अंतरिक्ष में करोड़ों साल पहले हुई तारों की टक्कर का धमका और रोशनी अब जाकर वैज्ञानिकों की हद में आई है
नई दिल्ली:
देश में दीपावली से पहले दुनियाभर में एक दूसरी दीपावली की चर्चा हो रही है. ये है धरती से लाखों कोस दूर गैलेक्सी की दीपावली. आज से करोड़ों साल पहले गैलेक्सी में हुई अतिशबाज़ी का नज़ारा दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने पहली बार देखा. असल में ये घटना करोड़ों साल पहले हुई पर प्रकाश को दुनियाभर की दूरबीनों तक पहुंचने में इतने साल लग गए. इस अतिशबाज़ी में आम लोगों के लिए दिलचस्पी की बात ये है कि आज जो सोना और प्लैटिनम आप इस्तेमाल करते हैं वो भी इतिहास में किसी इसी तरफ के टक्कर से बना है.
इस घटना के वैज्ञानिक अहमियत को लेकर हमारे संवाददाता एम. अतहरउद्दीन मुन्ने भारती ने बात की कॉस्मोलॉजिस्ट और इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में प्रोफेसर तरुण सौरादीप से.
प्रश्न: डेड स्टार्स की टक्कर का क्या मतलब है? ये खोज़ का अंतरिक्ष विज्ञान के लिहाज़ से कितनी अहम है?
उत्तर: असल में डेड स्टार्स यानी मृत तारे का मतलब है वैसे तारे जिनकी रोशनी खत्म हो गई हो. इस तरह के दो तारे आपस में टकराये और उससे जो प्रकाश और आवाज पैदा हुई उसे दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने देखा. वैसे तो क़िलानोवा नाम से जाने जाने वाली इस घटना से पैदा हुई ग्रेविटेशनल वेव्स और रोशनी को अगस्त में वैज्ञानिकों ने इसे देखा था. पर आपस में इस पर चर्चा के बाद इसे अब दुनिया के सामने रखा गया. इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं और एलट्रोमग्नेटिक रेडिशन के जरिये वैज्ञानिकों को इसके सबूत भी मिलते रहे हैं. पर अल्ट्रा मेग्नेटिक रेडिशन, प्रकाश और ध्वनि सब कुछ इतनी स्पष्टता से और एकसाथ पहली बार देखने को मिले हैं. कोई ३ साल पहले भी इससे मिलती जुलती तस्वीर सामने आई थी. इस खोज के बाद हमारी कई थ्योरी वैलिडेट भी हो गई है यानी जो बात अभी तक सिद्धातं रूप से साबित माने जाते थे अब पहली बार हमारे पास एक उदाहरण मौजूद है.
प्रश्न: इस टक्कर से ही सोने और प्लैटिनम बना होगा, क्या आज धरती पर जो सोना है उसका इससे कोई लेना देना है?
उत्तर: आज जो सोना और प्लैटिनम धरती पर मौजूद है वो निश्चित रूप से इसी तरह की किसी टक्कर का परिणाम है. गैलेक्सी में कभी करोड़ों साल पहले इसी तरफ की टक्कर हुई होगी जिससे सोने और प्लेटिनम जैसे धातु बने होंगे. यानी आप अपनी खूबसूरत सोने अंगूठी और प्लैटिनम की हार में इस्तेमाल धातु के करोड़ों सालों के इतिहास की कल्पना कर सकते हैं.
प्रश्न: इस तरह की टक्करों को लेकर ये बातें भी होती रही है कि इससे दुनिया ख़त्म हो सकती है, कितनी सच्चाई है?
उत्तर: ये बात पूरी तरफ से बेबुनियाद तो नहीं है, यूं तो उल्का पिंड का गिरना कोई असामान्य बात नहीं है और अगर कोई बड़ा उल्का पिंड पृथ्वी पर गिरता है तो उससे धरती पर जीवन को खतरा हो सकता है. पर इस तरह की घटना बहुत ही असामान्य है.
प्रश्न: बताया जा रहा है कि भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने भी इस खोज़ में अपनी अहम् भूमिका निभाई है?
उत्तर: इस पूरी खोज में दुनियाभर के 70 देशों के करीब साढ़े तीन हज़ार वैज्ञानिक शामिल हैं जिसमें भारत की 13 संस्थाओं के करीब पचास वैज्ञानिक हैं. इसरो के उपग्रह एस्ट्रोसैट ने भी इस घटना को रिकॉर्ड किया है. इसके अलावा लेह स्थित हिमालयन चंद्रा टेलिस्कोप और पुणे स्थित जायंट मेटरेवावे रेडियो टेलिस्कोप (GMRT) ने भी इस टक्कर को रिकॉर्ड किया है. इस तरह की घटनाओं को और भी ज्यादा सूक्ष्मता से रिकॉर्ड करने के लिए भारत में भी लाइगो डिटेक्टर लगाए जाने की तैयारी है.
इस घटना के वैज्ञानिक अहमियत को लेकर हमारे संवाददाता एम. अतहरउद्दीन मुन्ने भारती ने बात की कॉस्मोलॉजिस्ट और इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में प्रोफेसर तरुण सौरादीप से.
प्रश्न: डेड स्टार्स की टक्कर का क्या मतलब है? ये खोज़ का अंतरिक्ष विज्ञान के लिहाज़ से कितनी अहम है?
उत्तर: असल में डेड स्टार्स यानी मृत तारे का मतलब है वैसे तारे जिनकी रोशनी खत्म हो गई हो. इस तरह के दो तारे आपस में टकराये और उससे जो प्रकाश और आवाज पैदा हुई उसे दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने देखा. वैसे तो क़िलानोवा नाम से जाने जाने वाली इस घटना से पैदा हुई ग्रेविटेशनल वेव्स और रोशनी को अगस्त में वैज्ञानिकों ने इसे देखा था. पर आपस में इस पर चर्चा के बाद इसे अब दुनिया के सामने रखा गया. इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं और एलट्रोमग्नेटिक रेडिशन के जरिये वैज्ञानिकों को इसके सबूत भी मिलते रहे हैं. पर अल्ट्रा मेग्नेटिक रेडिशन, प्रकाश और ध्वनि सब कुछ इतनी स्पष्टता से और एकसाथ पहली बार देखने को मिले हैं. कोई ३ साल पहले भी इससे मिलती जुलती तस्वीर सामने आई थी. इस खोज के बाद हमारी कई थ्योरी वैलिडेट भी हो गई है यानी जो बात अभी तक सिद्धातं रूप से साबित माने जाते थे अब पहली बार हमारे पास एक उदाहरण मौजूद है.
प्रश्न: इस टक्कर से ही सोने और प्लैटिनम बना होगा, क्या आज धरती पर जो सोना है उसका इससे कोई लेना देना है?
उत्तर: आज जो सोना और प्लैटिनम धरती पर मौजूद है वो निश्चित रूप से इसी तरह की किसी टक्कर का परिणाम है. गैलेक्सी में कभी करोड़ों साल पहले इसी तरफ की टक्कर हुई होगी जिससे सोने और प्लेटिनम जैसे धातु बने होंगे. यानी आप अपनी खूबसूरत सोने अंगूठी और प्लैटिनम की हार में इस्तेमाल धातु के करोड़ों सालों के इतिहास की कल्पना कर सकते हैं.
प्रश्न: इस तरह की टक्करों को लेकर ये बातें भी होती रही है कि इससे दुनिया ख़त्म हो सकती है, कितनी सच्चाई है?
उत्तर: ये बात पूरी तरफ से बेबुनियाद तो नहीं है, यूं तो उल्का पिंड का गिरना कोई असामान्य बात नहीं है और अगर कोई बड़ा उल्का पिंड पृथ्वी पर गिरता है तो उससे धरती पर जीवन को खतरा हो सकता है. पर इस तरह की घटना बहुत ही असामान्य है.
प्रश्न: बताया जा रहा है कि भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने भी इस खोज़ में अपनी अहम् भूमिका निभाई है?
उत्तर: इस पूरी खोज में दुनियाभर के 70 देशों के करीब साढ़े तीन हज़ार वैज्ञानिक शामिल हैं जिसमें भारत की 13 संस्थाओं के करीब पचास वैज्ञानिक हैं. इसरो के उपग्रह एस्ट्रोसैट ने भी इस घटना को रिकॉर्ड किया है. इसके अलावा लेह स्थित हिमालयन चंद्रा टेलिस्कोप और पुणे स्थित जायंट मेटरेवावे रेडियो टेलिस्कोप (GMRT) ने भी इस टक्कर को रिकॉर्ड किया है. इस तरह की घटनाओं को और भी ज्यादा सूक्ष्मता से रिकॉर्ड करने के लिए भारत में भी लाइगो डिटेक्टर लगाए जाने की तैयारी है.
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