नई दिल्ली:
मध्य प्रदेश के सतना में पांच साल की बच्ची से रेप और उसकी हत्या कर देने के मामले में फांसी की सजा पाए दोषी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है, और उसे बुधवार (30 मार्च) को दी जाने वाली फांसी की सज़ा पर रोक लगा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को बचाव का पूरा मौका न दिए जाने पर मध्य प्रदेश सरकार से जवाब भी तलब किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। दोषी सचिन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा फांसी की सजा की पुष्टि के फैसले को चुनौती देने के लिए उसे कानूनन मिलने वाला 90 दिन का समय नहीं दिया गया और उसे फांसी देने को 30 मार्च के लिए उसका डेथ वारंट जारी कर दिया गया, सो, ऐसे में वह अपने बचाव के मूलभूत अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाया, इसलिए उसकी फांसी की सजा पर रोक लगाई जाए।
यह था पूरा मामला...
पेश मामले के अनुसार पांच-वर्षीय छात्रा सतना के गांव इटमा की निवासी थी। 23 फरवरी, 2015 को बच्ची का भाई उसे स्कूल पहुंचाने जा रहा था, तभी रास्ते में गांव के ही मैजिक चालक सचिन सिंगरहा से उसकी मुलाकात हो गई। लिहाजा भाई ने सचिन सिंगरहा के वाहन में अपनी बहन को बिठाया और उसे स्कूल पहुंचाने के लिए कहकर घर लौट गया, लेकिन बच्ची देर शाम तक घर नहीं लौटी, जिसकी शिकायत मैहर थाने में दर्ज कराई गई।
पुलिस के अनुसार, पूछताछ के दौरान आरोपी मैजिक चालक ने पहले तो पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया, लेकिन बाद में वह टूट गया और पूरी घटना का खुलासा कर दिया। आरोपी ने पुलिस को बताया था कि उसके वाहन में बच्ची अकेली थी, जिसे देखकर उसकी हवस जाग गई और उसने सुनसान इलाके में ले जाकर पहले बच्ची के साथ रेप किया, और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी, तथा शव को नहर के किनारे एक कुएं में फेंक दिया, जहां से बाद में पुलिस ने शव को बरामद किया।
मामले में निचली अदालत ने सचिन को फांसी की सजा सुनाई थी, और हाईकोर्ट ने भी पांच-वर्षीय बच्ची से रेप व हत्या के अपराध को दुर्लभतम श्रेणी का मानते हुए सचिन की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। लेकिन इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने से पहले ही सचिन को फांसी देने के लिए 30 मार्च की तारीख का डेथ वारंट जारी कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। दोषी सचिन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा फांसी की सजा की पुष्टि के फैसले को चुनौती देने के लिए उसे कानूनन मिलने वाला 90 दिन का समय नहीं दिया गया और उसे फांसी देने को 30 मार्च के लिए उसका डेथ वारंट जारी कर दिया गया, सो, ऐसे में वह अपने बचाव के मूलभूत अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाया, इसलिए उसकी फांसी की सजा पर रोक लगाई जाए।
यह था पूरा मामला...
पेश मामले के अनुसार पांच-वर्षीय छात्रा सतना के गांव इटमा की निवासी थी। 23 फरवरी, 2015 को बच्ची का भाई उसे स्कूल पहुंचाने जा रहा था, तभी रास्ते में गांव के ही मैजिक चालक सचिन सिंगरहा से उसकी मुलाकात हो गई। लिहाजा भाई ने सचिन सिंगरहा के वाहन में अपनी बहन को बिठाया और उसे स्कूल पहुंचाने के लिए कहकर घर लौट गया, लेकिन बच्ची देर शाम तक घर नहीं लौटी, जिसकी शिकायत मैहर थाने में दर्ज कराई गई।
पुलिस के अनुसार, पूछताछ के दौरान आरोपी मैजिक चालक ने पहले तो पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया, लेकिन बाद में वह टूट गया और पूरी घटना का खुलासा कर दिया। आरोपी ने पुलिस को बताया था कि उसके वाहन में बच्ची अकेली थी, जिसे देखकर उसकी हवस जाग गई और उसने सुनसान इलाके में ले जाकर पहले बच्ची के साथ रेप किया, और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी, तथा शव को नहर के किनारे एक कुएं में फेंक दिया, जहां से बाद में पुलिस ने शव को बरामद किया।
मामले में निचली अदालत ने सचिन को फांसी की सजा सुनाई थी, और हाईकोर्ट ने भी पांच-वर्षीय बच्ची से रेप व हत्या के अपराध को दुर्लभतम श्रेणी का मानते हुए सचिन की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। लेकिन इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने से पहले ही सचिन को फांसी देने के लिए 30 मार्च की तारीख का डेथ वारंट जारी कर दिया गया।
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