बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस (Congress) अब अपने ही नेताओं के सवालों में घिरती हुई दिखाई दे रही है. 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस लगातार हारों का सामना कर रही थी. कुछ राज्यों ने इस हार के सिलसिले को थामा तो जरूर लेकिन सियाली उलटफेर में यहां से भी सत्ता हाथ से निकल गई. कर्नाटक और मध्य प्रदेश इसका ताजा उदाहरण हैं, राजस्थान में भी संकट (Rajasthan Crisis) अभी खत्म नहीं हुआ है. ऐसे में अब कांग्रेस नेताओं की नाराजगी सतह पर आती नजर आ रही है. पिछले कुछ दिनों में कुछ नेता आलाकमानों के फैसलों पर खुलकर बोल रहे हैं. इस बात को समझने के लिए बीते एक हफ्ते के दौरान हुई दो बातों को गौर से देखना होगा. जो अपने आप में कई संकेत दे रहे हैं.
पिछले दिनों राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने चीन के मामले को लेकर मोदी सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि चाहे मेरा राजनीतिक करियर खत्म हो जाए मैं भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ को लेकर झूठ नहीं बोलूंगा. उनके इस बयान पर बीजेपी ने तंज कसते हुए पलटवार किया. जिसके बाद राहुल गांधी के 'रुख' को लेकर उनकी अपनी पार्टी के ही एक ग्रुप में सवाल उठने शुरू हो गए. आलोचकों के इस ग्रुप के एक मेंबर ने कहा, "वह हमसे बात नहीं करते हैं और हमें नहीं पता कि उन्हें कोई सलाह दे रहा है." उनकी ही पार्टी के आलोचकों का यह वर्ग दावा करता है कि पार्टी की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी भी मामले में सार्वजनिक बयान देने से पहले विस्तृत जानकारी हासिल करने का अधिक प्रयास करती है. यह पूछे जाने पर कि राहुल गांधी चीन मामले में अलग राह क्यों अख्तियार किए हुए हैं, कांग्रेस के एक नेता ने कहा, "वह (राहुल गांधी) शायद सोचते हैं कि हम बेकार लोग हैं और उनके सलाहकार सबसे अच्छा जानते हैं."
ऐसा ही कुछ नजारा गुरुवार को कांग्रेस की वर्चुअल मीटिंग में भी देखने को मिला. इस बैठक में युवा नेताओं की ओर से काफी तर्क-वितर्क और आलोचना देखने को मिली. इन युवा नेताओं ने लोकप्रियता में आई गिरावट के लिए आखिरी सरकार UPA-2 को जिम्मेदार माना. पार्टी के सांसद राजीव सातव ने खुलकर कहा कि पूर्व की सरकारों में मंत्री पद पर रहे नेताओं को हार के कारणों पर गंभीरता से विश्लेषण करना चाहिए. इस बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मौजूद थे.
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कुल मिलाकर देखा जाए तो कांग्रेस के नेता पार्टी की हार का ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ रहे हैं. यही हालत साल 2019 में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी में भी देखने को मिला था. वहीं पार्टी के अंदर ही मोदी सरकार को घेरने के लिए शीर्ष नेतृत्व की नाकामी भी अखरने लगी है, अगले कुछ महीनों में कुछ और राज्यों के चुनाव होने हैं और उससे पहले कांग्रेस के अंदर जारी उबाल और मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
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