माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने बुधवार को आरोप लगाया कि संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक के पारित होने के साथ ही भाजपा अब सावरकर और जिन्ना द्वारा प्रचारित द्विराष्ट्र के सिद्धांत को “फिर से जिंदा” करने की कोशिश कर रही है. गौरतलब है कि राज्यसभा ने बुधवार को नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी. इससे पहले विधेयक को सोमवार को लोकसभा की मंजूरी मिल चुकी थी. येचुरी ने ट्वीट किया था कि भारत का बंटवारा 1947 में हुआ था. हिंदू और मुस्लिम मातृभूमि, दोनों के प्रस्तावक एक ही घातक, विभाजनकारी, घृणित और भारतीय विरोधी प्रस्ताव के दो पक्ष थे. भारत ने द्विराष्ट्र के सिद्धांत को खारिज कर दिया. बीजेपी कैब के जरिए इसे फिर जिंदा करने की कोशिश कर रही है.
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बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) पर बहस का जवाब दिया. अमित शाह (Amit Shah) ने कहा बिल को लेकर कांग्रेस भ्रम नहीं फैलाए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं के बयान और पाकिस्तान के नेताओं के बयान कई बार घुलमिल जाते हैं. कल ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने जो बयान दिए और जो आज सदन में कांग्रेस के नेताओं ने बयान दिए वो एक से हैं. सिटीजनशिप बिल पर जो इमरान खान ने बयान दिए और आज जो कांग्रेस नेताओं ने बयान दिए वो एक से हैं. अमित शाह ने पूछा कि कांग्रेस ने एनिमि बिल का विरोध क्यों किया था? उसका कोई जस्टिफिकेशन है?
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अमित शाह (Amit Shah) ने कहा कि सबसे पहले आर्टिकल 14 पर सवाल उठाया गया. यह बिल क्यों? के जवाब में अमित शाह ने कहा कि यह बिल (CAB) कभी न लाना पड़ता अगर इस देश का बंटवारा नहीं हुआ होता. बंटवारा के कारण उत्पन्न हुई समस्या के कारण यह बिल लाना पड़ा. अगर पहले कोई सरकार यह बिल लाती तो अभी इसे लाने की जरूरत नहीं होती. कल कोई चुनाव नहीं है. देश की समस्या को कब तक टाला जा सकता है?
अमित शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता भोगने के लिए नहीं समस्याओं को दूर करने के लिए आई है. उन्होंने कहा कि आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल जी के टोकने के बाद फिर मैं कह रहा हूं कि अगर धर्म के आधार पर देश का बंटवारा नहीं हुआ होता तो इस बिल को लाने की जरूरत नहीं होती. अमित शाह ने कहा कि 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ. इसमें अल्पसंख्यक समुदाय के साथ अपने देश में पूरी आजादी सुनिश्चित किए जाने का वादा किया गया था. वहां कई तरह की पाबंदियां डाल दी गईं. यहां तो तमाम महत्वपूर्ण पदों पर मुसलमान आसीन हुए. भारत ने अपना वादा निभाया लेकिन वहां (पाकिस्तान) क्या हुआ?
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शाह ने कहा कि जिन्होंने जख्म लगाए वही सवाल पूछ रहे हैं. मुझे आश्चर्य होता है कि वो लोग आज सवाल पूछ रहे हैं. यह पहली बार नहीं है, नागरिकता संशोधन पहली बार नहीं हुआ है. इसके पहले भी अलग-अलग समस्याओं को हल करने के लिए बिल लाए गए. आज भी भारत से जुड़े तीन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों की समस्याओं को सुलझाने के लिए बिल लाया गया है. इसके पहले कई देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए बिल लाए गए तो फिर पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए ऐसा क्यों नहीं किया गया?
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अमित शाह (Amit Shah) ने कहा कि मुझे ध्यान बंटाने की जरूरत नहीं है. इसे राजनीतिक नजरिये से न देखें. हम अपने काम और अपने नेता के दम पर चुनाव जीतते हैं. एक सवाल किया गया कि इसमें मुस्लिम क्यों नहीं हैं? यह बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए है जो वहां धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए. मोदी के शासन काल में पिछले पांच साल में इन तीन देशों के 566 मुस्लिमों को यहां की नागरिकता दी गई है.
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