भारत के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने शनिवार को कहा कि नागरिकता सिर्फ लोगों के अधिकारों के बारे में ही नहीं बल्कि समाज के प्रति उनके कर्तव्यों के बारे में भी है. राष्ट्रसंत तुकादोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय (आरटीएमएनयू) के 107वें दीक्षांत समारोह में यहां अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कुछ शिक्षण संस्थान “बेहद वाणिज्यिक मानसिकता” के हो गए हैं, जबकि शिक्षा का असली उद्देश्य मेधा और चरित्र का विकास करना है.
जस्टिस बोबडे ने कहा, “आज, शिक्षा का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा है. दुर्भाग्य से कुछ ऐसे संस्थान हैं, मैं विश्वविद्यालयों के बारे में बात नहीं कर रहा, जो बेहद वाणिज्यिक मानसिकता वाले बन गए हैं. मैं यह कुछ संस्थानों को लेकर अपने निजी ज्ञान के आधार पर कह रहा हूं जो कानून की शिक्षा देते हैं.”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “जिस सबसे महत्वपूर्ण सवाल का हमें जवाब तलाशना चाहिए वह यह कि विश्वविद्यालय शिक्षा का उद्देश्य क्या होना चाहिए. विश्वविद्यालय निश्चित रूप से ईंट और पत्थर के बारे में नहीं है. विश्वविद्यालयों को किसी उत्पादन इकाई की तरह काम नहीं करना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “इस बात पर जोर देना भी बेहद जरूरी है कि विश्वविद्यालय की डिग्रियां अपने आप में अंत नहीं हैं, बल्कि अंत के लिए एक साधन हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि विश्वविद्यालय का विचार यह दर्शाता है कि एक समाज के तौर पर हम क्या हासिल करना चाहते हैं. विश्वविद्यालयों को खुद को पुनर्लक्षित करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अपने असल उद्देश्य की ओर बढ़कर समाज के वास्तविक लक्ष्य की दिशा में जाएं, जो निश्चित रूप से अलग-अलग समय में बदलता रहता है.”
शिक्षा के संदर्भ में प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “शिक्षा के विचार के साथ अनुशासन भी जुड़ा हुआ है और मैं समझता हूं कि कुछ क्षेत्रों में अनुशासन के विचार को लेकर नाराजगी बढ़ रही है. लेकिन अनुशासन शब्द का वह अर्थ नहीं है जो आज लगाया जा रहा है.” प्रधान न्यायाधीश आरटीएमएनयू से पढ़े हुए हैं.
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