपने जीवन साथी और आश्रितों की आय के स्त्रोत की जानकारी जरूरी करने को केंद्र तैयार है. केंद्र ने कहा कि काफी विचार करने के बाद इस मुद्दे पर नियमों में बदलाव का फैसला लिया गया है. जल्द ही इसके लिए नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा. हलफनामे में केंद्र ने ये भी कहा है कि उसने याचिकाकर्ता की ये बात भी मान ली है जिसमें कहा गया था कि प्रत्याशी से स्टेटमेंट लिया जाए कि वो जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत अयोग्य करार देने वाले प्रावधान में शामिल नहीं हैं.
कावेरी जल विवाद में SC का अहम फैसला - तमिलनाडु का पानी घटाया, कर्नाटक को दिया
हालांकि अपने हलफनामे में केंद्र इस मुद्दे पर चुप्पी साधे है कि कोई जनप्रतिनिधि अगर किसी सरकारी या पब्लिक कंपनी में, कांट्रेक्ट वाली कंपनी में शेयर रखता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाए. केंद्र ने कहा है कि ये पोलिसी का मामला है. हालांकि केंद्र ने नामांकन में गलत जानकारी देने पर प्रत्याशी को अयोग्य करार देने के मामले का विरोध किया और कहा कि ये फैसला लेने का अधिकार विधायिका का है. इससे पहले चुनाव आयोग भी इस मामले में अपनी सहमति जता चुका है. चुनाव आयोग ने कहा था कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए नियमों में ये बदलाव जरूरी है. अभी तक के नियमों के मुताबिक प्रत्याशी को नामांकन के वक्त अपनी, जीवनसाथी और तीन आश्रितों की चल-अचल संपत्ति व देनदारी की जानकारी देनी होती है. लेकिन इसमें आय के स्रोत बताने का नियम नहीं है. इसी को लेकर NGO लोकप्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों को लेकर आदेश दे कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और परिवार की आय के स्रोत का खुलासा भी करे. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उस सील बंद लिफ़ाफ़े को खोला जिसमें सात लोकसभा सांसदों और 98 विधायकों द्वारा चुनावी हलफनामे में संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई जानकारी से अलग है. सरकार ने बताया है कि इन सभी के खिलाफ जांच चल रही है. जानकारी देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नामों को सार्वजनिक नहीं किया बल्कि कोर्ट स्टॉफ को कहा कि वापस इसे सील बंद कर दे. इससे पहले सीबीडीटी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि इन सांसदों और विधायकों के चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न के वेरिफिकेशन का जो परिणाम होगा उसे निर्वाचन आयोग के साथ साझा किया जाएगा.
घृणा अपराध पर सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी, धर्म के नाम पर हत्या को जायज नहीं ठहराया जा सकता
सीबीडीटी ने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत इसे साझा नहीं किया जा सकता. सीबीडीटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 26 लोकसभा सांसदों, 215 विधायकों और दो राज्यसभा सांसदों के वेरिफिकेशन रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है. हलफनामे में कहा गया कि इन नेताओं के चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में अपनी संपत्तियों के बारे में दी जानकारी का वेरिफिकेशन निर्वाचन आयोग और सीबीडीटी द्वारा तय किए गए मानकों के तहत हो रहा है. हलफनामे में कहा गया है कि चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी के वेरिफिकेशन रिपोर्ट के बाद अगर और जांच की जरूरत होगी तो उसे असेसिंग ऑफिसर के पास भेजा जाएगा. सीबीडीटी ने अपना जवाब लोकप्रहरी नामक संगठन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया है. याचिकाकर्ता संगठन ने आरोप लगाया था कि कई सांसदों और विधायकों की संपत्ति में भारी वृद्धि हुई है. संगठन के मुताबिक, 26 लोकसभा सांसद, 257 विधायक और 11 राज्यसभा सांसदों के पूर्व और वर्तमान चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्तियों के बारे में दी गई जानकारी में बहुत अंतर है. इन सभी की संपत्तियों में खासी वृद्धि दर्ज की गई है. सीबीडीटी ने अपने हलफनामे में हालांकि यह भी कहा कि हर उम्मीदवारों द्वारा चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई संपत्तियों की जानकारी को वेरिफाई करना संभव नहीं है. जहां जरूरत हो तभी जांच की जाती है.
120 साल पुराने कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला
सीबीटीडी ने यह भी कहा कि चुनावी हलफनामे और इनकम टैक्स रिटर्न में संपत्तियों के बारे में दी जाने वाली जानकारी का स्वरूप अलग-अलग होता है. जहां चुनावी हलफनामे में बाजार भाव के हिसाब से उनकी संपत्ति और देनदारी की जानकारी होती है जबकि इनकम टैक्स रिटर्न में आय से संबंधित जानकारी होती है. उसमें संपत्तियों और देनदारी के बारे में जानकारी नहीं भी हो सकती है.
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