बिहार में अब यदि गांव के मुखिया, उपमुखिया या पंचायत के सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज कराने की नौबत आती है तो पहले सरकार से इसकी अनुमति लेनी होगी।
सरकार ने पंचायत प्रतिनिधियों को 'सुरक्षा कवच' प्रदान कर दिया है, जिसकी मांग बिहार में मुखिया संघ द्वारा से काफी समय से की जाती रही थी।
बिहार पंचायती राज विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि पंचायती राज के मंत्री के अनुमति के बिना अब मुखिया के खिलाफ मुकदमा नहीं चलेगा। इसके साथ ही सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही या छोटी-मोटी गलती पर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी और उनके खिलाफ मिली शिकायतों की जांच अनुमंडल अधिकारी से नीचे के अधिकारी नहीं करेंगे।
बिहार के पंचायती राज मंत्री विनोद प्रसाद यादव ने बुधवार को बताया कि विभाग के प्रधान सचिव शशिशेखर शर्मा की ओर से सभी प्रमंडलीय आयुक्तों, सभी जिलाधिकारियों को इस संबंध में दिशा निर्देश भेजे जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि मुखिया संघ की मांग और पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा किए गए वादे के मुताबिक सरकार ने पंचायत प्रतिनिधियों को सुरक्षा कवच देने का निर्णय लिया है।
पंचायती राज विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, "दुराचार या नियम विरुद्ध कार्य करने पर पंचायत प्रतिनिधि भी अब उसी तरह से कानून के घेरे में आएंगे, जिस तरह से अन्य लोकसेवक आते हैं। निर्वाचित मुखिया या उपमुखिया को आरोपों के आधार पर बिना सरकार की मंजूरी के पद से हटाया नहीं जा सकता है।"
मंत्री ने कहा कि पंचायत प्रतिनिधि लगातार मामूली चूक के मामलों में भी मुकदमे में फंसा देने की शिकायत करते रहते थे। इसी के मद्देनजर सरकार ने नए दिशा निर्देश लागू किए हैं।
नए दिशा निर्देशों के मुताबिक शिकायतें संबंधित प्रखंड विकास पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी, जिला पंचायती राज पदाधिकारी, उपविकास आयुक्त या जिलाधिकारी से की जा सकती है, लेकिन मामले की जांच अनुमंडल पदाधिकारी या इससे ऊपर के ही अधिकारी कर सकते हैं। जांच 90 दिनों के अंदर पूरा कर लिया जाएगा।
संज्ञेय अपराध, गबन और भ्रष्टाचार के मामले में हालांकि प्राथमिकी दर्ज करने और अनुसंधान करने के लिए पुलिस को छूट होगी, लेकिन आरोप पत्र दाखिल करने के पूर्व पंचायती राज विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
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