बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के तमाम दावों के बावजूद शराबबंदी विफल है. इसका एक और उदाहरण होली के दौरान देखने को मिला जब राज्य के अलग-अलग जिलों में तीस से अधिक लोगों की मौत कथित रूप से ज़हरीली शराब पीने से हुई. पिछले तीन दिनों के दौरान जहां भागलपुर में सोलह, बांका में बारह, मधेपुरा में तीन और नालंदा में एक व्यक्ति की मौत जहरीली शराब पीने से हुई और कई लोगों का इलाज स्थानीय अस्पताल में चल रहा है, हालांकि प्रशासन का कहना है कि चूंकि सभी व्यक्तियों का पोस्ट्मॉर्टम नहीं हुआ इसलिए सभी मौतें जहरीली शराब से ही हुई, ये कहना अतिश्योक्ति होगा.
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सोमवार को बिहार में होली के कारण दो दिनों तक अखबारों के दफ्तर में बंदी के बाद लोगों को अखबार पढ़ने को मिला, लेकिन इस एक मुद्दे के बारे में सभी अखबारों ने काफी सावधानी से खबर छापी है, खासकर हेडलाइन में. जहां दैनिक हिंदुस्तान के अनुसार- 31 लोगों की मौत संदिग्ध हालत में हुई, लेकिन अख़बार ने हर एक मृतक और उसके परिवार वाले के बारे में विस्तार से लिखा है और ये भी लिखा है कि कुछ मृतकों के परिवारवालों ने शराब पीने की बात मानीं.
वहीं दैनिक भास्कर की हेडलाइन में शराब पीने की बात के साथ साथ 32 लोगों की मौत की खबर की पुष्टि की गई है, लेकिन हेडलाइन में सबने जहरीली शराब से मौत की बात सीधे तौर पर नहीं लिखी, लेकिन एक भुक्तभोगी छोटू का फोटो उसके वर्जन के साथ छपा है कि शराब पीने के बाद उसके दोस्त की मौत हुई और उसकी आंख कि रोशनी चली गई.
दैनिक जागरण ने भी इस खबर को प्रमुखता से छापा है और मृतकों की संख्या 32 इस अख़बार के हेडलाइन में भी है, लेकिन संदिग्ध शब्द का इस्तेमाल एक बार फिर किया गया है, क्योंकि सभी मौतों की पुष्टि शराब के सेवन के बाद ही हुई इसलिए जहरीली शराब का इस्तेमाल कम से कम हेडलाइन में नहीं किया गया है.
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