जजों की नियुक्ति पर अंतिम फैसले का अधिकार कॉलेजियम को : सोली सोराबजी

पूर्व अटॉर्नी जनरल ने कहा- सरकार के पास सिर्फ़ अपनी राय रखने का अधिकार, किसी भी जज की नियुक्ति रोकने का हक नहीं

जजों की नियुक्ति पर अंतिम फैसले का अधिकार कॉलेजियम को : सोली सोराबजी

पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी.

खास बातें

  • सरकार को कॉलेजियम के पास अपनी बात रखने का हक, लेकिन उसके पास वीटो नहीं
  • पूर्व सीजे टीएस ठाकुर ने कहा, जस्टिस जोसेफ़ की नियुक्ति रोकने से ग़लत संदेश
  • हाइकोर्ट के जजों पर असर होगा, न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास कम होगा
नई दिल्ली:

उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ भारत सरकार की पहल पर बहस तेज़ हो रही है. शुक्रवार को पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने एनडीटीवी से कहा कि जजों की नियुक्त के सवाल पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार कानून में कॉलेजियम को दिया गया है...सरकार के पास सिर्फ़ अपनी राय रखने का अधिकार है. उसके पास किसी भी जज की नियुक्ति रोकने का कोई हक नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर केएस जोसेफ की नियुक्ति पर गुरूवार को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाया था. लेकिन शुक्रवार को देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने एनडीटीवी से कहा कि सरकार को कॉलेजियम के पास अपनी बात रखने का हक है, हालांकि उसके पास वीटो नहीं है. उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति पर अंतिम फैसला कॉलेजियम का ही होगा.

यह भी पढ़ें : जस्टिस केएम जोजफ की नियुक्ति नहीं तो और सिफारिश नहीं : कांग्रेस

कांग्रेस ने शुक्रवार को मांग की कि जस्टिस जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए दोबारा सिफारिश भेजी जाए. अगर दूसरी बार में सरकार न माने तो फिर अवमानना नोटिस दिया जाए.

उधर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने एनडीटीवी से कहा कि जस्टिस जोसेफ़ की नियुक्ति रोकने से ग़लत संदेश गया है. उन्होंने कहा इससे सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसले देने पर उसके विरोध का संदेश जाएगा.. हाइकोर्ट के जजों पर असर होगा सरकार का कदम SC के आदेश के ख़िलाफ़ है. न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास कम होगा.
जस्टिस लोढ़ा का कहना सही है कि ये न्यायपालिका की आज़ादी के दिल पर चोट है.

VIDEO : सरकार को जजों की नियुक्ति रोकने का हक नहीं

कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति को लेकर जो विवाद ख़ड़ा हुआ है उसे जल्दी सुलझाना बेहद ज़रूरी है. अगर से विवाद जल्दी नहीं सुलझा तो इसका असर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संबंधों पर पड़ सकता है.


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