तेजस्वी यादव (फाइल फोटो)
बिहार में जनादेश देने के बाद जनता अब नीतीश के कामकाज को बड़ी उम्मीद और उत्सुकता के साथ देखेगी। इसकी शुरुआत नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह से बाद हो गई है। समारोह के फौरन बाद नीतीश सरकार के नए मंत्रिमंडल पर टीका-टिप्पणी होने लगी है। जाहिर है कि राजनीतिक विश्लेषकों और बिहार में विपक्ष के नेताओं की रणनीतियां सामने आएंगी और नई सरकार को हर कदम पर सजग रहना पड़ेगा।
अगर सिर्फ मीडिया और विपक्ष के रुख को भांपने की कवायद करना चाहें तो हमें याद रखना पड़ेगा कि पूरे चुनाव के दौरान नीतीश के पास अपने पुराने कामकाज, राजद और कांग्रेस के लावा किसी का सहारा नहीं था। यहां तक कि वोट पड़ जाने तक मीडिया और राजनीतिक विश्लेषक भी नीतीश के साथ खडे़ दिखाई नहीं दिए। हमें यह भी देखते चलना पड़ेगा कि पूरे चुनाव प्रचार अभियान में विपक्ष ने अपनी तोपें लालू पर ही साध रखी थीं। कांग्रेस को गायब करने के लिए यह रणनीति बनाई गई थी कि उसके अस्तित्व को ही नकार कर चला जाए।
विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषकों ने इन्ही मोर्चों पर अपना अपना काम किया था। और दोनों ही मोर्चों पर जनता ने अपना आदेश बिल्कुल उलट दिया। यानी अब शुक्रवार को शपथ ग्रहण समारोह में जनादेश के मुताबिक अगर राजद और कांग्रेस का प्रभुत्व दिखता है तो उसे जनादेश के हिसाब से सही ही माना जाएगा।
राजद की नई भूमिका पर नजर
बिहार में जनता की सबसे ज्यादा चहेती साबित हुई राजद की नई भूमिका सबसे रोचक होगी। चूंकि बिहार का चुनाव नीतीश की अगुआई में एलानिया लड़ा गया था। उनके अब तक कामकाज, उनकी निर्विवाद छवि और भविष्य में देश की राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लगभग स्वीकारा जा चुका है सो इसमें तो कोई शक है ही नहीं कि वे इन तीनों जन आंकाक्षाओं के निर्वाह का पूरा ध्यान रखेंगे। लेकिन राजद को जिस तरह का जन समर्थन मिला है उसे उतना ही महत्व देने का इंतजाम भी उन्हें करना है। नीतीश ने अपने बाद दूसरे नंबर पर राजद के युवा नेता तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल में शामिल किया है। अभी पक्के तौर पर इस बारे में पता नहीं है लेकिन अटकलों के आधार पर ही विश्लेषण करें तो आसानी से अनुमान किया जा सकता है बिहार में विपक्ष के पास तेजस्वी यादव को लेकर ही नीतीश सरकार के खिलाफ अभियान चलाने की एक संभावना दिखती है।
अच्छे स्तर के क्रिकेटर रहे हैं तेजस्वी
अलबत्ता बिहार के युवाओं के मूड और वहां के मौजूदा माहौल को देखते हुए तेजस्वी के खिलाफ बातें बनाने में विपक्ष को बड़ी दिक्कत आएगी। क्यों? इसका विश्लेषण अभी से किया जा सकता है। तेजस्वी अभी सिर्फ 26 साल के है। उन्हें राजनीति से अब तक बचाकर रखा गया था। वे अच्छे स्तर पर क्रिकेट खेलते रहे हैं। उनका उठना, बैठना उत्साही और तन्मयता के साथ अपना काम करने वाले खिलाडि़यों के बीच रहा है। अपने पिता के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनका बचपन और किशोर अवस्था राजकाज को देखते हुए गुजरी है।
प्रतिकार के लिए तेजस्वी को रहना होगा तैयार
अपने पिता के स्वभाव और व्यवहार के कारण उनका स्वभाव भी समाज के वंचित तबके के बच्चों और युवकों के साथ खेलते-कूदते हुए विकसित हुआ है। उनकी मां की सरलता जगजाहिर है ही। कुल मिलाकर वे एक कोरी स्लेट की तरह हैं और जैसा चाहें, उस पर इबारत लिख सकते हैं। और संभवत: इन्ही कारकों के कारण इस बार का चुनौतीपूर्ण चुनाव वे अच्छे वोटों के अंतर से जीते हैं। उनके खिलाफ विपक्ष के अभियान की शुरुआत जंगलराज के नाकाम नारे को फिर से लगाकर की जा सकती है। जाहिर है, बिहार में होने वाली छोटी सी छोटी वारदात को जंगलराज बताने का जोर से प्रचार शुरू होगा और उस दौरान तेजस्वी के नाम को बार-बार लेने की कोशिश होगी। यानी तेजस्वी को इस संभावित प्रचार का प्रतिकार करने का इंतजाम करके रखना पड़ेगा।
तेजस्वी के लिए आगे हैं चुनौतियां
अगर यह अनुमान लगाएं कि वे कर क्या सकते हैं तो यह कोई भी मानेगा कि बिहार के युवक काम-धंधे में लगने लायक शिक्षण प्रशिक्षण चाहते हैं। यह काम बड़ा जरूर है लेकिन इस काम की शुरुआत भर अगर वे करवा सके तो उनके लोकप्रिय होने में देर नही लगेगी। यह मुश्किल इसलिए भी नहीं है क्योंकि नीतीश भी उसी रुझान के हैं। लड़कियों की पढ़ाई के लिए जैसे इंतजाम नीतीश ने किए थे, उसकी प्रशंसा का फल वे पा ही चुके हैं। इसे आगे बढ़ाना उनकी प्राथमिकता में होना स्वाभाविक है। जाहिर है तेजस्वी के रूप में एक अखंडित चेहरा उनके पास उपलब्ध होगा।
बिहार में कांग्रेस की आश्चर्यजनक सफलता भी तेजस्वी के लिए अनुकूल परिस्थिति है। इस बार राहुल गांधी की बिहार में खास दिलचस्पी के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी के बीच बढ़े संपर्क से एक संभावना यह भी बनती है कि युवाओं के लिए कोई नई पहल शुरू हो जाए। बहरहाल बिहार में नई सरकार में पहले यदि सबसे ज्यादा चर्चा का कोई विषय है तो वह तेजस्वी को लेकर ही है।
अगर सिर्फ मीडिया और विपक्ष के रुख को भांपने की कवायद करना चाहें तो हमें याद रखना पड़ेगा कि पूरे चुनाव के दौरान नीतीश के पास अपने पुराने कामकाज, राजद और कांग्रेस के लावा किसी का सहारा नहीं था। यहां तक कि वोट पड़ जाने तक मीडिया और राजनीतिक विश्लेषक भी नीतीश के साथ खडे़ दिखाई नहीं दिए। हमें यह भी देखते चलना पड़ेगा कि पूरे चुनाव प्रचार अभियान में विपक्ष ने अपनी तोपें लालू पर ही साध रखी थीं। कांग्रेस को गायब करने के लिए यह रणनीति बनाई गई थी कि उसके अस्तित्व को ही नकार कर चला जाए।
विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषकों ने इन्ही मोर्चों पर अपना अपना काम किया था। और दोनों ही मोर्चों पर जनता ने अपना आदेश बिल्कुल उलट दिया। यानी अब शुक्रवार को शपथ ग्रहण समारोह में जनादेश के मुताबिक अगर राजद और कांग्रेस का प्रभुत्व दिखता है तो उसे जनादेश के हिसाब से सही ही माना जाएगा।
राजद की नई भूमिका पर नजर
बिहार में जनता की सबसे ज्यादा चहेती साबित हुई राजद की नई भूमिका सबसे रोचक होगी। चूंकि बिहार का चुनाव नीतीश की अगुआई में एलानिया लड़ा गया था। उनके अब तक कामकाज, उनकी निर्विवाद छवि और भविष्य में देश की राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लगभग स्वीकारा जा चुका है सो इसमें तो कोई शक है ही नहीं कि वे इन तीनों जन आंकाक्षाओं के निर्वाह का पूरा ध्यान रखेंगे। लेकिन राजद को जिस तरह का जन समर्थन मिला है उसे उतना ही महत्व देने का इंतजाम भी उन्हें करना है। नीतीश ने अपने बाद दूसरे नंबर पर राजद के युवा नेता तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल में शामिल किया है। अभी पक्के तौर पर इस बारे में पता नहीं है लेकिन अटकलों के आधार पर ही विश्लेषण करें तो आसानी से अनुमान किया जा सकता है बिहार में विपक्ष के पास तेजस्वी यादव को लेकर ही नीतीश सरकार के खिलाफ अभियान चलाने की एक संभावना दिखती है।
अच्छे स्तर के क्रिकेटर रहे हैं तेजस्वी
अलबत्ता बिहार के युवाओं के मूड और वहां के मौजूदा माहौल को देखते हुए तेजस्वी के खिलाफ बातें बनाने में विपक्ष को बड़ी दिक्कत आएगी। क्यों? इसका विश्लेषण अभी से किया जा सकता है। तेजस्वी अभी सिर्फ 26 साल के है। उन्हें राजनीति से अब तक बचाकर रखा गया था। वे अच्छे स्तर पर क्रिकेट खेलते रहे हैं। उनका उठना, बैठना उत्साही और तन्मयता के साथ अपना काम करने वाले खिलाडि़यों के बीच रहा है। अपने पिता के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनका बचपन और किशोर अवस्था राजकाज को देखते हुए गुजरी है।
प्रतिकार के लिए तेजस्वी को रहना होगा तैयार
अपने पिता के स्वभाव और व्यवहार के कारण उनका स्वभाव भी समाज के वंचित तबके के बच्चों और युवकों के साथ खेलते-कूदते हुए विकसित हुआ है। उनकी मां की सरलता जगजाहिर है ही। कुल मिलाकर वे एक कोरी स्लेट की तरह हैं और जैसा चाहें, उस पर इबारत लिख सकते हैं। और संभवत: इन्ही कारकों के कारण इस बार का चुनौतीपूर्ण चुनाव वे अच्छे वोटों के अंतर से जीते हैं। उनके खिलाफ विपक्ष के अभियान की शुरुआत जंगलराज के नाकाम नारे को फिर से लगाकर की जा सकती है। जाहिर है, बिहार में होने वाली छोटी सी छोटी वारदात को जंगलराज बताने का जोर से प्रचार शुरू होगा और उस दौरान तेजस्वी के नाम को बार-बार लेने की कोशिश होगी। यानी तेजस्वी को इस संभावित प्रचार का प्रतिकार करने का इंतजाम करके रखना पड़ेगा।
तेजस्वी के लिए आगे हैं चुनौतियां
अगर यह अनुमान लगाएं कि वे कर क्या सकते हैं तो यह कोई भी मानेगा कि बिहार के युवक काम-धंधे में लगने लायक शिक्षण प्रशिक्षण चाहते हैं। यह काम बड़ा जरूर है लेकिन इस काम की शुरुआत भर अगर वे करवा सके तो उनके लोकप्रिय होने में देर नही लगेगी। यह मुश्किल इसलिए भी नहीं है क्योंकि नीतीश भी उसी रुझान के हैं। लड़कियों की पढ़ाई के लिए जैसे इंतजाम नीतीश ने किए थे, उसकी प्रशंसा का फल वे पा ही चुके हैं। इसे आगे बढ़ाना उनकी प्राथमिकता में होना स्वाभाविक है। जाहिर है तेजस्वी के रूप में एक अखंडित चेहरा उनके पास उपलब्ध होगा।
बिहार में कांग्रेस की आश्चर्यजनक सफलता भी तेजस्वी के लिए अनुकूल परिस्थिति है। इस बार राहुल गांधी की बिहार में खास दिलचस्पी के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी के बीच बढ़े संपर्क से एक संभावना यह भी बनती है कि युवाओं के लिए कोई नई पहल शुरू हो जाए। बहरहाल बिहार में नई सरकार में पहले यदि सबसे ज्यादा चर्चा का कोई विषय है तो वह तेजस्वी को लेकर ही है।
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