दिल्ली के 109 डॉक्टरों ने कोरोना से गंवाई जान, बिहार और यूपी में भी चिकित्सकों पर कहर
हकीकत यह भी है कि सरकार ने बीमा योजना (50 Lacs Health Insurance Scheme Healthcare Workers) में जो सेवा शर्तें रखी हैं, उनसे ज्यादातर मुआवजा पाने की दावेदारी से ही बाहर हो गए हैं. डॉ. जयालाल का कहना है कि शर्तों के मुताबिक, डॉक्टर की मौत कोविड के लिए मान्यता प्राप्त सरकारी केंद्र में काम करते हुई होनी चाहिए. होम आइसोलेशन, कोविड के निजी संस्थानों या अन्य केंद्रों पर काम करते वक्त जान गंवाने वाले डॉक्टर इस दायरे में नहीं आते. कागजी दस्तावेजों के कारण भी मुआवजे के लिए पीड़ित परिवार भटक रहे हैं. ऐसे डॉक्टरों की मौत पर सारे रिकॉर्ड अस्पताल और संबद्ध डॉक्टर के परिवार के जरिये जिला प्रशासन को, वहां से राज्य सरकार को, वहां से केंद्र को भेजे जाते हैं. अगर जरा सी हस्ताक्षर की भी गड़बड़ी हो गई तो आवेदन खारिज हो गया. IMA अपनी ओर से 10 लाख रुपये की मदद दे रही है.
सीधे मुआवजा मिलता तो बेहतर होता...
आईएमए प्रेसिडेंट के मुताबिक, थर्ड पार्टी बीमा की जगह सरकार सीधे तौर पर डॉक्टरों की मौत पर मुआवजे का ऐलान करती तो ये परेशानियां नहीं होतीं. दिल्ली समेत कई राज्यों ने ऐसा किया भी. अकेले दिल्ली और बिहार प्रत्येक में 115 डॉक्टरों की मौत हुई है. जबकि 8 गर्भवती महिला डॉक्टरों ने दम तोड़ा है. डॉ. जयालाल ने कहा कि इनमें ज्यादातर सरकारी डॉक्टरों की मौत हुई है और पीड़ित परिवारों के चिकित्सकों को सीधी मदद के लिए आईएमए ने हेल्थ सेक्रेटरी से मुलाकात की थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
डॉक्टरों का सेंट्रल कैडर बनाया जाए...
महामारी में डॉक्टरों पर काम के भारी दबाव को कम करने के सवाल पर आईएमए प्रेसिडेंट ने कहा कि हमने कई बार डॉक्टरों के सेंट्रल कैडर की मांग सरकार से की है. कोरोना के दौरान ज्यादातर राज्यों के मेडिकल पूल में डॉक्टर काम कर रहे हैं.राज्यवार इनकी संख्या में भी काफी अंतर है. ज्यादा आबादी वाले उत्तर भारतीय राज्यों के मुकाबले दक्षिण भारत में डॉक्टरों की संख्या ज्यादा है. लिहाजा केंद्र को यूपीएससी की तरह डॉक्टरों के पूल का सेंट्रल कैडर तैयार करना चाहिए. ताकि जब भी महामारी या कोई और जरूरत आए तो ये डॉक्टर कहीं भी काम कर सकें. हम ऐसे हजारों डॉक्टरों की सूची भी केंद्र को दे चुके हैं. पैरामेडिकल की बुनियादी ट्रेनिंग के साथ स्वास्थ्यकर्मियों की मदद के लिए एनसीसी जैसे संगठन के सवाल पर डॉ. जयालाल ने कहा कि ट्रेंड हेल्थकेयर वर्कर चाहिए. महामारी में हजारों प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हुई.
हिंसा रोकने में राज्यों के कानून नाकाफी
कोरोना महामारी में डॉक्टरों पर हमले (Violence Against Doctors) पर डॉ. जयालाल (IMA President JA Jayalal) ने कहा कि 23 राज्यों ने डॉक्टरों पर हिंसा को लेकर कानून बनाए हैं, लेकिन इसमें एक समानता नहीं है कि कौन जांच करेगा, कितने वक्त में करेगा. हमारी मांग है कि केंद्रीय कानून लाकर सीआरपीसी और आईपीसी के विशेष प्रावधान किए जाएं.राजधानी में दिल्ली प्रोटेक्शन ऐक्ट बने हुए 11 साल हो गए हैं, लेकिन ज्यादातर पुलिस कमिश्नर ही ऐसे कानून से अनजान हैं.
अस्पताल प्रोटेक्टेड जोन घोषित हों...
हॉस्पिटल को प्रोटेक्टेड जोन घोषित किया जाए ताकि वहां सुरक्षा संबंधी जिम्मेदारी प्रशासन पर रहे. पिछले एक-डेढ़ साल में ही डॉक्टरों पर हमले के 320 से ज्यादा पंजीकृत मामले हुए हैं, जबकि बिना रजिस्टर्ड मामले भी बड़ी संख्या में रहे हैं. केंद्रीय कानून में डॉक्टरों से बदसलूकी, गाली-गलौच, धमकी जैसे अपराधों को भी शामिल किया जाए.
डॉक्टरों के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं...
देश में महामारी से लड़ रहे डॉक्टरों के लिए कोई आर्थिक प्रोत्साहन या प्रमोशन जैसी कोई स्कीम नहीं है. कोविड होने पर इलाज का खर्च भी उन्हें ही वहन करना है. पहली लहर में तो कोरोना संक्रमित होने पर 14 दिन क्वारंटाइन की सुविधा थी, जिसे दूसरी लहर में घटा दिया गया. उनके काम के घंटे भी बढ़ा दिए गए और यह भी कई डॉक्टरों के लिए जानलेवा साबित हुआ. आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने कहा कि अमेरिका में कोरोना के दौरान प्रति डॉक्टर 1000 डॉलर का इंसेंटिव दिया गया. ब्रिटेन ने कोरोना महामारी के दौरान डॉक्टरों को किसी भी मुकदमेबाजी से बचाने के लिए एक कानून ही पारित कर दिया, क्योंकि डॉक्टर इस महामारी में अपने क्लीनिकल सेंस ही मरीजों की जान बचाने में लगे रहे.
मारे गए डॉक्टरों को शहीद का दर्जा मिले...
हमारी मांग है कि सरकार इन्हें कोविड शहीद (Covid Martyr) का दर्जा दे और पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे के साथ अन्य सुविधाएं दी जाएं. डॉक्टरों की भारी कमी है, लिहाजा हमारी मांग है कि सरकार सभी लंबित मेडिकल पीजी एग्जाम कराए. नीट की परीक्षा जल्द से जल्द हो.
आयुर्वेद और एलोपैथी में घालमेल न हो...
आयुर्वेद और एलोपैथी के विवाद पर डॉ. जयालाल ने कहा कि इन दोनों चिकित्सा पद्धतियों का मिश्रण ठीक नहीं है. आयुर्वेद को गुणवत्ता और वैज्ञानिकता के आधार पर बढ़ावा दे, इसमें कोई बुराई नहीं है. लेकिन इसका मॉडर्न मेडिसिन प्रैक्टिस के साथ घालमेल न किया जाए.