नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि क्या चुनाव आयोग के पास किसी सांसद या विधायक जैसे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को आपराधिक कृत्य के लिए दोषी करार दिए जाने पर संबंधित सीट को रिक्त घोषित करने का अधिकार है.
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 10 जुलाई, 2013 को जारी आदेश के अनुसार, आपराधिक कृत्य के लिए दोषी करार दिए जाने पर किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को तत्काल आयोग्य घोषित कर दिया जाता है.
हालांकि जनप्रतिनिधि के पास खुद को दोषी करार दिए गए फैसले और सुनाई गई सजा के खिलाफ उच्चतर अदालत में अपील करने के लिए तीन महीने का समय होता है. जनप्रतिनिधि को तीन महीने की यह अवधि जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा आठ की उप-धारा चार के तहत प्रदान किया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2013 को दिए आदेश में असंवैधानिक करार दिया था.
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर, न्यायमूर्ति डी. वाई चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति एल. नागेश्वरा की पीठ ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोरा ने अदालत से कहा कि जब तक संबंधित विधायिका के सचिवालय के प्रधान सचिव सीट को रिक्त घोषित नहीं कर देते तब तक आयोग चुनाव कराने की पहल नहीं कर सकता.
सुनवाई के दौरान अदालत की पीठ ने पूछा कि किसी जनप्रतिनिधि को दोषी करार देने का आदेश अदालत सीधे निर्वाचन आयोग को क्यों नहीं भेज देती ताकि आयोग अगला कदम उठा सके. हालांकि अरोरा ने कहा कि प्रक्रियागत नियमों के तहत सिर्फ संसदीय सचिवालय या विधायिका किसी सीट को रिक्त घोषित कर सकता है.
अदालत ने केंद्र सरकार को यह नोटिस एक गैर सरकारी संगठन 'लोक प्रहरी' की याचिका पर जारी किया है, जिसमें संगठन ने उस नियम को चुनौती दी है जिसके तहत निर्वाचन आयोग का कम तभी शुरू होता है, जब सचिवालय सीट को रिक्त घोषित कर दे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 10 जुलाई, 2013 को जारी आदेश के अनुसार, आपराधिक कृत्य के लिए दोषी करार दिए जाने पर किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को तत्काल आयोग्य घोषित कर दिया जाता है.
हालांकि जनप्रतिनिधि के पास खुद को दोषी करार दिए गए फैसले और सुनाई गई सजा के खिलाफ उच्चतर अदालत में अपील करने के लिए तीन महीने का समय होता है. जनप्रतिनिधि को तीन महीने की यह अवधि जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा आठ की उप-धारा चार के तहत प्रदान किया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2013 को दिए आदेश में असंवैधानिक करार दिया था.
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर, न्यायमूर्ति डी. वाई चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति एल. नागेश्वरा की पीठ ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोरा ने अदालत से कहा कि जब तक संबंधित विधायिका के सचिवालय के प्रधान सचिव सीट को रिक्त घोषित नहीं कर देते तब तक आयोग चुनाव कराने की पहल नहीं कर सकता.
सुनवाई के दौरान अदालत की पीठ ने पूछा कि किसी जनप्रतिनिधि को दोषी करार देने का आदेश अदालत सीधे निर्वाचन आयोग को क्यों नहीं भेज देती ताकि आयोग अगला कदम उठा सके. हालांकि अरोरा ने कहा कि प्रक्रियागत नियमों के तहत सिर्फ संसदीय सचिवालय या विधायिका किसी सीट को रिक्त घोषित कर सकता है.
अदालत ने केंद्र सरकार को यह नोटिस एक गैर सरकारी संगठन 'लोक प्रहरी' की याचिका पर जारी किया है, जिसमें संगठन ने उस नियम को चुनौती दी है जिसके तहत निर्वाचन आयोग का कम तभी शुरू होता है, जब सचिवालय सीट को रिक्त घोषित कर दे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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