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This Article is From May 21, 2020

घर लौट रहे प्रवासियों के बच्चों की मुश्किलें, कोई भूख से तड़प रहा तो कोई धूप से परेशान

कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान अपने पैतृक स्थलों को वापस लौट रहे वयस्क लोगों के साथ साथ चल रहे उनके बच्चों कई जगह कड़ी धूप और लू में भूख एवं प्यास से बदहाल देखा जा सकता है.

घर लौट रहे प्रवासियों के बच्चों की मुश्किलें, कोई भूख से तड़प रहा तो कोई धूप से परेशान
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:

कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान अपने पैतृक स्थलों को वापस लौट रहे वयस्क लोगों के साथ साथ चल रहे उनके बच्चों कई जगह कड़ी धूप और लू में भूख एवं प्यास से बदहाल देखा जा सकता है. एक जगह दो बच्चियो को एक पतले से ‘गमछे' की छांव में अपने छोटे भाई को धूप के ताप से बचाते हुए देखा गया. भारत में प्रवासी संकट लगातार जारी है. लाखों लोग पैदल ही अपने घर जा रहे हैं. इसके अलावा बसों और ट्रेनों से घर जाने लिये प्रवासी एक-दूसरे से लड़ने-मरने को तैयार हैं. अपने साथ कुछ ही सामान ले जा रहे ये प्रवासी खाने के लिए दान पर आश्रित हैं. इस सबके बीच उनके बच्चे मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं.

तपती धूप, तनाव और अपने घर लौटने चिंता ने उनके लिए कई मुश्किलें पैदा कर दी हैं. दिल्ली-हरियाणा सीमा पर कुंडली इलाके में एक खुले मैदान में बैठी नेहा देवी उत्तर प्रदेश के कानपुर में अपने गांव जाने के लिए बस का इंतजार कर रही हैं. वह अपने सात महीने के बच्चे की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. केवल 22 साल की नेहा अपनी बेटी नैन्सी को स्टील के गिलास से पानी पिलाने की कोशिश करती हैं. नैन्सी गिलास पड़ककर थोड़ा सा पानी पीती है और फिर रोने लगती है. नेहा उसे अपनी साड़ी के पल्लू से ढकने की कोशिश करती है, लेकिन चिलचिलाती धूप ने उन्हें परेशान कर रखा है.

तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच गया है और यहां कोई छांव नहीं है. नेहा ने कहा कि वह धूप से तंग आ गई हैं. दिल्ली सीमा के निकट हरियाणा के सोनीपत कस्बे में गोलगप्पे बेचने वाले उनके पति हरिशंकर के पास 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद से कोई काम नहीं है. उनकी बचत खत्म होती जा रही है. उनके पास अपने घर जाने के अलावा कोई चारा नहीं है. इससे कुछ ही दूर नौ साल की शीतल और सात साल की साक्षी अपने तीन साल के भाई विनय साथ बैठी हैं. उनके पास एक गमछा है जिससे उन्होंने अपने भाई को ढक रखा है, लेकिन वह भी काम नहीं आ रहा है. उनका परिवार 10 घंटे से बस का इंतजार कर है.

बच्चों के माता पिता राजपूत सिंह (35) और सुनीता असहाय नजर आ रहे हैं. वे अपने बच्चों को लेकर चिंतित हैं. उन्हें उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में अपने घर जाना है, लेकिन सफर की चिंता उन्हें खाए जा रही है. उन्होंने कहा कि बच्चों का भविष्य चिंता की बात है, लेकिन उनके पास घर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. पिछले सप्ताह आगरा से एक महिला का वीडियो सामने आया था जो अपने पहिये वाले बैग पर बेटे को सुलाकर बैग को घसीटती हुई ले जाती दिख रही है. सोशल मीडिया पर वायरल हुई यह वीडियो लाखों प्रवासी परिवारों के संघर्षों को बयां करने के लिए काफी है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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