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This Article is From Mar 18, 2020

मध्य प्रदेश : क्या कमलनाथ सरकार को बचा सकता है हरीश रावत का दांव...?

Madhya Pradesh Government in Crisis: मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस के नेता हर संभव कोशिश कर रहे हैं. राज्यपाल लालजी टंडन के दो बार कहने के बावजूद भी फ्लोर टेस्ट नहीं किया गया है.

मध्य प्रदेश : क्या कमलनाथ सरकार को बचा सकता है हरीश रावत का दांव...?
कांग्रेस नेता हरीश रावत का दावा है कि कमलनाथ बहुमत साबित कर देंगे
नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश में सरकार बचाने और गिराने की कवायद हर स्तर पर जारी है. आज मामले की सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई है. कांग्रेस की ओर से भी एक याचिका दी गई है. जिस पर बहस के दौरान पार्टी के वकील ने कहा कि राज्यपाल कैसे कह सकते हैं कि सरकार के पास बहुमत नहीं है.  सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब 6 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है तो विधानसभा स्पीकर ने क्या सभी 22 विधायकों पर अपने विवेक का इस्तेमाल किया है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूण जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ''मुद्दा यह है कि उन्होंने इस्तीफा दिया है इस पर स्पीकर द्वारा परीक्षण किया जाना है. स्पीकर का कर्तव्य है कि वह यह जांचने के लिए बाध्य है कि क्या किसी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है. स्पीकर को पहले इस्तीफा स्वीकार करना होगा. यह एक न्यायाधीश के इस्तीफे की तरह नहीं है, जहां वह अपने हाथों से इस्तीफा देता है. स्पीकर को खुद को संतुष्ट करना होगा.'' इसी बीच मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार बचाने के लिए उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत वाले फॉर्मूले की भी चर्चा है. एक बार उनके खिलाफ भी उत्तराखंड के कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर दी थी. पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत जैसे बड़े नेताओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था. ये मामला भी कोर्ट पहुंचा था. लेकिन हरीश रावत ने सभी विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द करवा दी थी और बाकी बचे विधायकों की संख्या के आधार बहुमत साबित कर दिया था. अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या सीएम कमलनाथ को हरीश रावत के अनुभव फायदा मिलता है या नहीं.  वहीं हरीश रावत का भी कहना है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को कोई खतरा नहीं है 

क्या उत्तराखंड जैसे हालात हैं मध्य प्रदेश में
ये अपने आप में एक अहम सवाल है. दरअसल यह मामला संवैधानिक तकनीकी से जुड़ा है. उत्तराखंड में बागी विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. इसके बाद हरीश रावत को दलबदल कानून का सहारा मिल गया था. लेकिन मध्य प्रदेश में बागी विधायकों ने अभी बीजेपी ज्वाइन नहीं की है. इसलिए उनके ऊपर दलबदल कानून लागू नहीं होता है.  राजनीतिक दांवपेंच का इस्तेमाल करके अगर सीएम कमलनाथ इन विधायकों सदस्यता रद्द करवा सकते हैं तो फिर मामला उत्तराखंड जैसा हो सकता है. यहां आपको बता दें कि कानूनविदों के मुताबिक राज्यपाल स्पीकर को आदेश नहीं दे सकता है और सदन में स्पीकर को अपने विवेक से फैसला लेने का अधिकार है.

क्या कहता है सीटों का गणित
मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायकों के इस्तीफे से पहले 227 विधायक (2 का निधन और एक BSP विधायक सस्पेंड)  कांग्रेस 114+6 सहयोगी मिलाकर 120 हैं और बीजेपी के पास 107. लेकिन 21 विधायकों के इस्तीफे के बाद कुल (इनमें से सिर्फ 6 के इस्तीफे अभी स्वीकार हुए हैं) विधायक 206, बहुमत का नया आंकड़ा 104, कांग्रेस+सहयोगी मिलाकर 99 यानी बहुमत से 5 कम. बीजेपी के पास 107 विधायक यानी बहुमत से 3 ज्यादा. मतलब ऐसी स्थिति में लड़ाई बहुत ही नजदीकी हो जाएगी. और जैसा कि कांग्रेस नेता दावा कर रहे हैं कि उनके संपर्क में भी बीजेपी के चार-पांच विधायक हैं तो शायद हरीश रावत की तरह कमलनाथ सरकार बचाने में कामयाब हो जाएं.

दिग्विजय सिंह पहुंचे बेंगलुरु
मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह बेंगलुरु में डेरा डाले कांग्रेस के बागी विधायकों से मिलने पहुंचे. लेकिन उन्हें मिलने दिया गया और साथ ही हिरासत में ले लिया गया. हालांकि उनकी रिहाई भी हो गई है. वहीं मंगवार को इन बागी विधायकों ने एक प्रेस कांन्फ्रेंस कर ऐलान किया था कि वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हैं.

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