नौसैनिक बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर (एनएमआरएच) परियोजना के मामले में भारत, चीन से पीछे चल रहा है. भारतीय नौसेना के पास अपने युद्धपोतों, फ्रिगेट और एअरक्राफ्ट कैरियर की निगरानी के लिए पहले से ही सर्विलांस हेलीकॉप्टरों की कमी है जबकि चीन इस मामले में भारत से आगे निकल गया है और हाल ही में उसने अपने स्वदेशी तकनीक से विकसित बहुउद्देश्यीय हेलिकॉप्टर ज़ेड-20 का तियानजिन में प्रदर्शन किया. हिंद महासागर के इलाके में सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनज़र नौसैनिक बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर यानी एएमआरएच भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और अक्टूबर में हाल ही में चीन की ओर से जेड-20 हेलीकॉप्टर के प्रदर्शन के बाद तो ये परियोजना और भी जरूरी हो गई है.
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि आज अपने देश का पोतनिर्माण उद्योग जिस गति से युद्धपोत उपलब्ध करा रहा है, उसकी तुलना में उन पोतों की सुरक्षा और निगरानी के लिए बहुउद्देश्यीय हेलिकॉप्टरों की संख्या काफी कम है. जब तक बहुउद्देश्यीय हेलिकॉप्टरों के रूप में इन सामुद्रकि पोतों को हवाई सुरक्षा नहीं मिलती, तब तक इन पोतों को पनडुब्बियों के हमलों से बचाना काफी मुश्किल है और ये आज के समय की बड़ी चुनौती है.
शत्रु के युद्धपोतों और पनडुब्बियों का सामना करने के लिए 40 साल पहले भारतीय नौसेना में शामिल किए गए इंग्लैंड निर्मित सीकिंग हेलिकॉप्टर, अब काफी पुराने हो चुके हैं. इसके अलावा इन हेलीकॉप्टरों में तब से कोई सुधार भी नहीं किया गया. टोही और युद्धक हेलीकॉप्टरों के रूप में बनाए गए सी हैरियर भारतीय नौसेना से बाहर किए जा चुके हैं. ऐसे में अब केवल सीकिंग हेलीकॉप्टरों की केवल एक ही स्क्वाड्रन, मुंबई में आईएनएस शिकरा पर मौजूद है.
विशेषज्ञों का मानना है कि एएमआरएच की इस कमी को तुरंत पूरा किया जाना चाहिए, चाहे सरकार इन्हें स्वदेशी उद्योगों से पूरा करे या फिर आयात करके. समुद्री निगरानी के लिए फिलहाल नौसेना सन 2013 से अमेरिकी पी8 आई टोही विमानों का इस्तेमाल कर रही है. ऐसी खबरें हैं कि सितंबर में अमेरिका और भारत के बीच एक समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है जिसके तहत लंबी दूरी के पनडुब्बी रोधी 10 और पी8 आई विमान जल्द ही हासिल किए जाएंगे.
नौसेना के पूर्व टेस्ट पायलट और रिटायर्ड कमांडर केपी संजीव कुमार ने बताया कि हालांकि पी8 आई विमान अपनी श्रेणी के अजेय विमान हैं, लेकिन ये बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टरों की जगह नहीं ले सकते. बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर समुद्र में युद्धपोत के डेक से पनडुब्बियों और दुश्मन के युद्धपोतों का सामना करना, इलेक्ट्रॉनिक इंटेलीजेंस, निगरानी और त्वरित हमले करने में सक्षम होते हैं और ये समुद्री बेड़े के हवाई हाथों की तरह काम करते हैं.
बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर, अमेरिकी पी8आई विमान का काम तो करते ही हैं, इसके अलावा वो समुद्र में सोनार की मदद से पनडुब्बियों का पता लगाने में भी सक्षम होते हैं. कमांडर कुमार ने बताया कि हमें मालूम होना चाहिए कि हेलीकॉप्टर के सामने पनडुब्बी लाचार होती है.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की 10 अक्टूबर को जारी खबर के मुताबिक चीन ने तियानजिन शहर में हुई चार दिवसीय हेलीकॉप्टर एक्स्पो में स्वदेशी रूप से विकसित जेड-20 हेलीकॉप्टर ने डेमो उड़ान भरी थी. सूत्रों के मुताबिक, जेड-20 अमेरिकी सिकोस्र्की एच-60 ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर का ही प्रतिरूप है, जिसकी तकनीक चीन ने रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिये हासिल की थी.
सूत्रों के अनुसार, हिंदुस्तान एअरोनॉक्सि लिमिटेड बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर पर अपनी एक स्टडी करा रहा लेकिन अभी तक ये प्रोजेक्ट केवल डिज़ाइनिंग तक ही सीमित है. भारतीय नौसेना ने अगस्त, 2017 में 123 बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिए अपनी इच्छा जाहिर की थी लेकिन अभी तक इस मामले में कोई भी डील नहीं हो पाई है. अमेरिका के सिकोस्र्की एअरक्राफ्ट कॉरपोरेशन से 23 एमएच-60आर सीहॉक हेलीकॉप्टर खरीदने के बारे में भी बातचीत चल रही है.
लेकिन नाम न छापने की शर्त पर एक भूतपूर्व नौसैन्य अधिकारी ने बताया कि 23 हेलीकॉप्टर भारतीय नौसेना की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते. उन्होंने बताया कि फैसला तो ये हुआ था कि रणनीतिक भागीदारी मॉडल के तहत भारत में 123 एनएमआरएच विकसित किए जाएंगे, लेकिन अगर आयात नहीं किया जाना है तो रणनीतिक भागीदार यानी हेलीकॉप्टर निर्माता कंपनी की पहचान कर ली जानी चाहिए. एनएमआरएच हासिल करने की आवश्यकता कहीं रक्षा मंत्रालय के चक्कर ही ना काटती रह जाए.
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