नए कांग्रेस अध्यक्ष कहां से लाएंगे वो 'आस्था और समर्पण'

अनुच्छेद 370 पर कांग्रेस ने जमकर फजीहत कराई है. राज्यसभा में कांग्रेस के  नेता गुलाम नबी आजाद जहां केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ नजर आए तो वहीं पार्टी के दूसरे नेता जनार्दन द्विवेदी, अभिषेक मनु सिंघवी, जयवीर सिंघवी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता कहीं न कहीं जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के साथ नजर आ रहे हैं.

नए कांग्रेस अध्यक्ष कहां से लाएंगे वो 'आस्था और समर्पण'

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक 10 अगस्त को है

खास बातें

  • कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक 10 अगस्त को
  • हो सकता है नए अध्यक्ष का ऐलान
  • 370 जैसे मुद्दों पर हैं मतभेद
नई दिल्ली:

अनुच्छेद 370  पर कांग्रेस ने जमकर फजीहत कराई है. राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद जहां केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ नजर आए तो वहीं पार्टी के दूसरे नेता जनार्दन द्विवेदी, अभिषेक मनु सिंघवी, जयवीर सिंघवी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता कहीं न कहीं जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के साथ नजर आ रहे हैं. हालांकि इनमें कई नेता हटाने की प्रक्रिया पर जरूर सवाल उठा रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा दिन 10 अगस्त है. पार्टी की कार्यसमिति की बैठक है और इसमें अध्यक्ष पद चुना जाना है. राहुल गांधी पहले ही कह चुके हैं कि उनके परिवार से कोई भी पार्टी का अध्यक्ष नहीं बनेगा यानी एक तरह से उन्होंने फिलहाल प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए रास्ता भी बंद कर दिया है. लेकिन सवाल इस बात का है पार्टी अंदर ही अंदर इतने खेमे में बंटी है कि गांधी परिवार से इतर कोई कांग्रेस का अध्यक्ष बनता है तो क्या दूसरे नेता वैसा 'समर्पण या आस्था' पैदा कर पाएंगे जो गांधी परिवार से जुड़े किसी नेता के लिए होती है. अगर इस सवाल का अगर सीधा कोई जवाब है तो शायद नहीं. तो फिर कांग्रेस के लिए रास्ता क्या है. क्या पार्टी किसी को फिलहाल अध्यक्ष बना देगी और एक दो-तीन सालों में प्रियंका गांधी के हाथों में कमान दे दी जाएगी. लेकिन इन दो-तीन सालों में पार्टी की जो दु्र्गति होगी उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? फिलहाल कांग्रेस का अध्यक्ष जो भी बनेगा उसके सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं.

आपसी फूट पर क़ाबू पाने की चुनौती
लगभग हर राज्य में पार्टी खेमेबाजी से जूझ रही है. जिन राज्यों में सरकारें वहां भी मुख्यमंत्री और बाकी नेताओं के समीकरण ठीक नहीं हैं. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्ध का मामला हम देख ही चुके हैं. राजस्थान में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद से सचिन पायलट भी खुश नहीं हैं. यही हाल मध्य प्रदेश में है जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच मतभेद हैं. छत्तीसगढ़ में  भूपेश बघेल के सीएम बनने के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेता जो सालों से मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे वह भी खुश नहीं है. नए अध्यक्ष के सामने इन बड़े नेताओं को साथ लेकर चलने और आपसी फूट को मिटना बड़ी चुनौती होगी. लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा जब नए अध्यक्ष के ऊपर गांधी परिवार का हाथ हो.

एजेंडा तय करने की चुनौती
बीजेपी ने राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर लोकसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की है. लेकिन कांग्रेस के मुद्दे जैसे नोटबंदी, जीएसटी, राफेल सब फेल हो चुके हैं. अब उसके सामने हरियाणा, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव हैं. अनुच्छेद-370 को जम्मू-कश्मीर से खत्म करने के फैसले के बाद से एक बार फिर राष्ट्रवाद का ढिंढोरा बीजेपी इन राज्यों में पीटेगी. दूसरी ओर कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है कि इसका विरोध कैसे करना है. आर्थिक मोर्चे पर सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं. ऑटो सेक्टर में लोगों की नौकरियां जा रही हैं और नए संभावानाएं न के बराबर हैं. लेकिन कांग्रेस क्या विपक्ष की कोई भी पार्टी इन  मुद्दों पर सरकार को घेर नहीं पा रहा है. कांग्रेस का कम्युनिकेशन तंत्र भी फेल हो चुका है और आम जनता तक उसकी बातें पहुंच नहीं पा रही हैं.

समान विचारधारा वाली पार्टियों से तालमेल
लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा लग रहा था कि राहुल गांधी बीजेपी के खिलाफ एक नया मोर्चा बनाने में कामयाब हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. लेकिन कांग्रेस को अगर एक मजबूत विपक्ष बनना है तो उसे समान विचारधारा वाली पार्टियों को साथ लाना होगा.

विधानसभा चुनाव चुनौती भी और मौका भी
जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वहां दिल्ली की छोड़कर हर जगह पर बीजेपी की सरकार है. जाहिर है स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता में गुस्सा जरूर होगा. कांग्रेस को इन राज्यों में नए कार्यकर्ता बनाकर घर-घर प्रचार की शुरुआत भी करनी होगी. अगर कांग्रेस इन राज्यों में एक भी  राज्य मे चुनाव जीत जाती है तो यह पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंकने का काम करेगा.

पार्टी को सांगठनिक तौर पर खड़ा करने की चुनौती
नए अध्यक्ष के सामने चुनौती कांग्रेस का पुनर्गठन भी है और इसके लिए जमीन स्तर पर नया कॉडर तैयार करना होगा. जो नेता छोड़कर गए हैं उनकी जगह भरना है और ऐसे नेताओं को तलाश करना होगा जो जमीन स्तर पर काम कर सकें. 

निभानी होगी मजबूत विपक्ष की भूमिका
संसद से लेकर सड़क तक कांग्रेस को एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में आना होगा. इसके लिए मीडिया में बयान  देने के साथ ही जमीन स्तर के मुद्दों पर भी संघर्ष करने की आदत डालनी होगी. छत्तीसगढ़ में बीजेपी के 15 सालों के शासन को उखाड़ फेंकने के पीछे पार्टी के नेताओं का जमीनी संघर्ष ने  भी बड़ी भूमिका अदा की थी.

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