मुख्यमंत्री पेमा खांडू (मध्य में)
नई दिल्ली:
अरुणाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार एक बार फिर संकट में है. शुक्रवार को कांग्रेस के 43 और 2 निर्दलीय विधायक पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) में शामिल हो गए. खास बात यह कि बागियों में वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल हैं. गौरतलब है कि दो माह पहले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कांग्रेस को राज्य में दोबारा सत्ता हासिल हुई थी.
60 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 44 विधायक हैं, जबकि 11 विधायक बीजेपी के हैं. इनके अलावा दो निर्दलीय विधायक भी हैं. शुक्रवार को कांग्रेस के 44 में से 43 विधायकों ने बीजेपी की सहयोगी पीपीए का दामन थाम लिया. कांग्रेस में अब केवल पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी ही बचे हैं, जिससे कांग्रेस सरकार पर एक बार फिर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. बागियों में अरुणाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल हैं. पेमा खांडू पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत दोरजी खांडू के बेटे हैं.
खांडू ने कहा, "मैंने विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात करके उन्हें यह सूचना दी है कि हमने कांग्रेस का पीपीए में विलय कर दिया है.'
जुलाई में तुकी की जगह खांडू को दी थी कमान
दरअसल कांग्रेस का अरुणाचल संकट नया नहीं है. उसने कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नाटकीय घटनाक्रम के बाद जुलाई में नबाम तुकी के स्थान पर पेमा खांडू को मुख्यमंत्री घोषित करके लंबी चली लड़ाई को जीतने में सफलता हासिल की थी. खांडू के विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद दो निर्दलीयों और 45 पार्टी विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने एक बार फिर सरकार बना ली थी. तेजी से बदले घटनाक्रम के बाद बागी नेता कालिखो पुल अपने 30 साथी बागी विधायकों के साथ पार्टी में लौट आए थे. गौरतलब है कि पुल बागी होकर मुख्यमंत्री बने थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अपदस्थ कर दिया था.
इस घटनाक्रम में विधानसभा में शक्ति परीक्षण से कुछ घंटे पहले कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई थी और विधायक दल ने पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत दोरजी खांडू के बेटे पेमा खांडू को सर्वसम्मति से अपना नेता चुन लिया था. अब खांडू ने ही बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है.
नवंबर, 2015 में हुई थी पहली बगावत
कांग्रेस में पहली बगावत नवंबर, 2015 में हुई थी. तभी से वहां राजनीतिक उथलपुथल का दौर जारी है. उस समय नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और राष्ट्रपित शासन लग गया था, फिर फरवरी, 2016 में कांग्रेस के बागी कालिखो पुल की अगुवाई में नई सरकार बनी थी, जिसे भाजपा के 11 विधायकों ने समर्थन दिया था.
पुल ने कर ली थी खुदकुशी
अरुणाचल के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में काम कर चुके 47 साल के कलिखो पुल ने अगस्त में खुदकुशी कर ली थी. वह सीएम आवास में ही रह रहे थे. बाद में गृह मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की थी कि पुल डिप्रेशन में थे.
60 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 44 विधायक हैं, जबकि 11 विधायक बीजेपी के हैं. इनके अलावा दो निर्दलीय विधायक भी हैं. शुक्रवार को कांग्रेस के 44 में से 43 विधायकों ने बीजेपी की सहयोगी पीपीए का दामन थाम लिया. कांग्रेस में अब केवल पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी ही बचे हैं, जिससे कांग्रेस सरकार पर एक बार फिर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. बागियों में अरुणाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल हैं. पेमा खांडू पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत दोरजी खांडू के बेटे हैं.
खांडू ने कहा, "मैंने विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात करके उन्हें यह सूचना दी है कि हमने कांग्रेस का पीपीए में विलय कर दिया है.'
जुलाई में तुकी की जगह खांडू को दी थी कमान
दरअसल कांग्रेस का अरुणाचल संकट नया नहीं है. उसने कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नाटकीय घटनाक्रम के बाद जुलाई में नबाम तुकी के स्थान पर पेमा खांडू को मुख्यमंत्री घोषित करके लंबी चली लड़ाई को जीतने में सफलता हासिल की थी. खांडू के विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद दो निर्दलीयों और 45 पार्टी विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने एक बार फिर सरकार बना ली थी. तेजी से बदले घटनाक्रम के बाद बागी नेता कालिखो पुल अपने 30 साथी बागी विधायकों के साथ पार्टी में लौट आए थे. गौरतलब है कि पुल बागी होकर मुख्यमंत्री बने थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अपदस्थ कर दिया था.
इस घटनाक्रम में विधानसभा में शक्ति परीक्षण से कुछ घंटे पहले कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई थी और विधायक दल ने पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत दोरजी खांडू के बेटे पेमा खांडू को सर्वसम्मति से अपना नेता चुन लिया था. अब खांडू ने ही बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है.
नवंबर, 2015 में हुई थी पहली बगावत
कांग्रेस में पहली बगावत नवंबर, 2015 में हुई थी. तभी से वहां राजनीतिक उथलपुथल का दौर जारी है. उस समय नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और राष्ट्रपित शासन लग गया था, फिर फरवरी, 2016 में कांग्रेस के बागी कालिखो पुल की अगुवाई में नई सरकार बनी थी, जिसे भाजपा के 11 विधायकों ने समर्थन दिया था.
पुल ने कर ली थी खुदकुशी
अरुणाचल के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में काम कर चुके 47 साल के कलिखो पुल ने अगस्त में खुदकुशी कर ली थी. वह सीएम आवास में ही रह रहे थे. बाद में गृह मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की थी कि पुल डिप्रेशन में थे.
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