बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार.
पटना:
बिहार विधानसभा चुनाव में अब एनडीए के नेता भी मानने लगे हैं कि विरोधी तो विरोधी उनके समर्थक वोटरों में भी मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के कामकाज को लेकर अच्छी खासी नाराजगी है, जिसका फ़ायदा विपक्ष को प्रचार में मिल रहा है. ऐसे में जानते हैं कि आख़िर क्या है नीतीश से लोगों में नाराजगी के कारण?
- लोगों में सबसे ज़्यादा नाराज़गी का कारण नीतीश कुमार की शराबबंदी है. लोगों की शिकायत है कि इससे एक समानांतर व्यवस्था क़ायम हुई है और गाँव-गाँव में अवैध शराब की जो व्यवस्था क़ायम हुई है, उससे उन्हें परेशानी है.
- शराबबंदी से ही जुड़ा है नीतीश सरकार का अपराधियों के प्रति ट्रैक रिकॉर्ड. पहले उनकी छवि एक ऐसे मुख्य मंत्री की थी जो अपराध करने वाले को सजा दिलाती थी और अब पुलिस और शराब माफिया के हर स्तर पर नेक्सस के कारण उनके सरकार का इक़बाल कम हुआ है. कहीं भी लोग विधि-व्यवस्था की बात नहीं करते बल्कि आपको उदाहरण देंगे कि थाने के अधिकारी और अपराधी कैसे इस शराबबंदी के बाद करोड़पति हो गए?
- नीतीश कुमार से लोगों की सबसे अधिक शिकायत भ्रष्टाचार और घूसखोरी को लेकर है. उनके कट्टर समर्थक भी मानते हैं कि कोई एक ऐसा दफ़्तर नहीं है, जहां आपका काम बिना पैसे के अधिकारी कर दें.
- एनडीए के नेताओं, खासकर जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का कहना है कि नीतीश अपने अधिकारियों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं सुनते, जिससे उनको फीडबैक देना भी बेकार है. वो दरअसल अधिकारियों के मुख्य मंत्री हैं और अधिकारी उन्हें हर बात में घुमाते रहते हैं.
- अगर आप जमीन पर उपलब्धियों की चर्चा करेंगे तो लोग हर घर नल का जल योजना को दिखाते हैं और कहते हैं कि इसमें नीतीश कुमार की ज़िद को पूरा करने का ज़िम्मा वार्ड सदस्यों को दिया गया. इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ जिसके कारण हर जगह घटिया काम हुआ. परिणामस्वरूप नीतीश कुमार की छवि और भी धूमिल हुई.
- नीतीश कुमार के बारे में उनके समर्थक भी मानते हैं कि अब वो किसी की नहीं सुनते. जनता से संवाद या फीडबैक नहीं लेते. वो एक तरफा संवाद करते हैं, जहाँ अधिकारी उनको सब कुछ अच्छा दिखाते हैं, जो वो देखना चाहते हैं और सभी अक-दूसरे की पीठ थपथपा लेते हैं. लोग बार-बार उनकी जनता दरबार की चर्चा करते हैं कि कैसे लोग सप्ताह में एक दिन अपनी शिकायत लेकर सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंच जाते थे और सीएम भी अपने हाथों से लोगों की फरियाद लेते थे लेकिन अब उनकी छवि एक आधिकारिक मुख्यमंत्री के रूप में बन चुकी है.
- नीतीश कुमार की छवि सबसे ज़्यादा ख़राब कोरोना काल के बाद हुई है. भले सरकार दावा करे कि लोगों का ख्याल रखा गया. एक करोड़ से अधिक राशन कार्डधारियों को 1,000 रुपये दिए गए या बाहर फँसे 20 लाख लोगों के खाते में 1000 रुपये ट्रांसफर किए गए लेकिन लगता है कि नीतीश कुमार क्या ये काम लोगों तक नहीं पहुँच पाया है और जनता इन सभी पैसों का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देती है.
- बिहार में आप जहाँ भी जाएंगे, लोग शिक्षा व्यवस्था की शिकायत करेंगे. लोगों का नीतीश कुमार के प्रति यही व्यंग्य रहता है कि वो अभी भी अपने पहले कार्यकाल के पाँच साल के रिकॉर्ड को ही बजा रहे हैं लेकिन शिक्षा और शिक्षकों की गुणवता सुधारने के लिए कोई उपाय नहीं करते.
- राज्य में 15 साल के शासन के बावजूद कोई नया उद्योग धंधा का नहीं लगना भी लोगों को खल रहा है. लोगों का कहना है कि उनका ये बयान कि हम समुद्र के नज़दीक नहीं है इसलिए यहां कारोबारी उद्योग नहीं लगाना चाहते हैं, एक बहाना है क्योंकि यही नीतीश कुमार जो कहते थे कि अगर विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो यहाँ पर कई उद्योग लगेंगे. उनका कहना है कि अगर नीतीश के तर्कों को मानें तो उत्तराखंड में या हिमाचल में एक भी उद्योग नहीं होने चाहिए थे लेकिन वहां तो बड़े पैमाने पर उद्योग धंधे लगे हुए हैं. लोगों का कहना है कि अब वो समाधान की बजाय बहानेबाज़ी कर निकल जाना चाहते हैं.
- लोगों में ख़ासकर इंडिया समर्थकों में नीतीश कुमार की छवि ये भी बनी हुई है कि अब वो देश के उन मुख्यमंत्रियों में से एक हैं जो चाहकर भी केंद्र से या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी कोई माँग नहीं मनवा सकते हैं. आप कहीं भी जाएंगे तो लोग एक ही उदाहरण देते हैं कि जब नीतीश जी पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं बनवा सकते हैं तो उनसे अब क्या उम्मीद रखें? इससे तो अच्छा होता कि कोई भाजपा का मुख्य मंत्री होता.