राजधानी दिल्ली में शासन के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को लोकसभा में पेश किए गए संशोधन विधेयक की दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार (Arvind Kejriwal government) ने आलोचना की है. केजरीवाल सरकार का कहना है कि केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस विधेयक के जरिए राजधानी दिल्ली में पिछले दरवाजे से सरकार चलाने की कोशिश कर रही है इसलिए यह बिल अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है जिसका आम आदमी पार्टी सड़क से लेकर संसद तक विरोध करेगी. गौरतलब है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने सोमवार को लोकसभा में 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक (NCT bill) 2021' पेश किया.
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आइए समझते हैं कि इस संशोधन विधेयक में आखिर ऐसे क्या संशोधन हैं जिन पर सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) को ऐतराज है और आने वाले समय में दिल्ली में शासन व्यवस्था में बदलाव हो सकता है.
संशोधन 1- पहला संशोधन सेक्शन 21 में प्रस्तावित है
, इसके मुताबिक विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसमें सरकार का मतलब "उपराज्यपाल' होगा (जबकि जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में चुनी हुई सरकार को ही सरकार माना था).
संशोधन 2- दूसरा संशोधन सेक्शन 24 में प्रस्तावित है,
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक ' उपराज्यपाल ऐसे किसी भी बिल को अपनी मंजूरी देकर राष्ट्रपति के पास विचार के लिए नहीं भेजेंगे जिसमें कोई भी ऐसा विषय आ जाए जो विधानसभा के दायरे से बाहर हो' ( इसका मतलब अब उपराज्यपाल के पास यह पावर होगी कि वह विधानसभा की तरफ से पास किए हुए किसी भी बिल को अपने पास ही रोक सकते हैं जबकि अभी तक विधानसभा अगर कोई विधेयक पास कर देती थी तो उपराज्यपाल उसको राष्ट्रपति के पास भेजते थे और फिर वहां से तय होता था कि बिल मंजूर हो रहा है या रुक रहा है या खारिज हो रहा है)
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संशोधन 3- तीसरा संशोधन सेक्शन 33 में प्रस्तावित है, इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक ' विधानसभा ऐसा कोई नियम नहीं बनाएगी जिससे कि विधानसभा या विधानसभा की समितियां राजधानी के रोजमर्रा के प्रशासन के मामलों पर विचार करें या फिर प्रशासनिक फैसले के मामलों में जांच करें. प्रस्तावित संशोधन में यह भी कहा गया है कि इस संशोधन विधेयक से पहले इस प्रावधान के विपरीत जो भी नियम बनाए गए हैं वह रद्द होंगे.
संशोधन 4- चौथा संशोधन सेक्शन 44 में प्रस्तावित है.
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक ' उपराज्यपाल के कोई भी कार्यकारी फैसले चाहे वह उनके मंत्रियों की सलाह पर लिए गए हो या फिर न लिए गए हो... ऐसे सभी फैसलों को ' उपराज्यपाल के नाम लिया जाएगा. संशोधित बिल में यह भी कहा गया है कि किसी मंत्री या मंत्रिमंडल का निर्णय या फिर सरकार को दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करने से पहले उपराज्यपाल की राय लेना आवश्यक होगा.
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