प्रतीकात्मक फोटो
पटना:
बिहार और केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के जरिए भले ही बच्चों और महिलाओं को सेहतमंद बनाने की बात की जा रही हो, लेकिन राज्य के 63 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे और 60 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) की शिकार हैं। पिछले 10 वर्षों के दौरान स्थिति में हालांकि सुधार देखा जा रहा है। यह खुलासा भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएएफएचएस-चार) द्वारा हुआ है।
पचास हजार से अधिक लोगों पर सर्वेक्षण
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए यह सर्वेक्षण एकेडमी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (एएमएस) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) ने 16 मार्च से दो अगस्त, 2015 के बीच किया था। इसके लिए कुल 36,772 घरों की 45 हजार 812 महिलाओं और 5,431 पुरुषों से संपर्क किया गया।
63.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिक
एनएएफएचएस-चार की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में छह माह से 59 माह तक के 63.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिक हैं। इनमें शहरी इलाके के 58.8 प्रतिशत और 64 प्रतिशत बच्चे ग्रामीण इलाकों से आते हैं। वैसे, रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि गुजरे 10 वर्षों में बच्चों की एनीमिया की स्थिति में सुधार हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2005-06 की एनएफएचएस-तीन की रिपोर्ट में यह आंकड़ा 78 प्रतिशत था।
60.3 फीसदी महिलाओं में रक्त की कमी
इस मामले में बिहार की महिलाओं की स्थिति भी बेहतर नहीं है। जो महिलाएं 15 से 49 वर्ष उम्र की हैं और गर्भवती नहीं हुई हैं, उनमें से 60.4 प्रतिशत एनीमिया पीड़ित हैं, जबकि गर्भवती महिलाओं की संख्या 58.3 प्रतिशत है। अगर कुल महिलाओं की स्थिति पर गौर करें तो पता चलता है कि 60.3 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक हैं। बीते 10 वर्षों में दोनों ही वर्ग की महिलाओं में लगभग दो प्रतिशत सुधार आया है। राज्य में एनीमिक पुरुषों की संख्या भी कम नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, 32.2 प्रतिशत पुरुष एनीमिक हैं। इनमें शहरी क्षेत्रों के 24.2 प्रतिशत और 34.1 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं। हालांकि रिपोर्ट में पुरुषों की स्थिति में भी सुधार की बात कही गई है। वर्ष 2005-06 की एनएएफएचएस-तीन में यह आंकड़ा 34.3 प्रतिशत था।
जागरूकता की कमी के कारण समस्या
पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) के चिकित्सक व फिजिशियन डॉ सतीश कुमार कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र हो लोगों को शरीर के लिए विटामिन और पोषक तत्वों की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि आज भी कई क्षेत्रों में गर्भवती महिलाएं अस्पताल नहीं पहुंच पातीं। बच्चों और महिलाओं में खून की कमी का सबसे बड़ा कारण अव्यवस्थित दिनचर्या और असंतुलित भोजन है। पटना के जाने-माने चिकित्सक डॉ एचसी मिश्रा कहते हैं कि बच्चों के एनीमिक होने की मूल वजह सफाई पर ध्यान न देना है। गंदगी के कारण बच्चों के पेट में वार्म (कीड़े) हो जाते हैं, जिससे उनके अंदर खून की कमी हो जाती है। समाज में जागरूकता लाई जाए और संतुलित भोजन के बारे में बताया जाए तो खून की कमी दूर की जा सकता है।
गरीब परिवार संतुलित भोजन से दूर
पटना विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्रोफेसर एस भारती कुमार कहती हैं कि एनीमिया की मूल वजह जागरूकता का अभाव तथा निर्धनता है। लोगों को पता ही नहीं होता कि उनके शरीर के लिए किन विटामिनों की जरूरत है, लिहाजा वे संतुलित भोजन नहीं लेते और एनीमिक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह कोई बीमारी नहीं है, इसे संतुलित भोजन से सुधार जा सकता है। कई गरीब परिवार ऐसे भी हैं जो चाहकर भी संतुलित भोजन नहीं ले पाते।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
पचास हजार से अधिक लोगों पर सर्वेक्षण
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए यह सर्वेक्षण एकेडमी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (एएमएस) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) ने 16 मार्च से दो अगस्त, 2015 के बीच किया था। इसके लिए कुल 36,772 घरों की 45 हजार 812 महिलाओं और 5,431 पुरुषों से संपर्क किया गया।
63.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिक
एनएएफएचएस-चार की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में छह माह से 59 माह तक के 63.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिक हैं। इनमें शहरी इलाके के 58.8 प्रतिशत और 64 प्रतिशत बच्चे ग्रामीण इलाकों से आते हैं। वैसे, रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि गुजरे 10 वर्षों में बच्चों की एनीमिया की स्थिति में सुधार हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2005-06 की एनएफएचएस-तीन की रिपोर्ट में यह आंकड़ा 78 प्रतिशत था।
60.3 फीसदी महिलाओं में रक्त की कमी
इस मामले में बिहार की महिलाओं की स्थिति भी बेहतर नहीं है। जो महिलाएं 15 से 49 वर्ष उम्र की हैं और गर्भवती नहीं हुई हैं, उनमें से 60.4 प्रतिशत एनीमिया पीड़ित हैं, जबकि गर्भवती महिलाओं की संख्या 58.3 प्रतिशत है। अगर कुल महिलाओं की स्थिति पर गौर करें तो पता चलता है कि 60.3 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक हैं। बीते 10 वर्षों में दोनों ही वर्ग की महिलाओं में लगभग दो प्रतिशत सुधार आया है। राज्य में एनीमिक पुरुषों की संख्या भी कम नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, 32.2 प्रतिशत पुरुष एनीमिक हैं। इनमें शहरी क्षेत्रों के 24.2 प्रतिशत और 34.1 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं। हालांकि रिपोर्ट में पुरुषों की स्थिति में भी सुधार की बात कही गई है। वर्ष 2005-06 की एनएएफएचएस-तीन में यह आंकड़ा 34.3 प्रतिशत था।
जागरूकता की कमी के कारण समस्या
पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) के चिकित्सक व फिजिशियन डॉ सतीश कुमार कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र हो लोगों को शरीर के लिए विटामिन और पोषक तत्वों की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि आज भी कई क्षेत्रों में गर्भवती महिलाएं अस्पताल नहीं पहुंच पातीं। बच्चों और महिलाओं में खून की कमी का सबसे बड़ा कारण अव्यवस्थित दिनचर्या और असंतुलित भोजन है। पटना के जाने-माने चिकित्सक डॉ एचसी मिश्रा कहते हैं कि बच्चों के एनीमिक होने की मूल वजह सफाई पर ध्यान न देना है। गंदगी के कारण बच्चों के पेट में वार्म (कीड़े) हो जाते हैं, जिससे उनके अंदर खून की कमी हो जाती है। समाज में जागरूकता लाई जाए और संतुलित भोजन के बारे में बताया जाए तो खून की कमी दूर की जा सकता है।
गरीब परिवार संतुलित भोजन से दूर
पटना विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्रोफेसर एस भारती कुमार कहती हैं कि एनीमिया की मूल वजह जागरूकता का अभाव तथा निर्धनता है। लोगों को पता ही नहीं होता कि उनके शरीर के लिए किन विटामिनों की जरूरत है, लिहाजा वे संतुलित भोजन नहीं लेते और एनीमिक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह कोई बीमारी नहीं है, इसे संतुलित भोजन से सुधार जा सकता है। कई गरीब परिवार ऐसे भी हैं जो चाहकर भी संतुलित भोजन नहीं ले पाते।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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