नई दिल्ली:
केंद्रीय कैबिनेट ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए जस्टिस वर्मा समिति के सुझाव के अनुरूप कानून को सख्त बनाने और संशोधन के लिए अध्यादेश को मंजूरी दे दी।
बलात्कार की वजह से पीड़ित की मौत होने या उसके कोमा में चले जाने की स्थिति में बलात्कारी को मृत्युदंड हो सकता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर सिफारिशों को शीघ्र लागू करने के प्रयास के तहत शुक्रवार रात को इस संबंध में एक अध्यादेश को मंजूरी दी।
न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों पर आधारित और उससे भी आगे जाकर इस अध्यादेश में ‘बलात्कार’ शब्द के स्थान पर ‘यौन हिंसा’ रखने का प्रस्ताव है, ताकि उसके दायरे में महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के यौन अपराध शामिल हों। इसमें महिलाओं का पीछा करने, दर्शनरति, तेजाब फेंकने, शब्दों से अश्लील बातें करने, अनुपयुक्त स्पर्श जैसे महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराधों के लिए सजा बढ़ाने का प्रस्ताव है। इसके दायरे में वैवाहिक बलात्कार को भी लाया गया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसद के बजट सत्र से तीन सप्ताह पहले ही विशेष रूप से आयोजित अपनी बैठक में वर्मा समिति की सिफारिशों से आगे बढ़कर उस स्थिति के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया है, जहां बलात्कार की पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है। ऐसे मामलों में न्यूनतम सजा 20 साल की जेल की सजा होगी जिसे उसके प्राकृतिक जीवनावधि तक बढ़ाया जा सकता है या फिर मृत्युदंड दिया जा सकता है। अदालत अपने विवेक के आधार पर निर्णय करेगी।
दिसंबर में 23-वर्षीय छात्रा के सामूहिक बलात्कार और बर्बर हमले की पृष्ठभूमि में लाए जा रहे इस अध्यादेश के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन की जरूरत होगी। इस कांड के बाद बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड की व्यापक मांग उठी थी।
सरकार अब अध्यादेश को लागू करने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सिफारिश करेगी। हालांकि सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पर वर्मा समिति की यह सिफारिश नामंजूर कर दी है कि यदि सशस्त्र बल के जवान महिला के खिलाफ अपराध के आरोपी पाए जाते हैं, तो किसी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। लेकिन सरकार ने इस कानून को महिलान्मुखी बनाते हुए यह सुझाव दिया है कि यौन अपराध की पीड़ित का बयान केवल महिला पुलिस अधिकारी ही लेगी।
बलात्कार की वजह से पीड़ित की मौत होने या उसके कोमा में चले जाने की स्थिति में बलात्कारी को मृत्युदंड हो सकता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर सिफारिशों को शीघ्र लागू करने के प्रयास के तहत शुक्रवार रात को इस संबंध में एक अध्यादेश को मंजूरी दी।
न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों पर आधारित और उससे भी आगे जाकर इस अध्यादेश में ‘बलात्कार’ शब्द के स्थान पर ‘यौन हिंसा’ रखने का प्रस्ताव है, ताकि उसके दायरे में महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के यौन अपराध शामिल हों। इसमें महिलाओं का पीछा करने, दर्शनरति, तेजाब फेंकने, शब्दों से अश्लील बातें करने, अनुपयुक्त स्पर्श जैसे महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराधों के लिए सजा बढ़ाने का प्रस्ताव है। इसके दायरे में वैवाहिक बलात्कार को भी लाया गया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसद के बजट सत्र से तीन सप्ताह पहले ही विशेष रूप से आयोजित अपनी बैठक में वर्मा समिति की सिफारिशों से आगे बढ़कर उस स्थिति के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया है, जहां बलात्कार की पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है। ऐसे मामलों में न्यूनतम सजा 20 साल की जेल की सजा होगी जिसे उसके प्राकृतिक जीवनावधि तक बढ़ाया जा सकता है या फिर मृत्युदंड दिया जा सकता है। अदालत अपने विवेक के आधार पर निर्णय करेगी।
दिसंबर में 23-वर्षीय छात्रा के सामूहिक बलात्कार और बर्बर हमले की पृष्ठभूमि में लाए जा रहे इस अध्यादेश के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन की जरूरत होगी। इस कांड के बाद बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड की व्यापक मांग उठी थी।
सरकार अब अध्यादेश को लागू करने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सिफारिश करेगी। हालांकि सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पर वर्मा समिति की यह सिफारिश नामंजूर कर दी है कि यदि सशस्त्र बल के जवान महिला के खिलाफ अपराध के आरोपी पाए जाते हैं, तो किसी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। लेकिन सरकार ने इस कानून को महिलान्मुखी बनाते हुए यह सुझाव दिया है कि यौन अपराध की पीड़ित का बयान केवल महिला पुलिस अधिकारी ही लेगी।
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