राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद' मामले की सुनवाई (Ayodhya Case Hearing) के दौरान बुधवार को एक वकील के हस्तक्षेप करने पर उच्चतम न्यायालय ने नाराजगी जाहिर की. जब एक वकील ने अपनी बारी आए बगैर कुछ कहने की कोशिश की, तब प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, ‘देश के इस शीर्ष न्यायालय को किसी अन्य चीज में तब्दील नहीं करें. इसे देश का शीर्ष न्यायालय ही रहने दें.' न्यायालय ने यह टिप्पणी उस वक्त की गई, जब पीठ निर्मोही अखाड़े का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन को अयोध्या में विवादित स्थल पर कब्जे को लेकर दावे के समर्थन में साक्ष्य का जिक्र करने को कह रही थी.
बता दें, बुधवार को उच्चतम न्यायालय (Ayodhya Hearing) में दलील दी गयी कि करोड़ों श्रद्धालुओं की ‘अटूट आस्था' ही यह साबित करने के लिये पर्याप्त है कि अयोध्या में समूचा विवादित स्थल ही भगवान राम का जन्म स्थान है. शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर कब्जा होने संबंधी हिन्दू पक्षकारों का दावा साबित करने के लिये राजस्व रिकार्ड, अन्य दस्तावेज और मौखिक दस्तावेज ‘बहुत ही महत्वपूर्ण साक्ष्य' होंगे. इस विवाद में एक पक्षकार ‘राम लला विराजमान' की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन ने कहा कि राम जन्मभूमि अपने आप में ही हिन्दुओं के लिये मूर्ति का आदर्श और पूजा का स्थान हो गया है. उन्होंने पीठ से जानना चाहा कि इतनी सदियों के बाद इस स्थान पर ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में सबूत कैसे पेश किया जा सकता है.
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प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष बहस करते हुये परासरन ने सवाल किया, ‘इतनी सदियों के बाद हम यह कैसे साबित करेंगे कि भगवान राम का जन्म यहां हुआ था.' पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
परासरन ने कहा, ‘करोड़ों उपासना करने वालों और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था अपने आप में इस बात का साक्ष्य है कि यह स्थान ही भगवान राम का जन्म स्थान है.' उन्होंने कहा कि वाल्मीकि रामायण में भी इस बात का उल्लेख है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था. संविधान पीठ ने परासरन से सवाल किया कि क्या पहले कभी इस तरह के किसी धार्मिक व्यक्तित्व के जन्म के बारे में किसी अदालत में ऐसा कोई सवाल उठा था.
पीठ ने पूछा, ‘क्या बेथलेहम में ईसा मसीह के जन्म जैसा विषय दुनिया की किसी अदालत में उठा और उस पर विचार किया गया.' इस पर परासरन ने कहा कि वह इसका अध्ययन करके न्यायालय को सूचित करेंगे. परासरन ने अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 में विध्ंवस की घटना से सालों पहले विवादित ढांचे के भीतर मूर्तियां रखे जाने से संबंधित अनेक सवालों के जवाब दिये.
उन्होंने कहा कि मूर्तियों का रखना सही था या गलत, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि यह ढांचा मंदिर था या मस्जिद. उन्होंने कहा, ‘यदि यह गलत (मूर्तियां रखना) था, यह मान लिया जाये कि ऐसा करना लगातार गलत था तो यह सतत गलती उस समय खत्म हो गयी जब अदालत ने हस्तक्षेप किया और एक रिसीवर नियुक्त कर दिया. अदालत के आदेश पर रिसीवर द्वारा संपत्ति अपने कब्जे में रखना सतत गलती नहीं हो सकता.' परासरन ने कहा कि विवादित ढांचे के मंदिर या मस्जिद होने के बारे में सिर्फ इस आधार पर ही फैसला हो सकता है कि वहां कौन पूजा करता था. उन्होंने दलील दी कि मूर्तियां आज भी वहां विराजमान हैं. उन्होंने कहा, ‘‘भीतरी बरामदा या बाहरी बरामदा प्रासंगिक नहीं है. हम कहते हैं कि पूरा क्षेत्र ही रामजन्मभूमि है.'
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