नई दिल्ली:
बिहार में मुंगेर-लखीसराय सीमा पर दो दिन पहले मंगलवार को नक्सलवादियों से हुई मुठभेड़ में अपनी टीम के एक जवान की मौत के बाद राज्य के एक आईपीएस अफसर ने अपना दुःख साझा करते हुए इस बात पर बेहद अफसोस ज़ाहिर किया है कि कुछ ही दिन में लोग इस शहादत को भी भूल जाएंगे.
नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान मारा गया अजय लाल मंडल बिहार पुलिस की एसटीएफ, यानी स्पेशल टास्क फोर्स का ही हिस्सा था, और स्पेशल टास्क फोर्स के सुपरिन्टेन्डेन्ट (एसपी) शिवदीप लांडे के साथ ही काम करता था.
एसटीएफ एसपी शिवदीप ने अपने फेसबुक पेज पर लिखी मार्मिक पोस्ट में लिखा है कि लगभग रोज़ाना होने वाली इन शहादतों को सभी लोग जल्द ही भूल जाते हैं. उन्होंने शिकायत की कि सिनेमाई नायकों के साथ तस्वीर खिंचवाने के लिए लालायित रहने वाले लोग उन्हीं के लिए जान लुटा देने वाले नायकों की कद्र नहीं करते.
शिवदीप लांडे ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि वह घटनास्थल मुंगेर पहुंचकर शहीद अजय मंडल की पत्नी को यह नहीं बता पाए कि उसका पति कितना महान था. उनका कहना है कि वह अजय के शव को देखकर बताना चाहते थे, "तुम कितने खास थे, तुम कितने अनमोल थे," लेकिन न जाने क्यों, सभी भावनाओं को भीतर ही रखे रह गए.
अंत में शिवदीप ने लिखा, "मैं आप लोगों के साथ यह इसलिए शेयर कर रहा हूं, क्योंकि अब खुद से पूछने का समय आ गया है कि क्या हम सचमुच इन शहीदों की आहुति को सार्थक बना रहे हैं... हम तो सरहद और जंगलों में दुश्मन से लड़ते मर जाते हैं, पर क्या आप अपने अंदर की बुराइयों को मारेंगे, ताकि हम एक नए समाज का निर्माण कर सकें..."
नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान मारा गया अजय लाल मंडल बिहार पुलिस की एसटीएफ, यानी स्पेशल टास्क फोर्स का ही हिस्सा था, और स्पेशल टास्क फोर्स के सुपरिन्टेन्डेन्ट (एसपी) शिवदीप लांडे के साथ ही काम करता था.
एसटीएफ एसपी शिवदीप ने अपने फेसबुक पेज पर लिखी मार्मिक पोस्ट में लिखा है कि लगभग रोज़ाना होने वाली इन शहादतों को सभी लोग जल्द ही भूल जाते हैं. उन्होंने शिकायत की कि सिनेमाई नायकों के साथ तस्वीर खिंचवाने के लिए लालायित रहने वाले लोग उन्हीं के लिए जान लुटा देने वाले नायकों की कद्र नहीं करते.
शिवदीप लांडे ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि वह घटनास्थल मुंगेर पहुंचकर शहीद अजय मंडल की पत्नी को यह नहीं बता पाए कि उसका पति कितना महान था. उनका कहना है कि वह अजय के शव को देखकर बताना चाहते थे, "तुम कितने खास थे, तुम कितने अनमोल थे," लेकिन न जाने क्यों, सभी भावनाओं को भीतर ही रखे रह गए.
अंत में शिवदीप ने लिखा, "मैं आप लोगों के साथ यह इसलिए शेयर कर रहा हूं, क्योंकि अब खुद से पूछने का समय आ गया है कि क्या हम सचमुच इन शहीदों की आहुति को सार्थक बना रहे हैं... हम तो सरहद और जंगलों में दुश्मन से लड़ते मर जाते हैं, पर क्या आप अपने अंदर की बुराइयों को मारेंगे, ताकि हम एक नए समाज का निर्माण कर सकें..."
'ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर जान देने की रुत रोज़ आती नहीं,अब तुम्हारे हवाले, वतन साथियों..' ऐसा नहीं की ये पहली बार...
Posted by Shivdeep Lande on Wednesday, 10 August 2016
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