243 सदस्यों वाली बिहार विधान सभा के लिए चुनाव इस बार तीन चरणों में होना है. सीमांचल के इलाकों में तीसरे चरण में 7 नवंबर को वोटिंग होगी. सुपौल जिले की सुपौल सदर विधान सभा सीट पर भी तीसरे चरण में वोटिंग होनी है. यहां से जेडीयू के दिग्गज नेता और नीतीश सरकार में लंबे समय से कैबिनेट मंत्री रहे विजेंद्र यादव साल 1990 से लगातार जीतते आ रहे हैं. जेपी मूवमेंट से राजनीति में कदम रखने वाले विजेंद्र यादव अपनी सादगीपूर्ण जीवन के लिए जाने जाते हैं. 1990 में वो पहली बार इस सीट से जनता दल के टिकट पर जीतकर आए थे, तब उन्हें लालू यादव की सरकार में मंत्री बनाया गया था.
विजेंद्र यादव बाद में नीतीश कुमार की जेडीयू में शामिल हो गए. 2005 में जब बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर बिहार में पहली बार सरकार बनाई थी, तब विजेंद्र यादव जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष थे. एक समय ऐसा भी आया जब उनका नाम सीएम के दावेदारों में लिया जाने लगा था लेकिन बाजी जीतनराम मांझी ने मारी थी. यादव राज्य के ऊर्जा, सिंचाई, विधि, वाणिज्य, मद्य निषेध विभाग के मंत्री रह चुके हैं. फिलहाल ऊर्जा मंत्री हैं.
सात बार से लगातार जीत रहे चुनाव
विजेंद्र यादव 1990 से लगातार सात बार (2005 में दो बार- फरवरी और नवंबर) विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. हर बार उन्होंने विपक्षी प्रतिद्वंदी को पटखनी दी. 2015 के चुनावों में उनके खिलाफ 51 उम्मीदवार मैदान में थे, बावजूद उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार किशोर कुमार को 38 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया. 2015 में जेडीयू और राजद ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था.
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यादव बहुल है यह इलाका
सुपौल विधान सभा इलाका यादव, राजपूत और मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, यहां करीब 3 लाख मतदाता हैं. इनमें से 80 हजार के करीब यादव मतदाता हैं. अति पिछड़ा वर्ग की भी अच्छी आबादी है. इनके अलावा ब्राह्मण और दलित वोटर की भी तादाद ठीक है. इस इलाके में माय समीकरण से ही उम्मीदवार की हार-जीत तय होती है. 2015 तक यह समीकरण विजेंद्र यादव के पक्ष में रहा है लेकिन इस बार समीकरण का क्या असर होगा, देखने वाली बात होगी.
पप्पू यादव रास्ते में खड़ा कर सकते हैं कांटा
जन अधिकार पार्टी प्रमुख और पूर्व सांसद पप्पू यादव की भी नजर इस सीट पर है. उनकी पत्नी रंजीत रंजन इसी सीट से सांसद रही हैं. पप्पू यादव का इलाके में अच्छा प्रभाव है. समझा जाता है कि उनके द्वारा प्रत्याशी खड़े करने से विजेंद्र यादव की जीत में रोड़ा अटक सकता है. वैसे अपने विकास कार्यों की वजह से विजेंद्र यादव इलाके में काफी लोकप्रिय रहे हैं. उन्हें लोग कोशी के विश्वकर्मा के नाम से भी पुकारते हैं.
पहले कांग्रेस का गढ़ रही है सुपौल सीट
1951 में पहली बार इस सीट पर विधान सभा चुनाव हुए. तब कांग्रेस के लहटो चौधरी ने जीत दर्ज की थी. 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के परमेश्वर कुमार जीते बाद में फिर यह सीट कांग्रेस की झोली में आ गई. 1977 में जनता पार्टी के अमरेंद्र प्रसाद सिंह जीते लेकिन 1980 से 1990 तक फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार जीते. 1990 से लगातार विजेंद्र यादव जीत रहे हैं. 1990 और 1995 का चुनाव उन्होंने जनता दल के टिकट पर जीता था . बाद में वो जेडीयू में शामिल होकर 2000 से तीर निशान पर जीत रहे हैं.
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