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This Article is From Jan 19, 2017

चर्च में दिया गया तलाक मान्य नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट

चर्च में दिया गया तलाक मान्य नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग धर्मो के विधानों में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने की बात कही थी
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि क्रिश्चियन पर्सनल लॉ, इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 और डिवोर्स एक्ट 1869 को रद्द कर प्रभावी नहीं हो सकता. यानी साफ है कि पर्सनल लॉ के तहत चर्च से दिए गए तलाक वैध नहीं होंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की उस दलील को मान लिया जिसमें 1996 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया गया था कि किसी भी धर्म के पर्सनल लॉ देश के वैधानिक कानूनों पर हावी नहीं हो सकते. यानी कैनन लॉ के तहत तलाक कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें चर्च से मिले तलाक को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि चर्च से मिले तलाक पर सिविल कोर्ट की मुहर लगना जरूरी न हो.
दरअसल, मंगलौर के रहने वाले क्लेरेंस पायस की इस जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में ही विचारार्थ स्वीकार कर लिया था.

खास बात यह है कि ईसाइयों के धर्म विधान के मुताबिक कैथोलिक ईसाइयों की चर्च में धार्मिक अदालत में पादरी द्वारा तलाक व अन्य डिक्रियां दी जाती हैं. सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि क्योंकि चर्च द्वारा दी जाने वाली तलाक की डिक्री के बाद कुछ लोगों ने जब दूसरी शादी कर ली तो उन पर बहुविवाह का मुकदमा दर्ज हो गया. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट यह घोषित करे कि कैनन लॉ (धर्म विधान) में चर्च द्वारा दी जा रही तलाक की डिक्री मान्य डिक्री होगी और इस पर सिविल अदालत से तलाक की मुहर जरूरी नहीं है.

हालांकि सरकार ने याचिका का विरोध किया है. सरकार की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया है कि मांग स्वीकार नहीं की जा सकती क्योंकि तलाक अधिनियम लागू है और कोर्ट उसे वैधानिक भी ठहरा चुका है.

ईसाइयों के तलाक से जुड़ा ये एक मात्र मुद्दा नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ईसाई धर्म को मानने वाले एक अन्य व्यक्ति ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है जिसमें तलाक अधिनियम की धारा-10 (ए) की उपधारा (1) को चुनौती दी गई है. इसके मुताबिक ईसाई धर्मावलंबी को तलाक के लिए दो वर्ष तक अलगाव में रहने की शर्त है जबकि अन्य कानून स्पेशल मैरिज एक्ट व हिन्दू विवाह अधिनियम में ये अवधि एक वर्ष की है.

इस मामले में सुनवाई के दौरान गत वर्ष अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग धर्मो के विधानों में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने की बात कही थी. और इस मामले में ही कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि समान नागरिक संहिता के बारे में उनका क्या नजरिया है.

 

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