स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में आयोजित हो रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के दो सगे युवा भाई- बहन स्निग्धा तिवारी व जन्मेजय तिवारी भी भाग ले रहे हैं. पिछले दो हफ्तों में ये दुनिया भर के युवाओं के साथ मिलकर जलवायु न्याय के लिए आम लोगों, एशिया- प्रशांत एवं अफ्रीकी देशों का पक्ष मजबूती से रख रहे हैं. उच्च न्यायालय नैनीताल में मानवाधिकार अधिवक्ता स्निग्धा तिवारी व जन्मेजय कहते हैं कि यह स्पष्ट है कि दुनिया के अत्यधिक संवेदनशील मध्य हिमालय (उत्तराखंड) तेज़ी से जलवायु परिवर्तन, पूंजीवादी विकास को खोखली समझ का शिकार हो रहा है और हमने ऐसे राज्य में जन्म लिया जहां पहाड़ व नदिया हैं, शुद्ध हवा- पानी है और हमारी संस्कृति प्रकृति से बहुत ज़्यादा जुड़ी हुई है और पहाड़ों के लोग वर्षों से प्रकृति के मध्य ही रह रहे हैं और हम प्रकृति पर निर्भर भी हैं इसलिए पहाड़ में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति चाहे वो बच्चा हो, छात्र हो, वृद्ध हो शुरू से ही प्रकृति से जुड़ा हुआ होता है वो पहाड़ों, नदियों जानवरों, पेड़- पौधों संस्कृति को लेकर संवेदनशील होता है क्योंकि परिवार, समाज में यह शिक्षा दी जाती है.
शुरू से ही चिपको, वन बचाओ व पर्वतीय क्षेत्रों के जन आंदोलनों के बीच पले- बढ़े होने के कारण पहाड़ों की संवेदनशीलता की समझ रही थी और हम दोनों भाई- बहन को एक छोटे से ज़िले से कॉप 26 में आने का मौका मिला और वहां से यहां आकर इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने को लेकर मन में बहुत सी आशाएं थी, क्योंकि अभी हाल ही में उत्तराखंड में जितनी भी आपदाएं आई हैं, उन्हें लेकर हम जानना व समझना चाह रहे थे कि कॉप 26 किस तरह से इस पर विचार करेगा.
हमारी उत्तराखंड से ग्लास्गो की यात्रा से कुछ दिन पहले ही 17, 18 और 19 अक्टूबर को उत्तराखंड में एक बहुत बड़ी आपदा आई जिसमें पूरे उत्तराखंड में बहुत बड़ी मात्रा में नुकसान हुआ और भू स्खलन व बादल फटने के कारण हमारी यह यात्रा भी कुछ दिनों के लिए हमें स्थगित करनी पड़ी और हम आपातकाल की संभावनाओं के दौर में गलास्गो पहुंचे और इस आपदा ने हमारे इस संकल्प को और मजबूत कर दिया कि हम यह बात रखें और अपने राज्य, अपने क्षेत्र की आवाज़ और पीड़ा को रखें कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड और यहां के लोग ख़तरे में हैं, हम आए दिन आपदाओं का दंश झेल रहे हैं और लगातार मौसम में बदलाव आ रहा है जो कि प्रकृति के प्रतिकूल है. ग्लास्गो पहुंचने तक की यात्रा आसान नहीं रही जब हम दिल्ली से चलते वक्त वित्तीय समस्या, आरटीपीसीआर टेस्ट और कोविड प्रतिरोधी वैक्सीन के दोनों डोज पूरे होने के बावजूद एयरपोर्ट पर कोवैक्सीन के कारण रोका जाना, वीजा को लेकर आई कुछ समस्या आदि सबके बाद जब हम अंततः ग्लास्गो पहुंचे तो कॉप के दूसरे और तीसरे दिन हमने देखा कि वर्ल्ड क्लाइमेट समिट था तब हमारे प्रधानमंत्री वहां आए थे. हम उन लोगों को सुन पाने की सुलभता नहीं प्राप्त कर पाए जिन्हें हम सुनना चाह रहे थे. पहले हफ्ते में लोगों को अंदर नहीं जाने का मौका नहीं मिल पा रहा था.
कॉप 26 में एग्रीमेंट हुआ कि पूरे विश्व का तापमान 1.5 डिग्री रखा जाए और कार्बन उत्सर्जन ज़ीरो हो जाए, लेकिन यह सिर्फ एक देश के प्रयास से नहीं होगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक संकट है और दुनिया के प्रत्येक देश को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी मुख्य रूप से विकसित देशों को आगे आना होगा. इन एग्रीमेंट्स को लेकर हमने देखा कि किस तरह से बातचीत हो रही है. पहले दो दिन में हमने देखा कि जब वर्ल्ड ने अपना एजेंडा रखना शुरू किया तो वो बहुत संकुचित रहा एक्शन तो दूर की बात है एजेंडा भी स्पष्ट रूप से समक्ष नहीं रखा गया. हम 2070 तक कार्बन न्यूट्रल होने की बात करते हैं लेकिन इतनी तेज़ी से हो रहे उत्सर्जन में यह उत्तराखंड या उत्तराखंड जैसे अन्य राज्यों के लिए 2070 तक संभव हो पाएगा? आज से 10 वर्ष बाद क्या होगा यह किसी को ज्ञात नहीं है तो साफ ज़ाहिर है कि जो भी एग्रीमेंट्स हुए और जो भी जलवायु लक्ष्य सुनिश्चित किए गए वो काफी संकुचित हैं.
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