
सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली के मौके पर दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाई हुई है
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पटाखों की बिक्री पर लगी रोक को लेकर मुस्लिम धर्म गुरु अलग-अलग राय रखते हैं. क्या कहते हैं ये मजहबी रहनुमा जानें यहां-
जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी कोर्ट के इस फैसले से सहमत नज़र नहीं आए. उन्होंने कहा कि
हिंदुस्तान की रिवायत रही है कि सभी लोग हंसी-ख़ुशी से अपने-अपने त्योहार मानते आये हैं. पहली दफ़ा ये हुआ है कि एक फ़िरक़े के सबसे बड़े त्यौहार और उसके जश्न पर पाबंदी की बात हुई है. अगर अदालत को ये फैसला देना ही था तो पहले देते या ज्यादा प्रदूषण फ़ैलाने वाले पटाखों पर पाबंदी लगते हुए बाकी के इस्तेमाल की इजाज़त देनी चाहिए थी, ताकि लोग अपने त्योहार को हमेशा की तरह जश्न के साथ मन सकते. शाही इमाम कहते हैं कि प्रदूषण बाकि और चीज़ों से भी होता है लिहाज़ा अचानक ये फैसला उनकी नज़र में मुनासिब नहीं है.

जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी

इत्तेहाद-ए-मिल्लत के चेयरमैन मौलाना तौक़ीर रज़ा खान पाबंदी लगाने को मुनासिब नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि हम लोग तो सालभर प्रदूषण फैलाते हैं, दीपावली एक दिन का परंपरागत मामला है, प्रदूषण को रोकने की जिम्मेदारी सरकार की है और उसे रोकने के लिए मुनासिब इंतज़ाम सरकार को करना चाहिए. पर ये ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी की धार्मिक भावनाएं आहात न हों. तौक़ीर रज़ा का ये भी कहना है कि आतिशबाज़ी दीपावली की पहचान है. इसलिए इस पर्व पर पटाखों पर पाबंदी अनुचित है.

लखनऊ ईदगाह के शाही इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट सबसे बड़ी अदालत है इसका जो भी फैसला है उसका सम्मान करना हम सबका फ़र्ज़ है, लेकिन उसी के साथ-साथ हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि दिवाली हिन्दू भाइयों का त्यौहार है और पटाखों चलाने का सिलसिला कुछ ही घंटों के लिए होता है, इसलिए उसको मनाने की अनुमति दी जानी चाहिए. मौलाना महली कहते हैं कि सिर्फ दिवाली से ही प्रदूषण होता है ये कहना मुनासिब नहीं है. पूरे साल होने वाले प्रदूषण को भी साथ-साथ देखा जाना चाहिए. दिवाली पर जो भी मज़हबी परंपरा है उसे बरक़रार रखना चाहिए.

दिल्ली फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ़्ती मुकर्रम फैसले को सही मानते हुए कहते हैं कि पटाखे को मज़हबी परंपरा से जोड़ना मुनासिब नहीं है. प्रदूषण से इंसान बहुत तेज़ी के साथ प्रभावित हो रहा है. इस फैसले से प्रदूषण तो रुकेगा लेकिन जिस तरह से ख़बरें आ रही कि लोग पटाखे छोड़ने पर आमादा हैं इससे ऐसा लगता है जैसे एक मज़हबी समुदाय ने इस मामले को अपनी आन-बान-शान का मामला बना लिया है. मेरी नज़र में फैसला ठीक है अगर पूरी तरह से अमल हो जाये.

वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सदस्य क़ासिम रसूल इलियास का मानना है कि दिवाली के मौके पर पटाखों का इस्तेमाल करने से दिल्ली में प्रदूषण काफी बढ़ जाता है. सर्वे बताते हैं कि दिल्ली प्रदूषण के लिहाज़ से इन्तेहाई खतरनाक मुक़ाम पर पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला इंसानी सेहत के लिहाज़ से बहुत ज़रूरी था. पटाखे को बड़े पैमाने पर जलाने से जो फ़िज़ूल खर्ची होती है उसको न जला कर अगर गरीबों और ज़रुरतमंदों की बेहतरी के लिए ये पैसा खर्च किया जाए तो बहुत पुण्य भी मिलेगा और दूसरों का भला भी होगा. वे कहते हैं कि दिवाली में ख़ुशी का इज़हार करने के लिए रौशनी की जाती रही है वो सिलसिला आज भी जारी है लेकिन पटाखे मौजूदा दौर की परंपरा है इससे प्रदूषण के अलावा कुछ हासिल नहीं होता.

मरकज़ी जमीअत अहले हदीस हिन्द के अध्यक्ष मौलाना असगर अली इमाम मेहंदी सलफ़ी कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहते हैं कि दिवाली हिन्दू भाइयों का सबसे बड़ा त्यौहार है और इसे रौशनी का त्यौहार भी कहा जाता है. इसमें दीये जलाने की साथ आतिशबाज़ी भी की जाती है और इसकी धार्मिक अहमियत उनके धर्म गुरु बेहतर जानते हैं. लेकिन आतिशबाज़ी से प्रदूषण होना तो लाज़मी है. मौलाना कहते हैं हिन्दू भाई भी इन चीज़ों से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं इसलिए कोर्ट के फैसले से सहमत हैं, जिसके लिए वो मुबारकबाद के मुस्तहक़ है.
ऑल इंडिया मीट एक्सपोर्ट एसोसिएशन प्रवक्ता फ़ौज़ान अलावी कहते हैं कि दीवाली पर पटाखों की बिक्री के रोक पर अगर ये फैसला पहले आता तो बेहतर होता क्योंकि जो लोग इस व्यापार से जुड़े हैं उनका इतना नुकसान नहीं होता.

उनका मानना है कि हिन्दु भाइयों के लिए दीवाली सबसे बड़ा त्यौहार है और मेरे नज़रिये में फुलझरी और अनार को जश्न के तौर पर चलने की इजाज़त होनी चाहिए. हालांकि शोर करने वाले पटाखों के साथ प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले पटाखों पर बैन ज़रूरी है.
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