उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि न्यायाधीशों को 'माई लार्ड या योर लार्डशिप या योर ऑनर' के रूप में संबोधित करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन निश्चित ही उन्हें 'सम्मान' और 'गरिमापूर्ण' तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों के प्रति 'सर' का संबोधन भी स्वीकार्य है।
न्यायमूर्ति एचएल दत्तू और न्यायमूर्ति एसए बोबडे की खंडपीठ ने इस मसले पर एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा, 'हमने कब कहा कि यह अनिवार्य है। आप हमें सिर्फ गरिमापूर्ण तरीके से संबोधित कर सकते हैं।'
वकील शिव सागर तिवारी ने एक जनहित याचिका दायर करके कहा था कि न्यायालय में न्यायाधीशों को 'माई लार्ड या योर लार्डशिप' से संबोधित करना अंग्रजों के जमाने की देन है और यह गुलामी का प्रतीक है।
न्यायाधीशों ने तिवारी की याचिका पर विचार से इनकार करते हुए कहा, 'न्यायालय के संबोधन के लिए हम क्या चाहते हैं। संबोधन का सिर्फ एक सम्मानित तरीका। आप न्यायाधीशों को सर कह कर भी संबोधित कर सकते हैं। यह स्वीकार्य है। आप इसे योर ऑनर कहते हैं, यह भी स्वीकार्य है। आप लार्डशिप कहें तो यह भी स्वीकार्य है। ये तो उचित अभिव्यक्ति के कुछ तरीके हैं जो स्वीकार्य हैं।'
न्यायालय ने कहा कि इस तरह के संबोधनों पर प्रतिबंध लगाने और अदालतों को न्यायाधीशों को पारंपरिक तरीके से संबोधित करने का निर्देश देने के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
न्यायाधीशों ने कहा, 'इस तरह के नकारात्मक अनुरोध को हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं। हमें लार्डशिप से संबोधित मत कीजिए। हम कुछ नहीं कहते हैं। हम सिर्फ यही कहते हैं कि हमें सम्मान के साथ संबोधित कीजिये।'
न्यायाधीशों ने कहा, 'क्या हम आपके अनुरोध के बारे में उच्च न्यायालय को निर्देश दे सकते हैं? ये अप्रिय है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप सर, योर लार्डशिप या योर ऑनर कहें। हम यह निर्देश कैसे दे सकते हैं कि आप न्यायालय को किस तरह संबोधित करें।'
न्यायाधीशों ने कहा कि यह तो वकील पर निर्भर करता है कि वह न्यायालय को कैसे संबोधित करे। हम यह कैसे कह सकते हैं कि सहयोगी न्यायाधीश को लार्डशिप के रूप में संबोधन स्वीकार नहीं करना चाहिए। आपने जब सर कह कर संबोधित किया तो हमने इस पर कोई आपत्ति नहीं की है।
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