पंडित भजन सोपोरी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
हमेशा विवादों में घिरा रहने वाला देश में अपने तरह का अनूठा कला-साहित्य संस्थान भोपाल का भारत भवन एक बार फिर विवादों में है। विवाद का कारण एक ऐसा आयोजन है जिसमें कलाकारों के बीच कथित रूप से भेदभाव बरता जा रहा है। इसी माह 15 से 17 जुलाई तक यहां संतूर समारोह का आयोजन होने जा रहा है। इस समारोह में दो दिग्गज कलाकार पंडित शिवकुमार शर्मा और पंडित भजन सोपोरी को आमंत्रित किया गया है। इसके अलावा आमंत्रित अन्य कलाकारों में पंडित शर्मा के शिष्यों की संख्या काफी है लेकिन पंडित सोपोरी के किसी शिष्य को मौका नहीं दिया जा रहा है। इससे खफा पंडित भजन सोपोरी ने आमंत्रण ठुकरा दिया है। khabar.ndtv.com से खास मुलाकात में पंडित सोपोरी ने भारत भवन प्रशासन के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की।
पंडित भजन सोपोरी नहीं करेंगे शिरकत
पंडित भजन सोपोरी ने बताया कि 'भारत भवन में जब एक खास वाद्य पर केंद्रित संगीत समारोह हो रहा है तो इसकी समुचित योजना होनी चाहिए। कश्मीर का सोपोर घराना देश का एक मात्र संतूर का संगीत घराना है। इस घराने में कई प्रतिभाशाली कलाकार हैं। इनमें एक तो मेरा बेटा अभय सोपोरी है और इसके अलावा देश की पहली महिला संतूर वादक वर्षा अग्रवाल हैं। वर्षा मध्यप्रदेश के ही उज्जैन शहर की हैं। वे आकाशवाणी और दूरदर्शन की ए ग्रेड कलाकार हैं और दुनिया भर में अपनी प्रस्तुतियां देती हैं। इसके अलावा घराने के और भी कई कलाकार हैं जिन्हें अवसर मिलना चाहिए।' उन्होंने बताया कि 'मैं भारत भवन प्रशासन के इस रवैये से दुखी हूं और इसलिए मैंने संतूर समारोह में शिरकत करने से इनकार कर दिया है।'
संतूर के एक मात्र घराने की उपेक्षा
विश्वविख्यात संतूर वादक ने कहा कि 'देश में संतूर को सोपोर घराने से पृथक करके कैसे देखा जा सकता है? इस घराने की 300 साल की परंपरा है जिसमें आठ से दस पीढ़ियों ने संगीत की साधना की है। इसने संतूर वादन की कला को न सिर्फ संरक्षित किया बल्कि इसकी दुनिया भर में पहचान भी बनाई।' उन्होंने कहा कि 'मेरे पिता पंडित शंभूनाथ सोपोरी के हजारों शिष्य थे। सोपोर घराने की 'बाज शैली' की अलग पहचान है। यह घराना सूफी दर्शन और निर्गुण ईश्वर भक्ति परम्परा का अनुसरण करता है।'
कलाकारों के लिए सरकार की मान्यता भी अहम
पंडित सोपोरी ने कहा कि 'लोगों तक सच्चा संगीत पहुंचाया जाना चाहिए। सबकी अपनी-अपनी शैलियां हैं। सिर्फ अपना ढोल पीटना तो ठीक नहीं है। सभी को सुना-सुनाया जाना चाहिए। लोग कलाकारों की सहजता को उसकी कमजोरी मान लेते हैं। कलाकार के लिए अवार्ड के अलावा गवर्नमेंट का रिकग्नीशन भी मायने रखता है। अवार्ड सुकून देता है, इस बात पर कि मैंने कुछ किया तो उसका एप्रिसिएशन मिला। यदि साधना करने वाले की कला आम लोगों तक न जाए तो यह कलाकार के लिए निराशाजनक होता है।'
संतूर से अधिक पंडित शर्मा पर केंद्रित समारोह
भारत भवन के संतूर समारोह का विवरण देखने पर यह साफ हो जाता है कि यह समारोह संतूर से अधिक पंडित शिवकुमार शर्मा पर केंद्रित है। 15 जुलाई को उनके शिष्यों की सामूहिक प्रस्तुति के बाद उनके ही संतूर वादन से समापन है। दूसरे दिन सुबह संतूर पर चर्चा है जिसमें बातचीत करने वाले सिर्फ पंडित शर्मा हैं। इस दौरान उन्हीं पर बनाई गई एक फिल्म का प्रदर्शन है। शाम को दो कलाकारों की प्रस्तुतियों के बाद पंडित सोपोरी के वादन से कार्यक्रम का समापन तय किया गया है। अंतिम दिन तीन कलाकारों की प्रस्तुतियां हैं जिनमें से दो पंडित शर्मा के शिष्य हैं। वर्षा अग्रवाल (फाइल फोटो )
भारत भवन ने कभी नहीं बुलाया
संतूर वादक वर्षा अग्रवाल से जब संतूर समारोह के बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि 'मुझे तो इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया। मैं मध्यप्रदेश की ही हूं और देश-विदेश में अपने कार्यक्रम पेश करती हूं, लेकिन भारत भवन में मुझे आज तक कभी नहीं बुलाया गया।' इसका कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि 'मैं क्या कह सकती हूं? यह तो आयोजक ही बता सकते हैं।'
प्रशासन के पास नहीं कोई संतोषजनक जवाब
भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रेमशंकर शुक्ला से यह पूछने पर कि संतूर समारोह में कलाकारों के बीच भेदभाव क्यों हो रहा है? वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने कहा कि 'हम कोई विवाद नहीं चाहते। हमारा कोई दुराग्रह नहीं है। कुल 13-14 कलाकार आमंत्रित किए गए हैं। सिंहस्थ में पंडित सोपोरी और वर्षा अग्रवाल को बुलाया था और भारत भवन में पंडित सोपोरी के पुत्र व शिष्य अभय सोपोरी को बुलाया था। उनको रिपीट नहीं कर सकते इसलिए इस समारोह में आमंत्रित नहीं किया। कलाकारों को हर तीसरे दिन तो नहीं बुलाया जा सकता।' कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने सिंहस्थ में प्रस्तुतियां दी थीं और अब संतूर समारोह में भी आ रहे हैं। इस बारे में शुक्ला ने चुप्पी साधे रखी।
चर्चा संतूर पर या कलाकार पर?
संतूर के एक मात्र घराने की उपेक्षा को लेकर सवाल करने पर प्रेमशंकर शुक्ला ने सफाई दी कि घरानों पर केंद्रित आयोजन भी किए जा रहे हैं। इसी क्रम में कभी संतूर के सोपोर घराने पर भी आयोजन किया जाएगा। संतूर पर सिर्फ पंडित शर्मा द्वारा बातचीत के कार्यक्रम को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि पडित शर्मा पर फिल्म बनी है। यह कार्यक्रम उसी फिल्म के प्रदर्शन का है। चूंकि फिल्म उन पर है तो चर्चा भी वही करेंगे। सवाल पूछने पर कि चर्चा संतूर पर है या पडित शर्मा पर, शुक्ला चुप हो जाते हैं।
असहमति पंडित शर्मा से नहीं, आयोजक से
पंडित सोपोरी ने संतूर समारोह में शिरकत करने में असमर्थता जता दी है। इस पर भारत भवन से भेजे गए पत्र में उनसे कहा गया है कि 'पंडित शिवकुमार शर्मा से यदि आपकी सहमति-असहमति है तो उसे इस समारोह से न जोड़ें। पंडित शर्मा के प्रति सद्भाव रखें।' इस पर पंडित सोपोरी की कहना है कि 'इसमें पंडित शर्मा से असहमति का सवाल ही नहीं है। यह तो आयोजक से असहमति का मामला है। खास तौर पर तब जबकि एक सरकारी कार्यक्रम हो रहा है तो उसमें कलाकारों को समान नजर से देखा जाना चाहिए। सभी के प्रति सम्मान का भाव समान होना चाहिए। कोई निजी संस्था यह आयोजन कर रही होती तो कोई सवाल ही नहीं उठता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार तो सबके लिए समान होनी चाहिए न।'
पंडित भजन सोपोरी नहीं करेंगे शिरकत
पंडित भजन सोपोरी ने बताया कि 'भारत भवन में जब एक खास वाद्य पर केंद्रित संगीत समारोह हो रहा है तो इसकी समुचित योजना होनी चाहिए। कश्मीर का सोपोर घराना देश का एक मात्र संतूर का संगीत घराना है। इस घराने में कई प्रतिभाशाली कलाकार हैं। इनमें एक तो मेरा बेटा अभय सोपोरी है और इसके अलावा देश की पहली महिला संतूर वादक वर्षा अग्रवाल हैं। वर्षा मध्यप्रदेश के ही उज्जैन शहर की हैं। वे आकाशवाणी और दूरदर्शन की ए ग्रेड कलाकार हैं और दुनिया भर में अपनी प्रस्तुतियां देती हैं। इसके अलावा घराने के और भी कई कलाकार हैं जिन्हें अवसर मिलना चाहिए।' उन्होंने बताया कि 'मैं भारत भवन प्रशासन के इस रवैये से दुखी हूं और इसलिए मैंने संतूर समारोह में शिरकत करने से इनकार कर दिया है।'
संतूर के एक मात्र घराने की उपेक्षा
विश्वविख्यात संतूर वादक ने कहा कि 'देश में संतूर को सोपोर घराने से पृथक करके कैसे देखा जा सकता है? इस घराने की 300 साल की परंपरा है जिसमें आठ से दस पीढ़ियों ने संगीत की साधना की है। इसने संतूर वादन की कला को न सिर्फ संरक्षित किया बल्कि इसकी दुनिया भर में पहचान भी बनाई।' उन्होंने कहा कि 'मेरे पिता पंडित शंभूनाथ सोपोरी के हजारों शिष्य थे। सोपोर घराने की 'बाज शैली' की अलग पहचान है। यह घराना सूफी दर्शन और निर्गुण ईश्वर भक्ति परम्परा का अनुसरण करता है।'
कलाकारों के लिए सरकार की मान्यता भी अहम
पंडित सोपोरी ने कहा कि 'लोगों तक सच्चा संगीत पहुंचाया जाना चाहिए। सबकी अपनी-अपनी शैलियां हैं। सिर्फ अपना ढोल पीटना तो ठीक नहीं है। सभी को सुना-सुनाया जाना चाहिए। लोग कलाकारों की सहजता को उसकी कमजोरी मान लेते हैं। कलाकार के लिए अवार्ड के अलावा गवर्नमेंट का रिकग्नीशन भी मायने रखता है। अवार्ड सुकून देता है, इस बात पर कि मैंने कुछ किया तो उसका एप्रिसिएशन मिला। यदि साधना करने वाले की कला आम लोगों तक न जाए तो यह कलाकार के लिए निराशाजनक होता है।'
संतूर से अधिक पंडित शर्मा पर केंद्रित समारोह
भारत भवन के संतूर समारोह का विवरण देखने पर यह साफ हो जाता है कि यह समारोह संतूर से अधिक पंडित शिवकुमार शर्मा पर केंद्रित है। 15 जुलाई को उनके शिष्यों की सामूहिक प्रस्तुति के बाद उनके ही संतूर वादन से समापन है। दूसरे दिन सुबह संतूर पर चर्चा है जिसमें बातचीत करने वाले सिर्फ पंडित शर्मा हैं। इस दौरान उन्हीं पर बनाई गई एक फिल्म का प्रदर्शन है। शाम को दो कलाकारों की प्रस्तुतियों के बाद पंडित सोपोरी के वादन से कार्यक्रम का समापन तय किया गया है। अंतिम दिन तीन कलाकारों की प्रस्तुतियां हैं जिनमें से दो पंडित शर्मा के शिष्य हैं।
भारत भवन ने कभी नहीं बुलाया
संतूर वादक वर्षा अग्रवाल से जब संतूर समारोह के बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि 'मुझे तो इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया। मैं मध्यप्रदेश की ही हूं और देश-विदेश में अपने कार्यक्रम पेश करती हूं, लेकिन भारत भवन में मुझे आज तक कभी नहीं बुलाया गया।' इसका कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि 'मैं क्या कह सकती हूं? यह तो आयोजक ही बता सकते हैं।'
प्रशासन के पास नहीं कोई संतोषजनक जवाब
भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रेमशंकर शुक्ला से यह पूछने पर कि संतूर समारोह में कलाकारों के बीच भेदभाव क्यों हो रहा है? वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने कहा कि 'हम कोई विवाद नहीं चाहते। हमारा कोई दुराग्रह नहीं है। कुल 13-14 कलाकार आमंत्रित किए गए हैं। सिंहस्थ में पंडित सोपोरी और वर्षा अग्रवाल को बुलाया था और भारत भवन में पंडित सोपोरी के पुत्र व शिष्य अभय सोपोरी को बुलाया था। उनको रिपीट नहीं कर सकते इसलिए इस समारोह में आमंत्रित नहीं किया। कलाकारों को हर तीसरे दिन तो नहीं बुलाया जा सकता।' कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने सिंहस्थ में प्रस्तुतियां दी थीं और अब संतूर समारोह में भी आ रहे हैं। इस बारे में शुक्ला ने चुप्पी साधे रखी।
चर्चा संतूर पर या कलाकार पर?
संतूर के एक मात्र घराने की उपेक्षा को लेकर सवाल करने पर प्रेमशंकर शुक्ला ने सफाई दी कि घरानों पर केंद्रित आयोजन भी किए जा रहे हैं। इसी क्रम में कभी संतूर के सोपोर घराने पर भी आयोजन किया जाएगा। संतूर पर सिर्फ पंडित शर्मा द्वारा बातचीत के कार्यक्रम को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि पडित शर्मा पर फिल्म बनी है। यह कार्यक्रम उसी फिल्म के प्रदर्शन का है। चूंकि फिल्म उन पर है तो चर्चा भी वही करेंगे। सवाल पूछने पर कि चर्चा संतूर पर है या पडित शर्मा पर, शुक्ला चुप हो जाते हैं।
असहमति पंडित शर्मा से नहीं, आयोजक से
पंडित सोपोरी ने संतूर समारोह में शिरकत करने में असमर्थता जता दी है। इस पर भारत भवन से भेजे गए पत्र में उनसे कहा गया है कि 'पंडित शिवकुमार शर्मा से यदि आपकी सहमति-असहमति है तो उसे इस समारोह से न जोड़ें। पंडित शर्मा के प्रति सद्भाव रखें।' इस पर पंडित सोपोरी की कहना है कि 'इसमें पंडित शर्मा से असहमति का सवाल ही नहीं है। यह तो आयोजक से असहमति का मामला है। खास तौर पर तब जबकि एक सरकारी कार्यक्रम हो रहा है तो उसमें कलाकारों को समान नजर से देखा जाना चाहिए। सभी के प्रति सम्मान का भाव समान होना चाहिए। कोई निजी संस्था यह आयोजन कर रही होती तो कोई सवाल ही नहीं उठता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार तो सबके लिए समान होनी चाहिए न।'
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